हिन्दू धर्मग्रन्थ कठोपनिषद के अनुसार,एक बार वाजश्रवस नामक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने यमराज से मनुष्य जन्म और मृत्यु से सम्बंधित अनेक प्रश्न किये जिनके उत्तर न चाहते हुए भी यमराज को देने पड़े। तो आइये जानते हैं की नचिकेता को यमराज ने जीवन और मृत्यु के रहस्य के बारे में क्या बताया।
नचिकेता की कथा
एक बार वाजश्रवस ऋषि ने एक विश्वजीत नाम का बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमे सब कुछ दान कर दिया जाता है। नचिकेता ने देखा की ऋषि स्वस्थ गायों के स्थान पर सभी बीमार और पीड़ित गायों को दान कर रहे हैं। वो समझ गया की उसके पिता को मोह है जिस कारण वो ऐसा कर रहे हैं। उसने ऋषि से प्रश्न किया की वो अपने पुत्र को किसे दान करेंगे। ऋषि ने इस प्रश्न का उत्तर देना उचित नहीं समझा। परन्तु नचिकेता के बार बार पूछने पर ऋषि ने क्रोध में कहा की वे उसे यमराज को दान करेंगे।यह सुनकर नचिकेता को बहुत दुःख हुआ और वो यमराज की खोज में निकल पड़ा।
नचिकेता जा पहुंचा यमलोक
नचिकेता यमराज को खोजते खोजते सशरीर यमलोक जा पहुंचा। चूँकि नचिकेता की मृत्यु नहीं हुई थी इसलिए वो यमपुरी में प्रवेश नहीं कर सका। वह यमराज से बिना भेंट किये वापस नहीं गया और भूखा प्यासा 3 दिन तक द्वार के बाहर यमराज की प्रतीक्षा करता रहा। यमराज उसकी ऐसी तपस्या देखकर स्वयं ही उससे मिलने आये और उससे तीन वर मांगने के लिए कहा। तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह, दूसरा अग्निविद्या का ज्ञान, और तीसरा वर आत्मज्ञान और मृत्यु रहस्य के विषय में था। यमराज तीसरे वर को टाल रहे थे और उन्होंने नचिकेता को सांसारिक सुख देने का लोभ दिया। नचिकेता पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। तब यमराज को विवश होकर उसके प्रश्नो के उत्तर देने ही पड़े जो इस प्रकार हैं।
पहला प्रश्न
शरीर से किस प्रकार ब्रह्मज्ञान व् दर्शन होता है?
यमराज ने उत्तर दिया की मनुष्य शरीर एक ब्रह्मनगरी है। दो आँखें, दो नाक के छिद्र, दो कान, मुख, ब्रह्मरंध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाज़े हैं। ब्रह्म मनुष्य के ह्रदय में निवास करते हैं। इस रहस्य को जो समझ जाता है वो हर प्रकार के सुख अथवा दुःख से परे होता है। और उसे जन्म और मृत्यु के बंधन से भी मुक्ति प्राप्त होती है।
दूसरा प्रश्न
आत्मा का स्वरुप क्या है? क्या आत्मा मरती है?
यमराज ने उत्तर दिया की आत्मा का कोई स्वरुप नहीं है। मनुष्य शरीर का नाश होने के साथ आत्मा का नाश नहीं होता। आत्मा सांसारिक सुख, दुःख, भोग विलास आदि सबसे परे है। आत्मा का न कोई जन्म होता है न ही मरण।
तीसरा प्रश्न
यदि किसी व्यक्ति को आत्मा-परमात्मा का ज्ञान नहीं है तो उसे कैसा परिणाम भोगना पड़ता है?
एक व्यक्ति का परमात्मा के प्रति समर्पण के अनुसार ही उसे अलग अलग योनि में जन्म मिलता है। यदि कोई परमात्मा में विश्वास नहीं करता तो वो अलग अलग योनियों में भटकता रहता है। जो लोग बहुत अधिक पाप करते हैं वो मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त पेड़, कीड़े मकोड़े आदि योनियों में जन्म लेते हैं।
चौथा प्रश्न
शरीर से आत्मा निकलने के बाद शरीर में क्या रह जाता है?
आत्मा निकलने के बाद शरीर से प्राण और इन्द्रिय ज्ञान भी आत्मा के साथ निकल जाता है। मृत शरीर में वो परब्रह्म रह जाता है जो हर प्राणी में विद्यमान है।
पांचवां प्रश्न
आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरुप क्या है?
यमराज ने कहा ॐ परब्रह्म के स्वरुप का प्रतीक है। ओमकार ही परमात्मा का सर्वोत्तम उपाय है।