ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान् शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में से प्राक्रतिक रूप से निर्मित चौथा सदैव जलमग्न ( शिवलिंग के चारों तरफ पानी ) रहने वाला ज्योतिर्लिंग है | यह मंदिर मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर से 77 किमी एवं मोरटक्का से 13 किमी दूर मधांता नगर में नर्मदा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित भारत का एक मात्र मंदिर है | इस जगह पर नर्मदा नदी दो भागो में बंटकर मांधाता या शिवपुरी नाम के दीप का निर्माण करती है | इस द्वीप की लम्बाई लगभग 4 किमी व चौड़ाई 2 किमी है | यह द्वीप ॐ की आक्रति में स्थित है, जिससे यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग को ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है |
ओमकारेश्वर मंदिर
इस टापू पर लगभग 67 मंदिर स्थापित है, माना जाता है कि यहाँ 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं | इस मंदिर से जुडी मान्यता है कि तीनों लोकों में भ्रमण करने के पश्चात भगवान् शंकर रात्री में इसी जगह पर आकर विश्राम करते हैं | इस मंदिर की देखरेख व संचालन का कार्य श्री ओमकारेश्वर मंदिर ट्रस्ट द्वारा देखा जाता है |
मंदिर परिसर –
ओमकालेश्वर मंदिर एक पांच मंजिला इमारत में स्थित है जिसमे पहली मंजिल पर महाकालेश्वर महादेव, दूसरी मंजिल पर ओमकारेश्वर महादेव, तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और आखिरी पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव स्थापित हैं | इसके अलावा ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की परिक्रमा के मार्ग पर कई मंदिर व आश्रम स्थापित हैं | नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर अम्लेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है | ओमकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर पूरे भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ भगवान् शंकर माता पार्वती के साथ रात्री में विश्राम करते हैं | भगवान के लिए रात में चौंसर पासा खेलने की व्यवस्था भी की जाती है को सुबह उलट पुलट मिलती है जिससे भगवान् के यहाँ होने का प्रमाण मिलता है | पुजारियों द्वारा यहाँ महादेव की संध्या आरती और एक गुप्त आरती भी की जाती है |
धार्मिक मान्यता –
हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार समस्त तीर्थो का जल लाकर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करने से ही उन तीर्थों का पुण्य लाभ मिलता है | यहाँ से निकलने वाली नर्मदा नदी का भी हिन्दू धर्म में विशेष महात्व है, पुराणों के अनुसार जमुना जी में 15 दिन और गंगा जी में 7 दिन स्नान करके मिलने वाला पुण्य लाभ नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है | इस द्वीप पर दो ज्योति स्वरूप शिवलिंगों के साथ 108 प्रभावशाली शिवलिंग स्थापित हैं |
मंदिर से जुडी कथा –
ओमकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के निर्माण को लेकर कई कथाएं प्रचलित है जिनमे से कुछ निम्न प्रकार हैं :
पहली कथा –
मान्यतानुसार इस ओमकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिवलिंग की स्थापना धन के देवता कुबेर ने भगवान् शिव की तपस्या करते समय की थी | तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर से कुबेर को धन का देवता बनाया और कुबेर को स्नान करने के लिए अपने बालों से यहाँ कावेरी नदी को उत्पन्न किया जो ओंकार पर्वत की परिक्रमा करके नर्मदा नदी में मिलकर कावेरी नर्मदा संगम बानाती है | यहाँ दीपावली के धनतेरस की पूजा पर गेहूं की बाल चड़ने का विशेष महत्त्व है |
दूसरी कथा –
भगवान् शंकर के अनन्य भक्त राजा मान्धाता ने इसी जगह पर महादेव की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान् प्रकट हुए और राजा मान्धाता से वरदान मांगने को कहा तब राजा ने कहा की आप जन कल्याण के लिए यहाँ पर स्थाई रूप से निवास करें | माना जाता है तभी से महादेव यहाँ साक्षात् रूप से माता पार्वती के साथ रात्री विश्राम करते हैं |
तीसरी कथा –
एक बार नारयण भक्त देव मुनि नारद जी घुमते घुमते पर्वतों के राजा विंध्यांचल पर्वत के पास पहुंचे तो पर्वतों के राजा ने देव मुनि का आदर सत्कार के साथ स्वागत किया और अहंकार वश वोला की मई सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है | इस पर अहंकार नाशक देवमुनी ने विंध्याचल पर्वत का अहंकार का नाश करने के लिए कहा की आप थोडा नीचे रह गए हो और मेरु पर्वत की चोटियाँ देवलोक तक पहुँच गई हैं | आप शायद वहां तक कभी भी नहीं पहुँच पायेंगे | तब विंध्याचल पर्वत को अपने ऊपर पछतावा हुआ और महादेव की तपस्या करने का मन बनाकर एक मिटटी से बनी शिवलिंग स्थापित करके तपस्या शुरू कर दी |
तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तब गिरिराज विंध्याचल ने कहा की मेरे कार्य की सिद्धि के लिए मुझे बुद्धि प्रदान करें तब शिवजी वरदान देकर जाने लगे | उसी समय देवतागण और ऋषि मुनि वहां पहुँच जाते हैं और शिवजी से यहीं साक्षात् रूप से निवास करने की विनती करते हैं | शिवजी के तथास्तु कहते ही वहां स्थित शिवलिंग दू भागो में विभक्त हो गया एक प्रणव शिवलिंग ओमकारेश्वर और दुसरा पार्थिव शिवलिंग माम्लेश्वर के नाम से विख्यात हुआ | माना जाता है तभी से देवो के देव महादेव भगवान शंकर साक्षात् रूप से यहाँ निवास करते हैं |
आरती व दर्शन का समय –
ओमकालेश्वर मंदिर भक्तो के लिए सुबह 5 बजे रात 10 बजे तक खुला रहता है, जिसमे प्रतिदिन 3 बार आरती की जाती है | प्रथम आरती सुबह 5 बजे से 5:30 तक जो मंदिर की ट्रस्ट के द्वारा कराई जाती है इसके बाद दोपहर में 12:20 से 01:00 बजे तक आरती होती है जो सिंधिया परिवार के द्वारा करवाई जाती है | आखिरी संध्या आरती 09:00 से 0935 तक होती है यह आरती होलकर वंश के द्वारा करवाई जाती है | भक्तों के द्वारा नर्मदा के जल से भरे पात्र, पुष्प, फल, नारियल और लड्डू प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है |
प्रमुख त्यौहार –
ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिवरात्री और सावन का महीना विशेष उल्लास और धूम धाम के साथ मनाया जाता है | इसके साथ ही प्रत्येक सोमवार को ओमकारेश्वर भगवान् पालकी में स्वर्णजडित तिर्मुखी मूर्ती के रूप में विराजित होकर भक्तो व् पुजारियों के साथ एक जुलुस के साथ नगर भ्रमण को निकलते है | इसे डोला कहा जाता है, यह डोला सबसे नर्मदा नदी के तट पर जाता है जहाँ पूजा अर्चना के बाद यह नगर भ्रमण को जाता है |
पर्यटन स्थल –
इस मंदिर के आस पास के क्षेत्र में लगभग 67 मंदिर स्थापित है जिनमे से कुछ प्रमुख मंदिरों में आप दर्शन कर सकते हैं जो निम्न हैं :
- अन्धकेश्वर मंदिर
- झुमकेश्वर मंदिर
- नवग्रहेश्वर मंदिर
- अवि मुक्तेश्वर मंदिर
- महात्मा दरियाईनाथ की गद्दी
- श्री बटुकभैरव मंदिर
- मंगलेश्वर मंदिर
- नागचन्द्रेश्वर मंदिर
- दत्तात्रेय मंदिर
- काले – गोरे भैरव मंदिर
- महाकालेश्वर मंदिर
- अन्नपूर्णा मंदिर
- व्र्हदेश्वर मंदिर
- मामलेश्वर मंदिर
- पंचमुखी गणेश मंदिर
आवागमन –
मंदिर तक पहुँचने के लिए आप हवाई, रेल और सडक तीनों मार्गों से यात्रा करके आसानी से पहुँच सकते हैं –
हवाई मार्ग द्वारा – अगर आप हवाई मार्ग द्वारा ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जाना चाहते हैं तो लगभग 77 किमी दूर इंदौर एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है, इसके अलावा 133 किमी दूर उजैन दूसरा नजदीकी एयरपोर्ट है, यहाँ से आप बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से मंदिर पहुँच सकते हैं |
रेल मार्ग द्वारा – रेल मार्ग द्वारा ओमकारेश्वर जाने के लिए सबसे नजदीक रतलाम – इंदौर – खंडवा मार्ग पर ओमकारेश्वर रोड स्टेशन है | यहाँ से आप टैक्सी के द्वारा आसानी से मंदिर तक जा सकते हैं |
सडक मार्ग द्वारा – सडक मार्ग द्वारा आप आसानी से मंदिर तक जा सकते हैं ओमकारेश्वर के आसपास से राज्य परिवाहन निगम द्वारा नियमित रूप से बसे संचालित की जाती हैं |