दोस्तों, आजकल शादी के बाद कपल्स का घूमने निकल जाना किसी परंपरा से कम नहीं। लोग इसे ऐसे फॉलों कर रहे हैं, जैसे ये सदियों से चला आ रहा शादी का कोई रिवाज हो। चलिए घूमने तक तो फिर भी ठीक है, लेकिन घूमने के लिए किसी पवित्र स्थान पर जाना, कहां तक सही है। मतलब ये कि, क्या आप वैष्णों देवी सिर्फ माता का आशीर्वाद लेने की मंशा से ही जाते हैं या इसके कोई और वजह भी है…
आपको बता दें, वैष्णों देवी सिर्फ घूमने की जगह नहीं बल्कि यहां से करोड़ों लोगों की आस्था भी जुड़ी है। ये स्थान माता के सबसे खास मंदिरों में से एक बेहद सिद्ध जगह है। ऐसे में यहां पर नए शादीशुदा जोड़ों का किसी गलत मंशा से जाना या फिर सिर्फ अपना मन बहलाने के लिए जाना बिल्कुल भी सही नहीं। क्यों कि ऐसे पवित्र स्थान पर गंदी नियत से जाने वालों का कभी भला नहीं होता, इसलिए अगर आप इस तीर्थस्थल में सिर्फ मनोरंजन के लिए जा रहें है, तो अपना प्लेन अभी बदल लें और खुद को और अपने पार्टनर को इस पाप का भागीदार होने से बचा लें।
आपने कभी सोचा है कि आखिर वैष्णों देवी मंदिर किसने और कैसे बनाया…
मान्यताओं के अनुसार, आज से करीब सात सौ साल पहले श्रीधर नाम का एक पंडित हुआ करता था। वो माता का बहुत बड़ा भक्त था। अपनी गरीबी का रोना न रोकर वो हमेशा माता की भक्ति किया करता था। उसके खाने का इंतेजाम भी बहुत मुश्किल से ही हो पाता। एक दिन श्रीधर के सपने में माता ने आकर उससे भंडारा कराने को कहा, श्रीधर अचानक उठकर बैठ गया। उसे समझ नही आया कि सपना था या हकीकत, लेकिन दूसरी ओर उसके मन में ये भी चल रहा था कि माता ने उससे खुद आकर ये बात कही है। अगर वो ऐसा नहीं करता तो इससे माता का अपमान होगा। धीर- धीरे श्रीधर ने भंडारे के लिए समाना जुटाना शुरु कर किया। लोगों को इस बात का पता चला तो वो सब भी उसकी मदद के लिए आने लगे। लेकिन, सबकी मदद के बाद भी समाना में कमी आ रही थी। ये सब देखकर श्रीधर परेशान होने लगा। इसी चिंता में उसे रात भर नींद भी नहीं आ रही थी।
भंडारे का दिन आया सभी लोग भंडारे के लिए श्रीधर की कुटिया में इकट्ठा होने लगे। लेकिन श्रीधर अभी भी इसी सोच में डूबा था कि इतने कम समाना में कैसे सबको भोजन कराया जायेगा। तभी उसकी कुटिया में एक छोटी सी लड़की आयी और उसने श्रीधर को बड़े प्यार से समझाया, काका आप चिंता न करो, माता रानी सब संभाल लेगीं। इतना कहकर उस लड़की ने भंडारे का प्रसाद लिया और वंहा से चली गयी। दिन के खत्म होने तक न खाना खत्म हुआ और न ही गांव का कोई व्यक्ति भूखा रहा।
श्रीधर समझ गया वो लड़की कोई और नहीं बल्कि मां वैष्णों देवी ही थी। कई दिन बीतने के बाद गए और श्रीधर को उसी कन्या का सपना आया। तब कन्या ने श्रीधर को गुफा के बारे में बताया, जिसके बाद श्रीधर माता की गुफा खोजने के लिए निकल लिया और जैसा कि माता ने उसे बताया था, वो गुफा उसे उसी स्थान पर मिली।
गुफा मिलने के बाद श्रीधर ने ये तय किया कि अब वो अपना सारा जीवन माता वैष्णों देवी की सेवा में ही लगायेगा और इसी तरह श्रीधर ने माता के मंदिर को तैयार किया।
वैसे आपको बता दें, मां वैष्णों देवी कलयुग में साक्षात जन्म लेंगी और भगवान विष्णु की पत्नी बनकर उनका साथ निभाएंगी। लेकिन अब सोचने वाली बात है कि ये सब कब होगा और आखिर क्यों माता को कलयुग में जन्म लेना पड़ेगा।
दरअसल, ये बात तब ही तय हो गयी थी जब भगवान श्री राम मां सीता की खोज में इधर- उधर भटक रहे थे। धीरे- धीरे समय बीतता गया और माता को खोजते- खोजते श्री राम रामेश्वरम् के तट पर पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात त्रिकूटा नाम की एक कन्या से हुई। आपको बता दें, मां वैष्णों देवी को उनके माता- पिता त्रिकूटा कहकर बुलाया करते थे। वो कन्या भगवान विष्णु को पति रुप में पाने के लिए कड़ी तपस्या कर रही थी। जब उसने प्रभू राम को देखा तो वो उन्हें देखते ही पहचान गयी। उसकी खुशी का तो मानो कोई ठिकाना ही नहीं रहा। उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा प्रभू मैं आपको अपने पति के रुप में पाना चाहती हूं, कृपया मेरी इस इच्छा को पूरा कर के मेरे जीवन को धन्य कर दें।
इसके बाद प्रभु राम ने जो कहा उसे जानकर आप भी हैरान हो जायेंगे।
श्रीराम ने त्रिकूटा से कहा त्रिकूटा, मैनें इस समय एक पत्नी व्रत का वचन लिया है और इस जन्म में मेरा विवाह सीता से हो चुका है, इसलिए मैं तुम्हें अभी अपनी पत्नी नहीं बना सकता। लेकिन हां कलयुग में मैं कल्कि अवतार में जन्म लूंगा और मेरे उस अवतार में तुम्हें ही अपनी पत्नी बनाऊंगा। तब तक आप को त्रिकुट पर्वत पर एक दिव्य गुफा में मेरा इंतज़ार करना होगा और वहां आने वाले भक्तों का उद्धार करना होगा।
पुराणों की माने तो तब से मां वैष्णों देवी उस गुफा में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का इंतज़ार कर रहीं है और वहां आने वाले सच्चे भक्तों की मनोकामना को पूरा कर रहीं हैं।
अब ऐसे में सोचने वाली बात है कि भगवान कल्कि कलयुग में कब अवतार लेंगे और उनके इस अवतार का क्या उद्देश्य होगा..
पुराणों की माने तो, भगवान कल्कि कलयुग के अंतिम चरण में इस धरती में जन्म लेंगे। वही हर बार की तरह इस बार भी उनका उद्देश्य राक्षसों का नाश करके धर्म की स्थापना करना होगा। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि कलयुग के अंतिम चरण तक इंसना इतना अधर्मी और पापी हो चुका होगा कि भगवान को ही दुश्मन मानने लगेगा। उनकी पूजा करना तो दूर उनसे ही युद्ध करने का मन बना लेगा।
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