महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान् शंकर के बारह ज्योतिर्लिंग में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है, जो मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में स्थित है | उज्जैन शहर में माकलेश्वर मंदिर स्थित होने से उज्जैन को महाकाल की नगरी भी कहा जाता है | यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर 6 ठी शताब्दी ईसा पूर्व निर्मित मंदिर है | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को महाकाल कहने के पीछे यह मान्यता है की प्राचीन समय में सम्पूर्ण विश्व का मानक समय यहीं से निर्धारित किया जाता था | महाकाल भगवान की शिवलिंग की स्थापना से राजा चन्द्रसेन व गोपबालक की कथा जुडी हुई है |
महाकालेश्वर मंदिर की सबसे खास बात यहाँ होने वाली भस्म आरती है, जो ताजे मुर्दे की भस्म के द्वारा की जाती थी मगर अब इस प्रथा को बंद कर दिया गया है अब गाय के गोबर के कंडे और कुछ विशेष सामग्री को मिलाकर बनी राख से माहाकाल का श्रंगार किया जाता है | शिवरात्री का त्यौहार यहाँ पर बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है |
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर –
वर्तमान में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन खण्डों में बटा हुआ है निचले भाग में महाकालेश्वर बीच भाग में ओंकारेश्वर तथा उपरी भाग में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है | नागचंद्रेश्वर भगवान् के दर्शन करने को सिर्फ नागपंचमी के दिन मिलते है | इस मंदिर में नेपाल से लाई गयी भगवान् शंकर और माता पार्वती के शेषनाग की शय्या पर विराजमान मूर्ती है जो इस तरह की विश्व की एक मात्र मूर्ती है | मंदिर परिसर के अन्दर एक प्रचीन कुण्ड कोटी तीर्थ बना हुआ है और गर्भगृह में विराजित महाकालेश्वर भगवान की प्रचीन विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग स्थापित है | इसके साथ ही गर्भग्रह के अन्दर ही माता पार्वती गणेश भगवान व श्री कार्तिकेय जी की प्रचीन प्रतिमाये स्थापित है | गर्भग्रह में एक नंदीदीप स्थापित है, जो हमेशा जलता रहता है, गर्भग्रह के ठीक सामने नंदी जी की विशाल प्रतिमा स्थापित है | इन सबके साथ ही मंदिर परिसर में श्री स्वप्नेश्वर माहादेव व् सदाशिव महादेव का मंदिर भी बना हुआ है |
मंदिर का इतिहास – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
इस मंदिर के निर्माण के समय के बारे में तो कोई जानकारी प्राप्त नहीं है मगर इसकी निर्माण शैली और कुछ ऐसे प्रमाण मिले है जिससे यह प्रमाणित होता है की यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है | उज्जैन को पहले अवंतिका कहा जाता था जो महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी हुआ करती थी | विक्रमादित्य के बाद यहाँ पर गुप्त वंश, परमार वंश का प्रमाण भी मिलता है | इसके बाद इस मंदिर पर मुस्लिम शासको और अंग्रेजी हुकूमत के प्रमाण भी देखने को मिलते हैं मगर ज्यादातर यह मंदिर सिंधिया वंश के शासन में सरंक्षित रहा |
आरती व दर्शन का समय – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
बाबा महाकाल का मंदिर भक्तो के लिए सुबह चार बजे से रात के ग्यारह बजे तक खुला रहता है | सबसे पहले सुबह 4 से 6 बजे तक बाबा महाकाल की भस्म आरती की जाती है | इसके बाद 7:30 से 08:15 ( ग्रीष्म ऋतू 07:00 से 07:45 ) तक बाबा की नैवेद्य आरती की जाती है | शाम को 06:30 से 07:00 ( 07:00 से 07:30 ग्रीष्म ऋतू ) बजे तक संध्या आरती की जाती है | इसके बाद रात में 10:30 को बाबा महाकाल की आरती की जाती है, इसके बाद 11:00 बजे मंदिर को बंद कर दिया जाता है | भक्तों के द्वारा महाकालेश्वर मंदिर में माहाकाल को प्रसाद के रूप में लड्डू का प्रसाद लगाया जाता है | आप चाहें तो ऑनलाइन बुकिंग करकर बाबा को प्रसाद अर्पित कर सकते है और आरती की बुकिंग भी कर सकते हैं |
मंदिर के निर्माण से जुडी कथा –
उज्जयनी नगर में एक महान दयालु व् कृपालु राजा चंद्रसेन रहा करते थे जो शंकर भगवान् के बहुत बड़े भक्त थे जिससे उन्हें शंकर भगवान् के अग्रणी भक्त मणिभद्र जी ने एक चिंतामणी नामक मणि प्रदान की जिसका ध्यान मात्र करने से मनुष्य के मन को शांति मिलती थी | चंद्रसेन ने वह मणि अपने गले में धारण कर ली मणि बहुत ही सुंदर और सूर्य के समान तेजवान थी जिससे सभी राजाओ के मन में उसके प्रति लोभ बढता गया और उन्होंने चंद्रसेन के उपर आक्रमण करने के लिए एकत्रित होकर चतुरंगिणी सेना तैयार की और उज्जयिनी को घेर लिया |
राजा चंद्रसेन भयभीत होकर महाकाल के चरणों में पहुंचे और निश्चल मन से प्रभु की आराधना करने लगे | उसी समय उज्जियिनी में रहने वाली एक विधवा ग्वालिन महाकाल मंदिर में दर्शन करने को अपने पुत्र के साथ जाती है | ग्वालिन का पुत्र राजा चंद्रसेन को पूजा करते देख शंकर जी का भक्त हो जाता है और घर वापस आने पर छोटे से पत्थर को शिवलिंग मानकर पूजा करने लगता है | इसी समय उसकी माँ उसे खाना खाने को बुलाती है मगर वह नहीं आता जब बार बुलाने पर भी वह नहीं आता है तो उसकी माँ वहां आ जाती है और देखती है की वह एक पत्थर के सामने हाथ जोड़ कर बैठा है | तो उसे डांटकर वहां से चलने के लिए घसीटती है और शिवलिंग को उठा कर फैक देती है व उस पर चढाई सामग्री को भी नष्ट करदेती है |
जब बालक ऐसा देखता है तो रोते रोते देवा देवा महादेवा का जाप करते करते बेहोश हो जाता है मगर जब उसे होश आता है तो देखता है की जहाँ उसने शिवलिंग स्थापित किया था वहां पर माहालेश्वर भगवान् का विशाल रत्न जडित मंदिर बना हुआ है | घर जाकर माँ को बताने जाता है तो देखता है की उसका टूटा घर एक विशाल राजमहल में बदल चूका है माँ गहनों से लदी गहन निद्रा में हो तब माँ को नींद से जगाता है और माँ को सारा वृतांत कह सुनाता है तब माँ बेटा दोनों मंदिर में जाकर महाकाल भगवान् को दंडवत प्रणाम करते है |
जब उन सभी राजाओं को अपने गुप्तचरों द्वारा इस बात का पता चलता है तो वे राजा चंद्रसेन से मित्रता करने का विचार करने लगते है की जिस राज्य का साधारण सा गोप बालक शिव का इतना बड़ा भक्त है तो राजा तो शिव जी अनन्य भक्त है ऐसे राज्य से बैर करने पर सबका नाश ही होगा | कहा जाता है तभी से भगवान् शंकर स्वयं उज्जैन में निवास करते है |
आसपास पर्यटन स्थल –
बाबा महाकाल के मंदिर माहाकलेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास और भी कई घूमने लायक स्थान है जो निम्न है –
- काल भैरव मंदिर दूरी 5 किमी.
- राम मंदिर घाट दूरी 2 किमी
- कुम्भ मेला प्रत्येक 12 वर्ष बाद अगला मेला 2028 में होगा दूरी 3 किमी
- हरसिद्धि मंदिर दूरी 2 किमी
- कालीदेह महल दूरी 2 किमी
- संत मत्सेय्न्द्रनाथ समाधि दूरी 5 किमी
- जन्तर मंतर दूरी 2 किमी
- भारती हरी गुफा दूरी 3 किमी
- चौबीस खंबा मंदिर दूरी 26 किमी
- चिंतामन गणेश मंदिर दूरी 6 किमी
- राम मंदिर दूरी 3 किमी
- मंगलनाथ मंदिर दूरी 5 किमी
- संदीपनी आश्रम दूरी 4 किमी
- इस्कोन मंदिर दूरी 2 किमी
- बड़े गणेश का मंदिर दूरी 2 किमी
- शानि मंदिर दूरी 8 किमी
मंदिर कैसे पहुंचे –
बाबा महाकाल का मंदिर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग आप वायु मार्ग, रेल मार्ग और सडक मार्ग तीनो के द्वारा आसानी से आ सकते हैं –
वायु मार्ग द्वारा – उज्जैन में अपना खुद का एयरपोर्ट नहीं है मगर आप उज्जैन के सबसे नजदीकी लगभग 60 किमी. अहिल्याबाई एयरपोर्ट इंदौर पहुँच कर वहां से आसानी से बस के द्वारा उज्जैन आ सकते है |
रेल मार्ग द्वारा – रेल मार्ग द्वारा उज्जैन लगभग सभी बड़े शहरों से जुडा हुआ है इसलिए आप आसानी से रेल मार्ग द्वारा उज्जैन आ सकते हैं |
सड़क मार्ग द्वारा – सड़क मार्ग द्वारा भी उज्जैन सभी बड़े शहरों से जुडा हुआ है आप आसानी से उजैन सडक मार्ग द्वारा आ सकते है |