ज्वालामुखी मंदिर माता के 51 शक्ति पीठों में से एक हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी से लगभग 30 किमी की दूरी पर कोहला में स्थित एक पावन प्राचीन मंदिर है | शक्ति पीठ वह स्थान होते हैं जहाँ पर माता सती के अंग आकर गिरे थे | इस मंदिर की जगह पर माता सती की जीभा आकर गिरी थी | इस मंदिर की सबसे ख़ास बात है की यहाँ पर बिना किसी घी और तेल के एक ज्वाला सदैव निकलती रहती है | ज्वालामुखी मंदिर को जोतावाली माता और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है | इस मंदिर की खोज करने का श्रेय पांड्वो को जाता है वहीँ इस नगर को सही तरीके से बसाने का काम मुगल सम्राट अकबर के द्वारा किया गया था | इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद द्वारा तथा पुनर्निर्माण का श्रेय माहाराजा रणजीत सिंह व राजा संसारचंद को जाता है |
ज्वालामुखी मंदिर –
सम्राट अशोक इस रहस्यमयी ज्वाला से बहुत अधिक प्रभावित थे और मन में माता के प्रति अटूट आस्था, श्रद्धा और भक्ति होने के कारण यहाँ पर दर्शन करने हेतु आते रहते थे | अशोक के द्वारा यहाँ पर माता को एक सोने की क्षत्री अर्पित की गयी थी जो आज भी छत के रूप में ज्वाला रुपी माता की बरसात के पानी से रक्षा करती है | इस जगह पर माता की नौ अलग अलग ज्योतियाँ प्रज्ज्वलित होती हैं जो क्रमशः महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी के नाम से जानी जाती हैं | ज्वालामुखी मंदिर के पास में ही बाबा गोरखनाथ का मंदिर भी बना हुआ है इस मंदिर को गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है |
मंदिर के निर्माण से जुडी कथा –
मंदिर से जुडी एक कथा प्रचलित है कि सती माता की जीभा यह गिरने से ज्वाला उत्पन्न हुई जिसे सबसे पहले एक ग्वाले ने देखा | कथा इस प्रकार है कि एक ग्वाले की गाय जब जंगल में चरने जाती थी तो कोई उसका दूध निकाल लेता था | ग्वाले ने उस चोर का पता लगाने को एक दिन गाय का पीछा किया तो उसने देखा की जंगल से एक छोटी से लड़की निकलकर गाय का दूध पी जाती है | जब वह उस लड़की के पीछे गया तो उसने देखा की यहाँ तो जमीन से अपने आप ही ज्वाला निकल रही है |
ग्वाले ने इस जगह की बात जा कर उस राज्य के राजा को बतायी तो राजा ने इस जगह पर आकर देखा तो ग्वाले के बात सत्य निकली | राजा भूमि चंद ने इस जगह पर एक विशाल भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और ब्राह्मणों को बुलाकर विधिवत पूजन करवाके उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का काम सौंप दिया | राजा द्वारा जिन पंडितो को बुलाकर मंदिर की पूजा करवायी गई थी आज भी उन्ही पंडितो के वंशज के द्वारा यहाँ पूजा पाठ किया जाता है |
मंदिर से जुडी मान्यता –
मान्यता है की गोरखनाथ माता के अनन्य भक्त थे एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तो उन्होंने माता से कहा की आप अग्नि को जलाकर रखिये में कुछ मांग कर लाता हूँ | माता ने अग्नि जलाकर पानी को गर्म किया और गोरखनाथ का इन्तजार करने लगी | तभी से यह अग्नि बिना किसी घी और तेल के जल रही है | मान्यता है की कलियुग के बाद सतयुग आने पर गोरखनाथ माता के पास लौट कर वापस आयेंगे |
गोरखनाथ डिब्बी –
माता ज्वालामुखी के मंदिर के पास में ही एक गोरखनाथ का मंदिर बना हुआ है | गोरखनाथ मंदिर को गोरखनाथ डिब्बी भी कहा जाता है | जिसके पास एक कुंड बना हुआ जिसका पानी देखने पर खौलता हुआ प्रतीत होता है मगर इस पानी को हाथ लगाने पर पानी ठंडा प्रतीत होता है |
प्रमुख त्यौहार –
ज्वाला मुखी माता के मंदिर में नवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूम धाम और हर्षो उलास के साथ मनाया जाता है | नवरात्रि के नौ दिनों में यहाँ आने वाले श्रधालुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है | मान्यता है की नवरात्रि के दिनों में ज्वालामुखी मंदिर में दर्शन और पूजा पाठ करने से समस्त कष्ट और पापों से मुक्ति मिल जाती है | माता की नौ दिन आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण ही जाती है |
आरती – दर्शन का समय व प्रसाद –
माता ज्वाला मुखी मंदिर भक्तो के लिए गर्मियों में 5 बजे से रात के 10 बजे तक और सर्दियों में सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक खुला रहता है | प्रतिदिन माता की तीन बार आरती की जाती है गर्मियों में सुबह 5-6, संध्या आरती 7 से 8 और रात्री आरती 9 से 10 बजे तक | वहीं सर्दियों में आरती के समय में परिवर्तन होकर सुबह 6 से 7, संध्या आरती 6 से 7 और रात्री आरती 8 से 9 बजे तक सम्पन्न होती है | भक्तो के द्वारा माता को प्रसाद के रूप में नारियल और कुछ मीठा अर्पित किया जाता है |
अकबर से जुडी कथा –
एक बार माता का परम भक्त ध्यानुभक्त माता के दर्शन करने के लिए अपने गाँव से कुछ भक्तो को साथ लेकर निकला | अकबर के राज्य दिल्ली से निकलने पर अकबर की सेना ने ध्यानुभक्त को पकड कर अकबर के सामने पेश किया की या एक बड़े काफिले के साथ हमारे राज्य से निकल रहा था | तब अकबर ने पूछा की कहा जा रहे थे, ध्यानुभक्त ने जबाब दिया की वह अपने साथियों के साथ माँ ज्योतावाली के दर्शन करने को जा रहा है | अकबर ने ध्यानुभ्क्त की भक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उसके घोड़े का सर काट कर अलग कर दिया और कहा अपनी माता से इसे वापस से जिन्दा करवा लो |
अकबर से अनुमति लेकर वह माता के दर्शन करने पहुंचा दर्शन किये और माता से विनती करने लगा की हे माँ जगत जननी परमेशवरी मेरे घोड़े को जिन्दा करदो नहीं तो में यही प्राण त्याग दूंगा | जब माता ने कोई जबाव नहीं दिया तो उसने अपनी तलवार से अपना सर काट कर माता के चरणों में अर्पित कर दिया | सर अर्पित करते ही माता प्रकट हुई और कहा की तुम्हारे साथ तुम्हारे घोड़े का भी सर जुड़ गया है |इधर अकबर और उसकी सेना में खलबली मच गयी की यह चमत्कार कैसे हुआ तब उसने अपने सैनिकों को माता के दरबार में सच्चाई पता करने को भेजा | सैनिकों ने लौटकर अकबर को बताया की वहां एक ज्वाला जलती रहती है जिसकी पूजा की जाती है |
सैनिकों ने ज्वाला के ऊपर लोहे के मोटे मोटे तवे रखे मगर ज्वाला उसे फाड़कर निकल आई नहर का रुख ज्वाला की तरफ किया गया मगर ज्वाला न बुझी | इससे प्रभावित होकर अकबर ने अपने मंत्रियों से सलाह लेकर मंदिर जाने का मन बनाया | अकबर सवा मन का सोने का क्षत्र लेकर मंदिर गया और माता की पूजा करने के बाद अहंकार में बोला की में सवा मन का शुद्ध सोने का क्षत्र लेकर आया हूँ | इसके बाद उस क्षत्र में एक ज्वाला उत्पन्न हुई जिससे क्षत्र नीचे गिर गया जो अजीब से धातु में परिवर्तित हो गया |
पर्यटन स्थल –
ज्वालामुखी मनिदर के आसपास और भी कई दार्शनिक स्थल मौजूद है जहाँ जाकर आप दर्शन कर सकते हैं :
- माता तारा देवी मंदिर
- श्री रघुनाथ जी मंदिर
- अष्टभुजा माता मंदिर
- नागिनी माता मंदिर
- अर्जुन माता मंदिर आदि |
आवागमन –
हवाई मार्ग द्वारा – ज्वालामुखी मंदिर से सबसे नजदीक गगल एयरपोर्ट लगभग 45 किमी की दूरी पर है | यहाँ से आप बस वा कार के द्वारा आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं |
रेल मार्ग द्वारा – रेल मार्ग द्वारा दिल्ली और शिमला तक पहुँच कर वहां से बस वा कार के द्वारा आसानी से ज्वालामुखी मंदिर पहुँच सकते हैं |
सड़क मार्ग द्वारा – सडक मार्ग द्वारा आप दिल्ली और शिमला होते हुए आसानी से ज्वालामुखी मंदिर पहुँच सकते हैं | दिल्ली व शिमला से हिमांचल प्रदेश की राज्य परिवहन की बसों के द्वारा तथा दिल्ली सरकार द्वारा ज्वालामुखी मंदिर जाने वाली बस के द्वारा आप मंदिर तक पहुँच सकते हैं |