महाभारत के विशाल युद्ध में महत्वपूर्ण स्थान रखनेवाले श्री कृष्ण को बहुत ही छलिया और चतुर कहा जाता है जिसका प्रमाण उन्होंने कई बार अपनी चतुराई और माया को दिखाकर दिया भी है | कई बार श्री कृष्ण ने अपनी चतुराई का प्रयोग करके कई ऐसे काम किये जिन्हें छल का नाम दिया गया | तो आइये आज हम आपको 5 ऐसी कहानी बताते है जिनमे श्री कृष्ण ने अपनी चतुराई का प्रयोग करके पांड्वो और धर्म को महाभारत का विशाल युद्ध जितने में सहयोग प्रदान किया |
कर्ण के दिव्यास्त्र से अर्जुन को बचाया श्री कृष्ण ने
श्रीकृष्ण ये बात जानते थे कि कर्ण के पास जब तक ये दिव्यास्त्र है पांडव कौरवों को हरा नहीं सकते हैं और इस दिव्यास्त्र के रहते अर्जुन भी कर्ण का सामना नहीं कर पाएगा। इसीलिए श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में भीम के विशालकाय पुत्र घटोत्कच को ले आए। घटोत्कच के युद्ध में आते ही कौरव सेना में हाहाकार मच गया। कोई भी यौद्धा घटोत्कच का सामना नहीं कर पा रहा था। तब दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने इंद्र के दिव्यास्त्र का उपयोग किया और घटोत्कच को मार दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कर्ण के दिव्यास्त्र का उपयोग करवा दिया और अर्जुन को बचा लिया।
अर्जुन को देवराज इंद्र की संतान माना जाता है जिससे इंद्र देव को महाभारत के युद्ध से पहले डर था की जब तक कर्ण के पास कवच और कुंडल है अर्जुन कर्ण से जीत नहीं पायेगा | कर्ण को बहुत दानशील माना जाता था जिससे इस डर को दूर करने के लिए इंद्र देव ने ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण से कवच और कुंडल दान में ले लिए और कर्ण से प्रसन्न होकर उसे एक दिव्यास्त्र दिया | दिव्यास्त्र को देते समय इंद्र देव ने कर्ण से कहा की इस दिव्यास्त्र का प्रयोग सिर्फ एक बार ही किया जा सकता है | कर्ण ने इस दिव्यास्त्र को यह सोचकर संभाल कर रख लिए की इससे ही वो युद्ध में अर्जुन का वध करेंगे |
श्रीकृष्ण जानते थे की जब तक इंद्र का दिया हुआ दिव्यास्त्र कर्ण के पास है पांडव उसे नहीं हरा पायेंगे | अर्जुन कर्ण का सामना भी नहीं कर पायेगा जिससे श्रीकृष्ण भीम के पुत्र घटोत्कच को युद्ध में लेकर आ गए जिससे कौरवों की सेना में हाहाकार मच गया | कोई भी कौरव योद्धा घटोत्कच का सामना करने में समर्थ नहीं थे जिससे दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने उस दिव्यास्त्र का प्रयोग करके घटोत्कच का वध कर दिया | जिससे श्रीकृष्ण ने कर्ण के दिव्यास्त्र को घटोत्कच पर प्रयोग करवाकर अर्जुन को बचा लिया |
दुर्योधन की जांघ लोहे की नहीं होने दी श्री कृष्ण ने
महाभारत के युद्ध में पहले एक बार कौरवों की माता गांधारी ने अपने प्रिय पुत्र दुर्योधन को नग्न अवस्था में आने के लिए कहा और माता की आज्ञा से दुर्योधन नग्न अवस्था में माता के सामने जाने लगे | श्री कृष्ण यह जानते थे की जैसे ही दुर्योधन अपनी माता गांधारी के सामने नग्न अवस्था में जाएंगे तो गांधारी अपनी दिव्य द्रष्टि जैसे ही दुर्योधन पर डालेगी तो उनका पूरा शरीर पत्थर का हो जायेगा और दुर्योधन को हराना नामुमकिन हो जायेगा |
श्रीकृष्ण दुर्योधन के सामने पहुंचे और हसने लगे. श्री कृष्ण ने कहा, ” माता के सामने ऐसे जाने में तुमे शर्म नहीं आती और दुर्योधन ने कमर के नीचे केले के पत्ते बाँध लिए |” पत्ते बांधकर जब दुर्योधन माता गांधारी के सामने पहुंचा और जब गांधारी ने अपनी दिव्य द्रष्टि दुर्योधन पर डाली तो दुर्योधन का पूरा शरीर जांघ को छोड़कर पत्थर का हो गया | जिसका फायदा बाद में श्रीकृष्ण ने भीम को उकसा कर दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करवाकर दुर्योधन को घायल करवा दिया था |
श्री कृष्ण ने गदा युद्ध के नियम तोड़ने के लिए भीम को उकसाया
महाभारत के विशाल युद्ध में धर्म को जिताने के लिए कई चालाकी और छल हुए जिसमे एक चालाकी श्री कृष्ण की यह थी की उन्होंने भीम को दुर्योधन की जांघ पर उकसाया था | जब भीम और दुर्योधन का युद्ध हुआ तो भीम के गदो के प्रहार का दुर्योधन पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था क्योंकि दुर्योधन की जांघ को छोड़कर उसका पूरा शरीर लोहे का बन चूका था तब श्री कृष्ण ने भीम को गदा युद्ध के नियमों के विपरीत भीम को दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने को उकसाया जिससे भीम दुर्योधन को घायल कर पायें |
गदा युद्ध में महाभारत काल में नियम हुआ करता था की कोई भी एक दूसरे के कमर से नीचे वाले हिस्से पर प्रहार नहीं कर सकते है, लेकिन श्रीकृष्ण ने नियम को तोड़कर भीम को प्रहार करने के लिए उकसाया जिसके लिए उन्हें बड़े भाई बलराम के क्रोध का सामना भी करना पड़ा था |
जयद्रथ को अर्जुन के सामने लाने को श्री कृष्ण ने जब सूर्य छुपाया
जयद्रथ अभिमन्यु की मृत्यु का कारण था| जब चक्रव्यूह को तोड़ने की बात सामने आई तो अभिमन्यु ने कहा, “में कर सकता हूँ” | अभिमन्यु जब चक्रव्यूह में गया तो जयद्रथ ने कौरवो को बता दिया की अभिमन्यु को चक्रव्यूह से बहार निकलना नहीं आता है जिससे दुर्योधन और सभी कौरवों ने अभिमन्यु को घेरकर मार दिया | जब अर्जुन को यह बात पता चली तो अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली की अगले शाम तक अगर में जयद्रथ को नहीं मार लेता तो में स्वयं अग्नि में समाधी ले लूँगा |
जब कौरवों को अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो पूरी कौरव सेना जयद्रथ की रक्षा के लिए तैनात हो गई क्योंकि सभी जानते थे की अगर अर्जुन प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाया तो वह खुद को समाप्त कर लेगा और कौरव आसानी से पांडवो को हरा देंगे | अगले दिन जब युद्ध प्रारम्भ हुआ तो शाम होने तक भी जयद्रथ सामने नहीं आया तब श्री कृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को छुपा लिया और ऐसा लगने लगा की सूर्यास्त हो गया है जिससे जयद्रथ खुद अर्जुन के सामने आ गया तब श्रीकृष्ण ने सूर्य को वापस निकाल दिया और अर्जुन ने जयद्रथ को मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली |
अर्जुन ने भीष्म पितामह को हराया श्री कृष्ण की चालाकी से
महाभारत के विशाल युद्ध में शुरूआती दिनों में ही कौरवों की तरफ से लड़नेवाले भीष्म पितामह ने पांड्वो की सेना में तबाही मचाना शुरू कर दिया था | पांड्वो का भीष्म पितामह को हराना बहुत मुश्किल होता जा रहा था और सबसे जरुरी था की भीष्म पितामह को रोका जाए | श्रीकृष्ण ने पांड्वो को शिखंडी का राज बताया और युद्ध में शिखंडी को लाने के लिए कहा क्युकी शिखंडी पूर्व जन्म में राजकुमारी अम्बा था जो भीष्म पितामह से बदला लेना चाहती थी |
भीष्म पितामह जानते थे की शिखंडी राजकुमारी अम्बा का ही पुनर्जन्म है जिससे वो शिखंडी को पुरुष होने के बाबजूद महिला ही मानते थे | शिखंडी को देखते ही भीष्म पितामह ने अपने शस्त्र रख दिए क्योंकि भीष्म पितामह ने प्रण लिया था की वो किसी महिला पर शस्त्र नहीं उठाएंगे | इस बात का फायदा उठाकर श्री कृष्ण ने शिखंडी को अर्जुन की ढाल बनाकर अर्जुन को प्रहार करने का आदेश दिया और अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाणो की बारीश कर दी जिससे वो बाणो की शय्या पर पहुच गए और श्री कृष्ण ने अपनी चतुराई से पांड्वो की सेना में होनेवाली में तबाही होने से रोक ली |
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