महाभारत में यूँ तो कई प्रेम कहानियां देखने और सुनने को मिलती है| और इसमें सबसे ज्यादा चर्चित कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी है| जिसे आज भी प्रेम का प्रतीक माना जाता है| लेकिन महाभारत के एक पात्र ऐसे भी है जिनकी प्रेम कथा के बारे में कोई नहीं जानता| जबकी दो दिलों का ये प्रेम कई युगों से चलता आ रहा हैं| तो पाठको आज मैं हाजिर हूँ ऐसी प्रेम कहानी लेकर जिससे आप सभी आज तक अनजान है|
नमस्कार THE DEVINE TALES पर आप सभी का स्वागत है| ये कथा है भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई और शेषनाग का अवतार माने जाने वाले बलराम और उनकी पत्नी रेवती की| कथा के अनुसार बलराम और रेवती के बीच सतयुग में प्यार हुआ लेकिन दोनों का मिलन द्वापरयुग में आकर हुआ| गर्ग संहिता के अनुसार रेवती पिछले जन्म में पृथ्वी के राजा मनु की बेटी थी|जिसका नाम ज्योतिष्मती था|
एक बार मनु ने बेटी से पूछा के उसे कैसा वर चाहिए तो उन्होंने कहा की जो इस धरती पे सबसे शक्तिशाली हो वो उसी से विवाह करेंगी | मनु ने इंद्र से ये सवाल पूछा तो इंद्र ने वायु को सबसे ताकतवर बताया पर वायु ने पर्वत को ज्यादा बलशाली बताया और पर्वत ने पृथ्वी को अधिक शक्तिशाली बताया| आखिर में धरती ने शेषनाग को सबसे ज्यादा शक्तिशाली बताया|तब ज्योतिष्मती ने शेषनाग को पति के रूप में पाने के लिए ब्रह्मा की तपस्या की और ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया की द्वापर में दोनों की शादी होगी।
ज्योतिष्मती ने अपने अगले जन्म में महाराजा रैवतक की पुत्री के रूप में जन्म लिया| पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में पृथ्वी पर रैवतक नाम के एक सम्राट हुआ करते थे| जिनकी पुत्री का नाम राजकुमारी रेवती था| महाराज रैवतक ने अपनी पुत्री रेवती को हर प्रकार की शिक्षा दिलवाई थी| कहा जाता है की जब रेवती विवाह के योग्य हुई तो उनके पिता राजा रैवतक ने उनके विवाह के लिए पूरे पृथ्वी पर योग्य वर की तलाश शुरू की| लेकिन महाराज को उस समय पृथ्वी लोक पर रेवती के योग्य वर नहीं मिला|
जिससे महाराज रैवतक चिंतित हो गए| लेकिन महाराज रैवतक ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी पुत्री रेवती के लिए वर की तलाश में ब्रह्मलोक जाने का निश्चय किया| ताकि वे स्वयं ब्रह्माजी से रेवती के वर के बारे में पता कर सकें| इसके बाद महाराज रैवतक अपनी पुत्री रेवती के साथ ब्रह्म लोक के लिए प्रस्थान किया| जब महाराज रैवतक ब्रह्मलोक पहुंचे उस समय वहां वेदों का गान चल रहा था| इसलिए वह वहां कुछ समय के लिए रुक गए और समय बीतता गया| वेदों का पाठ जब खत्म हुआ तो महाराज रैवतक ने ब्रह्मजी के समक्ष अपनी बात रखीं| और सब कुछ विस्तार में बताया|
जब ब्रह्माजी ने महाराज की व्यथा सुनी तो वे मुस्कुराने लगें और बोलें| आप पृथ्वी लोक वापिस लौट जाइए वहां पर श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम आपकी पुत्री रेवती के लिए योग्य वर साबित होंगे| रेवती के लिए योग्य एवं शेषनाग के अवतार बलराम जैसा वर पाकर महाराज रैवतक बेहद प्रसन्न हुए और रेवती को लेकर वापिस भूलोक चले आये| लेकिन पृथ्वी पर पहुंचकर मनुष्य तथा अन्य जीव जंतु के छोटे आकार को देखकर वे दोनों आश्चर्यचकित रह गए| कुछ देर वे यही सोचते रहे कि ये कैसे हुआ?
उस समय उन्होंने वहां मौजूद मनुष्यों से वार्तालाप की और उन्हें पता चला की ये द्वापर युग चल रहा है| यह सब सुनकर वे घबरा गए और श्रीकृष्ण के भाई बलराम के पास गए| और उन्हें ब्रह्मा जी द्वारा कही गयी बातों के बारे में बताया| महाराज रैवतक की बात सुनकर बलराम मुस्कुराए और महाराज से बोलें जब तक आप ब्रह्मलोक से लौटे हैं तब तक पृथ्वी पर दो युग गुजर गए| इस समय पृथ्वी पर द्वापर युग चल रहा है|
इसलिए यहाँ पर आपको छोटे आकार के लोग देखने को मिल रहे है| क्युकी महाराज रैवतक अपनी पुत्री की लम्बाई को लेकर चिंतित थे इसलिए उन्होंने बलराम से कहा की जब तक रेवती आपसे लम्बी है तब तक आप दोनों का विवाह कैसे संभव होगा? यह सुनते ही बलरामजी ने रेवती को अपने हल से नीचे की ओर दबाया ऐसा करने से रेवती का कद छोटा हो गया| रेवती के पिता ये दृश्य देखकर बेहद प्रसन्न हुए तथा रेवती और बलराम को विवाह के पवित्र बंधन में बांधकर स्वयं सन्यास चले गए| बाद में बलराम और रेवती प्रेमपूर्वक पृथ्वी पर मौजूद रहे|