मान्यता है कि मृत्यु के समय घाट पर मटकी फोड़ने से आत्मा का शरीर के लिए जो मोह होता है, वो भंग हो जाता है। भारतीय संस्कृति में मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति एक छेद वाली मटकी लेकर मृत शरीर के चारों ओर परिक्रमा करता है और उसके बाद वो मटकी फोड़ देता है। ऐसा करने से आत्मा शरीर की मोह- माया से छुटकारा पा लेती है।
आपको बता दें इसकी एक वैज्ञानिक वजह भी है..
माना जाता है कि पहले के समय में शमशान घाट नहीं हुआ करते थे। ऐसे में मृत शरीर को मुखाग्नि लोग खेतों में ही दिया करते, जिसकी वजह से कई बार आग खेतों में दूर- दूर तक फैल जाया करती और लोगों को बहुत नुकसान झेलना पड़ता था। ऐसे में खेतों को बचाने के लिए एक पानी से भरी मटकी मरे हो व्यक्ति के पास फोड़ दी जाती थी, जिससे की आग पूरे खेत में न फैल पायें और तब से लेकर आज तक ये प्रथा चली आ रही है।
अंतिम संस्कार से जुड़ी ऐसी ही एक प्रथा और भी है, जिसकों लोग सालों से करते तो आ रहे, लेकिन उसके पीछे की वजह का उन्हें पता नहीं..
और वो रिवाज है, दाह संस्कार के समय छोटी- छोटी लकड़ियों को डालना
दोस्तों आपने भी ऐसा किया होगा, जब मरे हुए व्यक्ति को मुखाग्नि दी जाती है, तब सभी लोग उसमें छोटी- छोटी लकड़ियां डालते है। इसके पीछे की वजह भी सालों पुरानी है। दरअसल, पहले शमशान नहीं होते थे और लकड़ियों की भी कमी रहा करती थी, जिसकी वजह से अंतिम संस्कार में जाने वाले सभी लोग अपने- अपने घर से थोड़ी- थोड़ी लकड़ियां लेकर जाते। जिससे वो उस परिवार की मदद कर सकें, जिसके यहां किसी की मृत्यु हुई हो।
एक तरह से इसे लकड़ी दान भी कहा जा सकता है और तब से लेकर आज तक ये रिवाज किया जा रहा है।
हालांकि अब शमशान घाट भी है और वहां पर्याप्त मात्रा में लकड़ियां भी रहती है।
क्या आपको दाह संस्कार से जुड़ी कपाल क्रिया के बारे में पता है, आखिर क्यों की जाती है वो..
शव को मुखाग्नि देने के बाद बांस के डंडे पर एक लोटा बांधकर शव के सिर पर घी डाला जाता है, जिससे शव की खोपड़ी अच्छी तरह से जल सके।
अब आप सोच रहें होंगे की शव के सिर जलाने पर इतना ज़ोर क्यों दिया जाता है..
गरुण पुराण के अनुसार अगर शव की खोपड़ी अग्निदाह के बाद अधजली रह जाती है, तो उस व्यक्ति का अगले जन्म में पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता। साथ ही एक कारण ये भी बताया जाता है कि अगर किसी शव की कपाल क्रिया सही से नहीं की जाती, तो उसके प्राण पूरी तरह से स्वतंत्रता नहीं पाते है और उसके नए जन्म में दिक्कतें होने लगती है। अब ऐसा तो कोई भी परिवारवाले नहीं चाहेंगे।
वहीं श्राद्ध चंद्रिका पुस्तक के अनुसार सिर में ब्रह्मा जी का वास माना गया है, जिसके लिए मस्तिष्क में स्थित ब्रह्मरंध्र पंचतत्व का पूर्ण रूप से विलीन होना आवश्यक है। इसलिए कपाल क्रिया को अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में खास महत्व दिया जाता है।
यही कारण है कि शव के परिवारवाले अंतिम संस्कार की क्रिया को पूरी सावधानी के साथ करते है।
वैसे कहा तो ये भी जाता है कि मृत्यु के बाद और अंतिम संस्कार की क्रिया से पहले शव को एक सेकेण्ड के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन क्या आपको ये पता है कि ऐसा क्यों कहा जाता है।
दरअसल माना जाता है कि संसार में बुरी आत्माएं भी इधर- उधर भटका करती है और वो इस ताक में रहती है, कि कैसे शव के शरीर में प्रवेश किया जायें। इसलिए कहा जाता कि अगर शव को अकेला छोड़ दो तो वो बुरी आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर सकती है। साथ ही एक कारण ये भी है कि शव को अकेला छोड़ने पर, उसके आस- पास कुत्ते- बिल्ली जैसे जानवर उसे नोच के खाने की कोश्शि कर सकते है। जो कि गरुण पुराण के हिसाब से बिल्कुल भी अच्छा नहीं माना जाता। इस वजह से कभी भी शव को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
इतना ही नहीं कई बार शव के पास से महक आने की वजह से मक्खियां- मच्छर भी भिनभिनाने लगते है, ऐसे में ठीक होगा अगर आप शव के पास कोई धूपबत्ती या अगरबत्ती जला दें।
और अगर आपको कभी कोई शव यात्रा दिख जायें तो खबरायें बिल्कुल नहीं, उसे प्रणाम करके तीन बार शिव या फिर तीन बार राम का नाम लें। कहा जाता है कि ऐसा करने से आप जिस काम के लिए जा रहे होते हैं, वो जरुर पूरा होता है।
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