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नवनाथों का रहस्य – Mystery of Navnath

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नवनाथों की परंपरा रहस्य से भरी हुई है। ग्रंथों के अनुसार नाथ शब्द का अर्थ स्वामी बताया गया है। कुछ लोगों का मानना है की नाग शब्द ही बिगड़कर नाथ हो गया। हमारे देश भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। नाथ संप्रदाय में मुख्यतः नौ नाथ हुए जिंन्हें नवनाथों के नाम से भी जाना जाता है। इन्ही नौ नाथों से 84 नाथ हुए। हिन्दू धर्म के अलावे बौद्ध और जैन धर्म में भी नाथ का प्रचलन रहा है। आज के पोस्ट में जानते हैं नवनाथों का रहस्य।

नवनाथ का रहस्य

भगवान् शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदि गुरु माना गया है। भोलेनाथ,भैरवनाथ और साईनाथ भी इसी परंपरा से रहे हैं। ऐसा माना जाता है की भोलेनाथ के बाद आदिगुरु दत्तात्रेय ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने वैष्णव और शैव परंपरा में समन्वय स्थापित करने का कार्य किया। दत्तात्रेय को महाराष्ट्र में नाथ परंपरा का विकास करने का श्रेय जाता है। दत्तात्रेय के बाद सिद्ध संत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ परंपरा को संगठित कर उसे पुन: आगे बढ़ाया। मत्स्येन्द्रनाथ को चौरासी नाथों की परंपरा में सबसे प्रमुख माना जाता है। मत्स्येन्द्रनाथ को हठयोग का परम गुरु माना गया है। नकी समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है। मत्स्येन्द्रनाथ को मीननाथ के नाम से भी जाना जाता है।

मत्स्येन्द्रनाथ का जन्म

कथा के अनुसार बहुत पहले उपरिचर नामक वसू आकाश मार्ग से जा रहा था। जाते वक्त उर्वशी को देखकर उसका वीर्य यमुना नदी मे गिरा। वो वीर्य मत्स्यी ने खा लिया। कुछ दिनो बाद मत्स्यी ने गर्भ का अंडा यमुना तट पर रेत मे डाल दिया। जिसे पल्शियों ने तोड़ डाला। अंडा के टूटते ही एक बालक प्रकट हो गया। उस वक्त वहा कामिक नाम का कोली था। कामिक उस बच्चे को अपने घर ले गया। जहाँ उसकी पत्नी शारद्वता ने उस बच्चे को संभाला। उसका नाम मत्स्येंद्र रखा।

मत्स्येंद्रनाथ के बाद के नाथ

मत्स्येंद्रनाथ के बाद उनके शिष्य गोरक्षनाथ नाथ परंपरा को आगे बढ़ाया। गोरक्षनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव और इस संप्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गोरक्षनाथ को गोरखनाथ के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद भर्तृहरि नाथ, नागनाथ, चर्पटनाथ, रेवणनाथ, कनीफनाथ, जालंधरनाथ, कृष्णपाद, बालक गहिनीनाथ योगी, गोगादेव, रामदेव, सांईंनाथ ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।

नाथ परंपरा

नाथ परंपरा के आराध्य शिव हैं। यह हठ योग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है। नाथ साधु-संत परिव्राजक होते हैं। नाथ परंपरा को मानाने वाले भजन गाते हुए घूमते हैं और भिक्षा मांग कर जीवन यापन करते हैं। उम्र के अंतिम चरण में वे किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं। कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं। नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। इस पंथ की साधना-पद्धति में सात्विक भाव से शिव की भक्ति की जाती है। वे शिव को अलख नाम से संबोधित करते हैं।

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