मित्रों, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते हुए सुना होगा कि अगर हम जीवभर बुरे कर्म करते हैं तो मृत्यु के बाद हमारी आत्मा को कई भयंकर यातनाओं और कष्टों को भोगना पड़ता है… वैतरणी नदी से होकर गुजरना पड़ता है… यमदूतों की मार सहनी पड़ती है… और पापी आत्मा को तो पशु नोंच नोंचकर खाते हैं…
लेकिन क्या कभी सोचा है कि आखिर हमारी पाप पुण्य का लेखा जोखा कौन रखता है? और कैसे यमलोक में धर्मराज पापियों को सजा देते हैं… आइए साथ मिलकर जानते हैं…
तो मित्रों नमस्कार और स्वागत है आप सभी का एक बार फिर the divine tales पर… गरुड़ पुराण के तीसरे अध्याय में धर्मराज द्वारा पापी आत्माओं को सजा देने का वर्णनन मिलता है… पक्षीराज श्री हरी से प्रश्व करते हैं- है केशव यम मार्ग की यात्रा पूरी करने के बाद यम भवन में जाकर पापी किस प्रकार की यातना को भोगता है? और किस प्रकार धर्मराज पापियों को सजा देते हैं?
इस पर श्री हरी कहते हैं- जो नास्तिक और महापापी प्राणी होते हैं, उनके बारे में धर्मराज भलिभांती जानते हैं… फिर भी वो चित्रगुप्त से उनके शुभ और अशुभ कार्यों के बारे में पूछते हैं… जिसपर चित्रगुप्त श्रवणों से पापी आत्मा के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं…
मित्रों यहां पर आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि श्रवण ब्रह्मा जी के पुत्र हैं… जो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में विचरण करते हैं… उनके कान सुदूर से ही सुनने वाले और नेत्र दूर से सबकुछ देख लेने वाले हैं… वो श्रवण और उनकी पत्नियां ही हैं… जो हम सब के बारे में सबकुछ जानती हैं…
मृत्यु के बाद जब हमारी आत्मा यमलोक पहुंचती है… तो श्रवण ही हमारे पाप पुण्य का लेखा जोखा चित्रगुप्त को देते हैं… जिसके बाद चित्रगुप्त धर्मराज को सब बताते हैं… और फिर जीवात्मा को उसके कर्मों के आधार पर सजा मिलती है…
इस प्रकार पापियों के पाप के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद यम उन्हें बुलाकर अपना अत्यंत भयंकर रूप दिखाते हैं… यमराज की बत्तीस भुजाएं, लाल आंखें और तीन योजन जीतना विशालकाय शरीर देखकर आत्मा जोर जोर से चिल्लाने लगती है… तब धर्मराज से आज्ञा लेकर चित्रगुप्त जीवात्मा से कहते हैं…
अरे पापी, दुराचारी, जो पाप तूने किए वो सभी दुख देने वाले थे… और ये जानते हुए भी तूने वो पाप क्यों किए? जिस प्रकार हर्षोउल्लास के साथ तूने वो पाप किए हैं… तो अब इस समय तू उनके बारे में सोचकर भयभीत क्यों हो रहा है…
धर्मराज की ये बातें सुन जीवात्मा और जोर से रोने लगती है… और अपने द्वारा किए गए पापों के बारे में सोचकर विलाप करने लगती है… इसके बाद धर्मराज भी चोर की भांती बैठे पापियों को देख दूतों को उन्हें सजा देने की अज्ञा देती है…
फिर यम की अज्ञा पाकर प्रचंड और चंडक नाम के दूत एक पाश से आत्मा को बांधकर नरक की ओर ले जाते हैं… मित्रों, गरुड़ पुराण के अध्याय 3 में उल्लेख मिलता है कि नरक की शुरुआत में अग्नि के समान प्रभाव वाला,, 5 योजन में फैला और एक योजन ऊंचा वृक्ष है… इस वृक्ष में नीचे की ओर मुख करके सभी पापी जीवात्माओं को सांकलों से बांधा जाता है…फिर दूत उनकी पिटाई करते हैं…
जीवात्मा रोती है… भूख प्यास से तड़पती है… अपने किए पर रोती है… लेकिन उनकी करुण पुकार कोई सुनने वाला नहीं होता… जीवात्मा यमदूतों से क्षमायाचना करती है… लेकिन यमदूत उन्हें लोहे की लाठियों, भालों और गदों से लगातार मारते हैं… और कहते हैं… है पापी आत्मा तूने इतने दूराचार क्यों किए? तूने कभी क्यों सुलभ काम और अन्न का दान क्यों नहीं किया?
तुमने कभी पित्रों के लिए तर्पण नहीं किया, कभी कौए, कुत्ते और गायों के लिए दान नहीं दिया.. कभी अतिथियों का सतकार नहीं किया… अगर तू ऐसा करता तो तुझे इस तरह की यातना नहीं झेलनी पड़ती…
ऐसा कहकर यमदूत जीवात्मा को और निर्दयतापूर्क पीटने लगते हैं… जिससे जीवात्मा अंगारे की तरह जलती हुई वृक्ष से नीचे गिर जाती है… वृक्ष से गिरते ही जीवात्मा को कुत्ते नोंचने लगते हैं… इसके बाद धर्मराज की आज्ञा से यमदूत जीवात्मा को तामिस्त्र नरक में फेंक देते हैं…
मित्रों, बता दूं कि इसी वृक्ष के बाद चौरासी लाख नरक शुरू हो जाते हैं… जहां जीवात्माओं को उनके पापों और कर्मों के आधार पर भेजा जाता है… वैसे तो ये सभी नरक कष्टकारी हैं… लेकिन इनमें से भी 21 नरक जैसे तामिस्त्र, महारौरव, शाल्मली, रौरव और कालसूत्रक ऐसे नरक हैं,,, जो अत्याधिक भयंकर और कष्टकारी हैं… जहां जाने पर जीवात्मा को अत्याधिक कष्ट और पीड़ा सहनी पड़ती है…
तो मित्रों, इस तरह धर्मराज पापियों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं… जिसके बाद उन्हें उनके शुभ अशुभ कार्यों के अनुसार नरक प्रदान किया जाता है…
इसी के साथ आज की वीडियो में बस इतना ही… अब मुझे इजाजत दें… मैं फिर लौटूंगा ऐसी ही कुछ और पौराणिक और धार्मिक कथाओं और जानकारियों के साथ… तबतक के लिए देखते रहिए आपका अपना youtube channel the divine tales…