मित्रों, जब जब इस धरती पर पाप बढ़ा है तब तब भगवान विष्णु ने अवतार लिया है और दुष्टों का नाश किया है। भगवान विष्णु के अब तक कुल 9 अवतारों का अवतरण इस धरती par हो चुका है। हिन्दू पुराणों और धर्म ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु का 10 वां अवतार कल्कि अवतार के रूप में कलयुग में जन्म लेगा। वहीं कलयुग में कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में आज भी सात महापुरुष जी रहे हैं। आज हम आपको बताएंगे कि वो 7 चिरंजीवी कल्कि अवतार से कब और कहा मिलेंगे…. अंत तक बने रहिएगा…
बजरंगबली
इन दिव्य पुरुषों की सूची में सबसे पहले चिरंजीवी महापुरूष राम भक्त हनुमानजी का नाम आता है। हनुमान जी को माता सीता ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था और भगवान श्रीराम से बजरंगबली को कलयुग के अंत तक धर्म और रामकथा का प्रचार करने का आज्ञा मिला tha। हनुमान जी के जीवित होने के प्रमाण आज भी कई जगहों पर मिलते रहते हैं।
Mahabharat ke वन पर्व अध्याय के 151 के अनुसार एक बार भीम द्रौपदी के लिए पुष्प लेने गंधमादन पर्वत ja rahe the तब उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। कहा ये भी जातa है कि हर 41 साल में बजरंगबली श्रीलंका के मातंग कबीले में ब्रह्म ज्ञान देने आते हैं।
कलयुग के अंत में जब पाप का सीमा बढ़ जाएगी तब भगवान कल्कि इस पृथ्वी लोक पर अवतरित होंगे तब बजरंगबली एक बार फिर से भगवान कल्कि के रूप में श्री रामजी के दर्शन करेंगे और तब श्रीराम द्वारा दिए उन वचनों का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा।
परशुराम
चिरंजीवी महापुरूषों की लिस्ट में दूसरा नाम परशुराम जी का आता है। परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। चिरंजीवी होने के चलते उनके भी प्रमाण महाभारत काल में भी दिखे थे।
आपको बता दें कि परशुराम जी पितामह भीष्म, कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य के गुरु भी थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान कल्कि के गुरु भी परशुराम जी ही होंगे। महाभारत काल में भी उनका निवास महेंद्र गिरी पर्वत पर ही था और आज कलयुग में भी वो इसी पर्वत पर तपस्या में लीन होकर कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
राजा बली
अगले महापुरुष हैं राजा बली…. राजा बली श्री हरी भक्त प्रह्लाद के वंशज थे। उन्होंने अपने बल से तीनों लोकों को जीत लिया था। इसके साथ ही उनको बहुत बड़ा दानवीर भी माना जाता था।
पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवान विष्णु ने राजा बली के घमंड को तोड़ने के लिए वामन अवतार लिया था। एक बार श्री हरी राजा बली के yagy में शामिल हुए। yagy के दौरान ही सभी brahman अपने लिए राजा बली से कुछ न कुछ दान मांग रहे थे जो राजा बली उन्हें दे भी रहे थे। जब वामन देवता की बारी आई तो उन्होंने सिर्फ तीन पग भूमी राजा बली से मांग ली। तब राजा बली और उपास्थि सभी brahman हंस पड़े। राजा बली ने कहा कि आप अपने छोटे छोटे पैरों से कितनी जमीन नाप पाएंगे आप कुछ और मांग लो।
लेकिन वामन देवता अपनी मांग पर डटे रहे। tab राजा बली ने kaha जहां आप चाहो तीन पग जमीन ले लो। तब वामन देवता ने अपना विराठ रूप धारण कर लिया और एक पग में देवलोक और दूसरे पग पृथ्वी और पताल लोक नाप दिया। इसके बाद unhone kaha कि तीसरा पग कहां रखूं राजन।
राजा बली ने अपना सर आगे कर दिया और वामन देवता ने राजा बली के सर पर पैर रखकर उन्हें पताल लोक भेज दिया और उन्हें सूतल लोक में बसा दिया। जहां वो आज भी अपनी मुक्ति के लिए कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
विभीषण
मित्रों, अब हम बात करेंगे चौथे महापुरुष लंका अधिपति विभीषण के बारे में…. विभीषण प्रभु राम के अनन्य भक्त थे। जब लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था तब विभीषण ने अपने भाई रावण को काफी समझाया था कि भगवान राम से शत्रुता ना करें। जिसके बाद रावण ने उन्हें अपनी लंका से निकाल दिया था।
तब विभीषण भगवान राम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म का अंत करने के लिए धर्म का साथ दिया। यही कारण है कि भगवान श्री राम ने विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था, जो कि आज के युग यानी कलयुग के अंत तक जीवित रहेंगे।
विभीषण के जीवित होने के प्रमाण रामायण काल के बाद महाभारत काल में भी मिले थे। युद्धिष्टिर के राजसीय यज्ञ के दौरान सहदेव विभीषण की मुलाकात हुई थी। कलयुग में विभीषण कहा हैं इस बात की तो जानकारी किसी को नहीं लेकिन यह जरूर पता है कि उनका उस युग में भी होने का सिर्फ एक लक्ष्य है…. जो है अपने प्रभु के अवतार कल्कि से मिलना…
अश्वथामा
इन सात महापुरुषों में अश्वत्थामा का नाम भी शामिल है। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आज भी इस पृथ्वी लोक पर मुक्ति के लिए भटक रहे हैं।
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण अश्वत्थामा को कलयुग के अंत तक भटकने का श्राप दिया था। अश्वत्थामा के संबंध में प्रचलित मान्यता है कि मध्य प्रदेश के असीरगढ़ किले में मौजूद प्राचीन शिव मंदिर में अश्वत्थामा हर दिन भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।
अश्वत्थामा भी कल्कि अवतार कि प्रतीक्षा कर रहे हैं। कहा जाता है कि अश्वत्थामा भगवान शिव का इकलौता ऐसा अवतार हैं जिसकी पूजा नहीं की जाती परंतु कल्कि अवतार में अश्वथामा का एक अहम रोल होगा जो आने वाली पीढ़ियों तक उसका गुणगान करेंगी।
महर्षि व्यास
अश्वत्थामा के बाद छठे चिरंजीवी महापुरूष हैं महर्षि व्यास…महर्षि को वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने ही चारों वेद, महाभारत, 18 पुराण और भागवत गीता लिखी की थी। महर्षि व्यास जी ने भगवान कल्कि के जन्म से पहले उनके अवतार के बारे में ग्रंथों में लिख दिया था। महर्षि वेदव्यास बहुत बड़े तपस्वी होने के कारण आज भी कलयुग में भगवान कल्कि के दर्शन के लिए तपस्या में लीन होकर इंतजार कर रहे हैं।
कृपाचार्य
कलयुग के आखिरी और सातवें चिरंजीवी महापुरुष हैं कृपाचार्य… संस्कृत ग्रंथों में उनको चिरंजीवी के रूप में बताया क्या है। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और पांडवों और कौरवों के आचार्य थे। भागवत के मुताबिक, कृपाचार्य की गणना सप्तर्षियों में की जाती है। कहा जाता है कि वे इतने बड़े तपस्वी थे कि उन्हें अपने तप के बल पर चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि उनकी निष्पक्षता के आधार पर उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। कलयुम में कृपाचार्य अधर्म का नाश करने में कल्कि अवतार की मदद करेंगे।
तो मित्रों आपने देखा कि सात चिरंजीवी कलयुग में भगवान विष्णु के अवतार कल्कि से कब और कहां मिलेंगे….
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