हमारे धर्म ग्रंथों में महाभारत के युद्ध को धर्म और अधर्म के बीच लड़ा गया युद्ध बताया गया है| जिसमे करोड़ो योद्धाओं ने अपनी जान गवा दी| कुरुक्षेत्र में लड़े गए इस युद्ध की भयंकरता का इस बात से भी पता चलता है, की महाभारत युद्ध के कारण ही आज भी कुरुक्षेत्र की मिटटी का रंग लाल है| इस युद्ध में भाग लेनेवाले कई ऐसे महारथी थे जिन्हे मारना आसान नहीं था लेकिन फिर भी वो मारे गए|
नमस्कर पाठको THE DIVINE TALES पर आप का स्वागत है| आज मैं हाजिर हूँ महाभारत की ऐसी गाथा लेकर जिसमे आप को बताऊंगा की किस प्रकार पांडवो ने युद्ध जितने के लिए छल कपट का सहारा लेकर ऐसे योद्धाओं का वध किया जिन्हे मारना किसी के लिए भी असंभव था| द्वापरयुग में कौरव पांडवों के बीच लड़ा गया युद्ध धर्म ओर अधर्म की लड़ाई थी| इस महायुद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने महायोद्धा अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था| इस युद्ध में श्रीकृष्ण ने अस्त्र-शस्त्र ना उठाने की कसम भी खाई थी| महाभारत युद्ध में कई ऐसे महारथी थे जिन्हे आसानी से पराजित करना संभव नहीं था| ऐसे में श्रीकृष्ण ने इन योद्धाओं के नाश के लिए छल कपट का सहारा लिया था|
1.भीष्म
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कौरव और पांडव के पिता महाभीष्म महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले सबसे पराक्रमी और बुजुर्ग योद्धा थे| अपने पिता को दिए वचन के कारण भीष्म ने ना चाहते हुए भी कौरवो के पक्ष में युद्ध करने का निर्णय लिया था| ऐसा कहा जाता है की 18 दिनों तक चलने वाले इस युद्ध में भीष्म 10 दिनों तक पांडवो के विजय में बाधक बने रहे| महाभारत युद्ध भीष्म को पराजित किये बिना पांडवों के लिए जितना असंभव होता जा रहा था| ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने श्रीखंडी को ढाल बनाकर युद्ध के दसवे दिन भीष्म को बाणो से छलनी कर दिया और भीष्म ने बाणो की शय्या पर लेटे महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद प्राण त्याग दिया|
2.द्रोणाचार्य
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कौरव और पांडव के गुरु द्रोणाचार्य को महाभारत युद्ध में हराना असंभव था| ऐसा माना जाता है की द्रोणाचार्य को केवल उनका शोक ही मार सकता था| भीष्म के बाणो की शय्या पर लेटने के बाद गुरु द्रोणाचार्य को कौरव की और से प्रधान सेना पति बनाया गया| सेनापति बनने के बाद द्रोणाचार्य पांडवों के जीत में सबसे बड़े बाधक बनते जा रहे थे| ऐसे में पांडवों ने एक बार फिर श्रीकृष्ण की सलाह पर छल का सहारा लिया| श्रीकृष्ण ने भीम से कहा कि अश्वत्थामा नामक हाथी को मारकर जोर—जोर से चिल्लाएं कि मैंने अश्वस्थामा को मार दिया| भीम ने ऐसा ही किया| द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा ही था| ऐसा सुनते ही गुरू द्रोणाचार्य अश्त्र शस्त्र त्यागकर जमीन पर बैठ गए| इसी बीच युधिष्ठिर ने तलवार से द्रोणाचार्य के सर को धड़ से अलग कर दिया|
3.जयद्रथ
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अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को मारने वालों में दुर्योधन के बहनोई जयद्रथ का नाम भी शामिल था| जयद्रथ को अपने पुत्र का हत्यारा मानकर अर्जुन ने प्रतिज्ञा ले ली कि “सूर्यास्त तक जयद्रथ को नहीं मार पाया तो आत्म दाह कर लूँगा|” शाम होने वाली थी और जयद्रथ को मार पाना अर्जुन के लिए असंभव दिख रहा था| ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को ढक लिया जिससे चारो ओर अँधेरा छा गया| यह देख जयद्रथ सहित कौरवों ने समझा की शाम हो गई और ख़ुशी के मारे जयद्रथ अर्जुन के सामने आ गया| श्रीकृष्ण के माया से आसमान में फिर से सूर्य की किरणें दिखने लगीं और कृष्ण का इशारा मिलते ही अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया|
4.कर्ण
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कर्ण को युद्ध में सीधे पराजित करना अर्जुन के वश की बात नहीं थी| ऐसे में युद्ध करते समय जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धस गया और कर्ण अपने रथ का पहिया निकालने लगा तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि “यही वह मौका है जब तुम कर्ण को मार सकते हो|” श्रीकृष्ण ने कहा, “मुझे पता है कर्ण एक ऐसा योद्धा है जिसे केवल छल से ही पराजित किया जा सकता है|” ऐसे में यही मौका देखकर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया|
5.दुर्योधन
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महाभारत के युद्ध का अंतिम महायोद्धा दुर्योधन का भी वध पांडवों ने छल पूर्वक किया था| महाभारत युद्ध के अंतिम दिन भीम और दुर्योधन के बीच गद्दा युद्ध हुआ| इस युद्ध में गद्दा का प्रहार कमर से ऊपर करने का नियम था| लेकिन भीम ने श्रीकृष्ण के संकेत पर दुर्योधन के कमर पर वॉर करना शुरू कर दिया और अंत में पांडवो ने दुर्योधन का भी छल पूर्वक वध कर दिया|