कभी भगवान विष्णु की शैया के रूप में, कभी महादेव शिव के कंठाभूषण के रूप में तो कभी समुद्र मंथन के समय रस्सी के रूप में, नाग कुल ने सदैव ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. नागों में शेषनाग अर्थात अनंतनाग को सर्श्रेष्ठ कहा गया है. भगवत गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि मैं नागों में अनंत हूँ. कुछ पौराणिक सूत्रों के अनुसार नागों की उत्पत्ति नागपंचमी के दिन हुई थी.नागों के विषय में हम बहुत सी बातें सुनते आये हैं. इस लेख में नागों के महत्व और नाग पंचमी पर प्रकाश डाला गया है. चलिए जानते हैं कि नागों की पूजा क्यों की जाती है.
नागों की पूजा
पौराणिक काल में नागों का देवताओं के अनेक कार्यों में बहुत योगदान रहा. पुराणों में उल्लेख है कि शेषनाग ने धरती को अपने फन पर धारण किया हुआ है. इसलिए नागों की पूजा करना विशेष बताया गया है. नाग पंचमी इसके लिए एक आदर्श दिन माना जाता है. इस दिन नागों की पूजा करने से और दूध पिलाने से काल सर्पदोष या सापों से आने वाली विपदाओं का नाश होता है.
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परीक्षित की मृत्यु
महाभारत में वर्णित है कि महाराज परीक्षित की मृत्यु का कारण तक्षक नाग था जिसने राजा परीक्षित को मिले एक श्राप के कारण उन्हें काट लिया था. पिता की मृत्यु की बात सुनकर परीक्षित पुत्र जनमेजय ने क्रोध में एक विशाल सर्पयज्ञ का आयोजन किया जिसमे नागों की आहुति दी जा रही थी. तब आस्तिक मुनि ने जनमेजय को समझाकर उस यज्ञ को समाप्त करवाया था. साथ ही आस्तिक मुनि ने कहा था कि जो व्यक्ति श्रावण मास की पंचमी को सर्प की पूजा करेगा उसे साँपों अथवा नागों से होने वाले दोषों से मुक्ति प्राप्त होगी. तभी से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है.
नाग पूजा जा महत्त्व
हिन्दू संस्कृति में हर उस वस्तु को भी पूजने का प्रचलन है जो मनुष्य को कहीं न कहीं लाभ दे रही है. उदाहरण के तौर पर वायु, जल, वृक्ष इत्यादि. यदि वैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार नागों का महत्त्व देखें तो नागों का महत्त्व इसलिए भी बहुत है क्यूंकि मेडिकल साइंस में बहुत सी दवाइयां बनाने के लिए सापों के विष की आवश्यकता होती है. साथ ही कुछ फसलों की खेती में भी सांप बहुत सहायक सिद्ध होते हैं जैसे बारिश के मौसम में धानों के पौधों को चूहे काटकर नष्ट कर देते हैं. चूहों का भक्षण करके सांप अथवा नाग फसल को नष्ट होने से बचाते हैं.