क्या आप जानते हैं…. श्री कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा का एक ऐसा रूप भी था जिसकी वजह से भोलेनाथ को इनका वध करना पड़ा था। इसपर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल तो है लेकिन अगर हम इतिहास के पन्ने पलटे तो यह सच सामने आता है… लेकिन सोचने वाली बात है… आखिर ऐसे उन्होंने क्यों किया….
दरअसल…. स्वर्ग के गोलोक में सुदामा और विराजा दोनों ही रहा करते थे…वहीं सुदामा विराजा से प्रेम करता था लेकिन विराजा कृष्ण से प्रेम करती थी…. एक बार विराजा और कृष्ण एक दूसरे में लीन थे तभी वहां राधा आ गईं।
फिर क्या होना था….. विराजा को श्रीकृष्ण के साथ देख कर राधा ने विराजा को गोलोक से पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया…. इतना ही नहीं कुछ कारणों के चलते उन्होंने सुदामा को भी पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया। जिससे उन्हे स्वर्ग से पृथ्वी पर आना पड़ा।
कुछ वर्ष बाद जब श्राप फलित होने का समय आया तो सुदामा ने दानवराज दम्भ के घर पुत्र के रूप में जन्म लिया जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया और विराजा धर्मध्वज के यहाँ तुलसी के रूप में हुआ।
इसके बाद राक्षस राजदम्ब का विवाह तुलसी से हो गया…. शंखचूर्ण माता तुलसी से विवाह के बाद उनके साथ अपनी राजधानी वापस लौट आए। बता दें, शंखचूर्ण को ब्रह्मा जी से वरदान मिला था की जब तक तुलसी तुम पर भरोसा करेंगी तब तक तुम्हे कोई जीत नहीं पाएगा। इसके साथ ही उन्होंने शंखचूर्ण को रक्षा के लिए एक सूरक्षा कवच भी दिया गया था।
वहीं बीतते समय के साथ शंखचूर्ण धीरे-धीरे हर युद्ध जीतता जा रहा था…जिसके बाद वो तीनों लोकों का स्वामी बन गया। शंखचूर्ण के क्रूर अत्याचार से परेशान देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से इसका समाधान मांगा।
तभी ब्रह्मा जी ने इस समस्या के समाधान पर भगवान विष्णु से सुझाव मांगा… लेकिन विष्णु जी ने देवताओं को शिव जी से सुझाव लेने को कहा। देवताओं की परेशानी को समझते हुए शिव जी शंखचूर्ण से युद्ध करने के लिए अपने पुत्रों कार्तिके और गणेश को इस युद्ध के लिए मैदान में उतारा।
इसके बाद भद्रकाली ने भी अपनी विशाल सेना के साथ शंखचूर्ण से युद्ध किया लेकिन शंखचूर्ण पर भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण वध कर पाना काफी मुश्किल हो गया था, और आखिरी में भगवान विष्णु युद्ध के दौरान शंखचूर्ण के सामने प्रकट हुए और उनसे उनका कवच मांगा, जो उन्हे ब्रह्मा जी ने दिया था। शंखचूर्ण ने तुरंत ही कवच भगवान विष्णु को दे दिया…
जिसके बाद भगवान विष्णु उस कवच को पहनकर मां तुलसी के सामने शंखचूर्ण के अवतार में पहुंच गए। उनके रूप को देखकर मां तुलसी ने उन्हे अपना पति मानकर उनका आदर सत्कार किया, और इलके कारण मां तुलसी का पतिव्रता नष्ट हो गया। पत्नी तुलसी की पतिव्रता में शंखचूर्ण की शक्ति बसी थी। वरदान की शक्ति के समापन पर भगवान शिव ने शंखचूर्ण का वध किया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्त करा दिया। तो इसलिए श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा के पुर्नजन्म शंखचूर्ण का भगवान शिव ने वध किया।
आपको बता दें, माता तुलसी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे. राम के अवतार में भगवान सीता माता से अलग होते हैं….वहीं भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवता में हाकाकार मच गया, फिर माता लक्ष्मी ने तुलसी से प्रार्थना की तब उन्होंने जगत कल्याण के लिये अपना श्राप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई….
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इसके बाद उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा…. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा…. कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है….
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