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माँ काली को क्यों रक्त पीने की इच्छा हुई थी ?

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हिन्दू धर्म में देवताओं के साथ साथ देवियों की भी पूजा की जाती है।जैसे देवों  में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा,विष्णु और महेश को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।उसी तरह देवियों में सरस्वती.लक्ष्मी और माँ काली को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसा माना जाता है की देवी पार्वती ने ही दुष्टों का संहार करने के लिए मां काली का रूप धारण किया था। माँ काली का रूप देखने में बड़ा ही भयावह लगता है। उनके  हाथों में कपाट,रक्त से भरी कटोरी,लटकता नरमुंड और गले में मुंडों की माला उनके रूप को और भी भयावह बना देता है। लेकिन मैं आपको बताऊंगा की आखिर माँ काली को क्यों रक्त पीने की इच्छा हुई थी ?

रक्तबीज दैत्य की कथा

स्कन्द पुराण और दुर्गा सप्तशती की एक कथा के अनुसार पौराणिक काल में शंकुशिरा नामक एक अत्यन्त बलशाली दैत्य का पुत्र अस्थिचर्वण हुआ करता था जो मनुष्यों की अस्थियां चबाया करता था। वह मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं पर भी अत्याचार किया करता था।  उसके अत्याचार से तंग आकर एक दिन देवताओं ने क्रोध में आकर उसका वध कर डाला। उसी काल में रक्तबीज नामका एक और दैत्य भी हुआ करता था। जब यह बात उसे पता चली तो वह देवताओं को पराजित करने के उदेश्य से ब्रह्मक्षेत्र में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप करने लगा।  

रक्तबीज की तपस्या

करीब पांच लाख वर्ष बाद रक्तबीज के घोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। भगवान ब्रह्मा को अपने सामने देखकर रक्तबीज ने सबसे पहले उन्हें प्रणाम किया और फिर बोला  हे परमपिता अगर आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मुझे यह वरदान दीजिये की मेरा वध देवता,दानव,गन्धर्व,यक्ष,पिशाच,पशु पक्षी,मनुष्य आदि में से कोई भी ना कर सके और  मेरे शरीर से जितनी भी रक्त की बूंदे जमीन पर गिरे उनसे मेरे ही समान बलशाली,पराक्रमी और मेरे ही रूप में उतने ही दैत्य प्रकट हो जाएँ। तब ब्रह्मा जी ने कहा हे रक्तबीज तुम्हारी मृत्यु किसी पुरुष द्वारा नहीं होगी लेकिन स्त्री तुम्हारा वध अवश्य कर सकेगी। इतना कहकर ब्रह्माजी वहां से अंतर्ध्यान हो गए।

रक्तबीज का अहंकार

उसके पश्चात् रक्तबीज वरदान के अहंकार में मनुष्यों पर अत्याचार करने लगा और एक दिन उसने वर के अहंकार में स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया। और देवराज इंद्र को युद्ध में हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया । उसके पश्चात्  दस हजार वर्षों तक देवतागण रक्तबीज के भय से मनुष्यों की भांति दुःखी होकर पृथ्वी पर छिपकर विचरण करने लगे। उसके बाद इंद्र सहित सभी देवतागण पहले ब्रह्मा जी के पास गये। फिर सभी ने उनको अपनी व्यथा सुनाई। तब ब्रह्मा जी ने कहा मैं इस संकट से आप सभी को नहीं उबार सकता इसलिए हम सभी को विष्णुदेव के पास चलना चाहिए। फिर ब्रह्मा जी सहित सभी देवतागण श्री विष्णु जी के पास गये,परन्तु विष्णु जी ने भी यह कहते हुए मना कर दिया की रक्तबीज को मारना मेरे भी वश में नहीं है। फिर सभी देवता बैकुंठ धाम से कैलाश के लिए चल दिए। लेकिन जब वो वहां पहुंचे तो उनहे पता चला की भगवान शिव उस समय कैलाश पर नहीं बल्कि केदारनाथ क्षेत्र में सरस्वती नदी के तट  पर विराजमान हैं।

भगवान शिव को माँ काली के पैरों के निचे क्यों आना पड़ा ?

 तत्पश्चात सभी देवतागण केदारनाथ धाम पहुंचे। वहां पहुँचकर देवताओं ने भगवान शिव को सारी बात बताई। तब ब्रह्मा जी ने शिव से कहा हे शिव मेरे ही वरदान के कारण रक्तबीज का देवता,दानव, ,यक्ष,पिशाच,पशु पक्षी,मनुष्य आदि में से कोई भी वध नहीं कर सकता परन्तु स्त्री उसका वध अवश्य कर सकती है। तब भगवान शिव ने सभी देवताओं से आदि शक्ति की स्तुति करने को कहा।

माँ शक्ति की उत्पति

फिर सभी देवताओं ने  रक्तबीज के वध की अभिलाषा से आदि शक्ति की स्तुति करना शुरू किया। कुछ समय पश्चात् देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर हिमालय से एक देवी प्रकट हुई। और देवताओं से कहा की  हे देवगन आप दैत्य राज रक्तबीज से बिल्कुल निर्भय रहें। मैं अवश्य उसका वध करूंगी।उसके बाद देवी से वर पाकर सभी देवतागण अपने अपने स्थान को लौट गए गये। फिर एक दिन देवताओं ने नारद जी से कहा कि वे रक्तबीज में ऐसी मति उत्पन्न करें जिससे वह देवी के साथ किसी भी तरह का कोई अपराध करने को विवश हो जाये। उसके बाद नारद जी ने रक्तबीज के पास जाकर उसको उकसाने के उद्देश्य से कहा की कैलाश पर्वत के ऊपर भगवान शिव का निवास स्थान है। शिव जी को छोड़कर सभी देवता-दानव तुम्हारी आज्ञा का पालन करते हैं और तुमसे डरते हैं। परन्तु शिव के साथ एक तन्वङ्गी नाम की अबला नारी रहती है जिसे शिवजी के कारण देव दानव कोई भी उन्हें जीत नहीं सकता है।

तब रक्तबीज ने कहा-देवर्षि ऐसा क्या कारण है जो उसको कोई नहीं जीत सकता?

देवी पार्वती का अपमान

फिर नारद जी ने रक्तबीज से कहा की तीनो देवों में से शिव जी सबसे अधिक जितेन्द्रिय और धैर्यवान् हैं। इसलिए देव-दानव-नाग आदि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है, अगर तुम उनपर विजय प्राप्त करना चाहते हो तो किसी तरह सबसे पहले उनका धैर्य डिगाओ। नारद के वचन सुनकर शिव जी को मोहित करने के उद्देश्य से रक्त बीज पार्वती के समान अत्यधिक सुन्दर स्त्री बनकर कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा। उसके रूप और यौवन को देखकर एक बार तो शिव जी मोहित भी हो गये। परन्तु तभी पार्वती भी  वहां आ पहुंची। यह देख शिव जी दुविधा में पड़ गये। फिर उन्होंने ध्यानयोग से उस पार्वती रुपी दैत्य रक्तबीज को पहचान लिया। तब उन्होंने क्रोध में आकर उसे शाप दिया- हे दुष्ट तू कपट से पार्वती का वेश बनाकर मुझे छलने आया है, इसलिए महेश्वरी पार्वती ही तेरा वध करेगी!

काली माता मंदिर कलकत्ता

भगवान शिव का अपमान करने के बाद  रक्तबीज अपने दरवार में आ गया। फिर वह अपने राक्षस मंत्रीगण के साथ शिव जी पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाने लगा। उसने सबसे पहले अपने मंत्रीगण से कहा की यदि पार्वती मुझसे से प्रेम करने लगी तो शिव का धैर्य अपने आप ही नष्ट हो जायेगा। फिर पत्नी वियोग के कारण शिव कमजोर भी हो जायेगा उसके बाद उसे हम आसानी से जित सकेंगे। फिर उसने अपने मंत्रियों को बताया की शिव ने उसे स्त्री के हाथों मरने का श्राप दे दिया है लेकिन वो ये नहीं जानता की मेरे सामने जब इन्द्र सहित कोई भी देवता नहीं टिक सकते तो भला मेरा वध एक स्त्री कैसे कर सकती है। इतना कहकर रक्तबीज जोर-जोर से हंसने लगा। फिर थोड़ी देर बाद उसने अपनी सेना को आदेश दिया की तत्काल तुमलोग कैलाश जाओ और पारवती को प्रेमपूर्वक मेरे पास लेकर आओ और अगर वो प्रेम से नहीं आई तो उसे घसीटते हुए लाना।  

रक्तबीज का वध

इसके बाद अपने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए दैत्यगण कैलाश पर्वत पर पहुंचा और वहां से देवी पार्वती को अपने साथ चलने को कहा। दैत्यों की बातें सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने अपने हुंकार से दैत्यों को जलाकर भस्म करने लगी। उसी समय कुछ दैत्य किसी तरह वहां से अपनी जान बचाकर रक्तबीज के पास पहुंचे और उसे माता पार्वती के पराक्रम के बारे में बताया। यह सुनकर रक्तबीज क्रोधित हो उठा और उसने अपने सैनिकों को  कायर कहकर कारागार में डाल दिया।

 फिर रक्तबीज चण्ड,मुण्ड आदि जैसे असंख्य दैत्यों के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचा और देवी के साथ युद्ध करने लगा।  इस युद्ध में माता पार्वती सभी देवताओं की शक्तियों के साथ लड़ने लगी और चण्ड,मुण्ड सहित सभी दैत्यों का वध कर दिया। परन्तु रक्तबीज के शरीर से जीतनी भी रक्त की बूंदे धरा पर गिरती उससे उसके समान ही एक और दैत्य उत्पन्न हो जाता।  इसलिए अभी तक उसका वध नहीं हो सका था।फिर देवी पार्वती ने माँ काली का रूप धारण किया। और अपना मुंह फैलाकर रक्त बीज का खून पिने लगी  और इसी प्रकार अपनी जीभ फैलाई जिससे कुछ रक्तबीजों को निगल गयी व कुछ को रक्तविहीन कर मार दिया। अन्त में मुख्य रक्तबीज भी शूल आदि अस्त्रों से मारे जाने व उसका खून चूसे जाने से रक्तविहीन होकर धरती पर गिर पड़ा। इस प्रकार देवताओं सहित तीनोलोक  रक्तबीज के नाश से प्रसन्न हो गया।

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