एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग ऐश्वर्य धन वैभव विहीन हो गया।तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए।भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया।साथ ये भी बताया कि समुद्र मंथन को अमृत निकलेगा जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे।यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई। वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकि नाग की नेती बनाई गई। मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वन्तरि सहित 14 रत्न निकले। तो आइये जानते हैं समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नो का रहस्य।
1.हलाहल (कालकूट विष)
समुंद्र मंथन से सबसे पहले कालकूट नाम का विष निकला था। विष को देखकर सारे देवता और असुर काफी डर गए थे। तब संसार की रक्षा करने हेतु भगवान शिव ने उस भयंकर कालकूट विष को पी लिया।इसका अर्थ है की परमात्मा हर इंसान के मन में ही स्थित होते हैं।अगर हम सबको परमात्मा रुपी अमृत की इच्छा है। तो सबसे पहले हम सबको अपने मन को मथना पड़ेगा। जब हम अपने मन को मथेंगे तभी अंदर से बुरे विचार रुपी विष बाहर निकलेगा।हम सभी को बुरे विचारों को अपने परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए।
2. कामधेनु
समुंद्र मंथन के पश्चात् दूसरे नंबर पर निकली कामधेनु गाय।वह अग्निहोत्र यज्ञ की सामग्री उत्पन्न करने वाली गाय थी। इसलिए कामधेनु गांव को ब्रह्मवादी ऋषि मुनियों ने ग्रहण कर लिया। दोस्तों कामधेनु प्रतीक है मन की निर्मलता का। क्योंकि किसी भी इंसान के अंदर से बुरे विचार निकल जाने पर उसका मन निर्मल हो जाता है।ऐसी स्थिति में उस इंसान का परमात्मा तक पहुंचना आसान हो जाता है।
3. उच्चैश्रवा घोड़ा
तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला।जिसका रंग सफेद था इस घोड़े को असुरों के राजा बलि ने ग्रहण किया। मानव जीवन की दृष्टि से देखें तो उच्चैश्रवा घोड़ा मन की गति का प्रतीक है। दुनिया में मन की गति को ही सबसे अधिक गतिशील मानी गई है। अगर आप अमृत रूपी परमात्मा की प्राप्ति चाहते हैं तो आपको अपनी मन की गति पर नियंत्रण रखना होगा। तभी आप परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।
4.ऐरावत हाथी
समुंद्र मंथन के क्रम में चौथ के नंबर पर ऐरावत हाथी निकला था। जिसके 4 बड़े बड़े दांत थे। जिसकी चमक कैलाश पर्वत से भी अधिक थी। ऐरावत हाथी को देवराज इंद्र ने अपने पास रख लिया। दोस्तों एरावत हाथी प्रतीक है बुद्धि का। उसके चार दांत लोभ,मोह,वासना और क्रोध का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोस्तों शुद्ध व निर्मल बुद्धि से ही हम विकारों पर काबू रख , भगवान की प्राप्ति कर सकते है।
5 कौस्तुभ मणि
पांचवें स्थान पर कौस्तुभ मणि निकला। जिसे भगवान श्री विष्णु ने अपने हृदय पर धारण कर लिया। दोस्तों कौस्तुभ मणि प्रतीक है भक्ति का। जब आप के मन से सारे विकार निकल जाएंगे तब आपके मन में भक्ति ही शेष रह जाएगी।
6 कल्पवृक्ष
समुंद्र मंथन के दौरान छठे नंबर पर कल्पवृक्ष निकला था।सारी इच्छाओं को पूरा करने वाले कल्पवृक्ष को देवताओं ने मिलकर स्वर्ग में स्थापित कर दिया। कल्पवृक्ष प्रतीक है हम सबकी इच्छाओं का। यानि अगर हम सब के अगर मन मे इच्छाएं होगी तो हम परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते।
7 रंभा अप्सरा
अप्सरा रम्भा समुंद्र मंथन के दौरान सातवे क्रम पर निकली थी। वह देखने में बहुत ही सुंदर थी। वो सुंदर वस्त्र और आभूषण पहने हुए थी। उसकी चाल मन को लुभाने वाली थी। रंभा अप्सरा को भी देवताओं ने अपने पास ही रख लिया। दोस्तों अप्सरा प्रतीक है इंसान के मन में छुपी वासना का। जब कभी भी हम किसी विशेष काम में लगे होते हैं। तब हम सबके अंदर वासना आकर हम सबका मन विचलित करने का प्रयास करती है। उस स्थिति में हम सब को अपने मन पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है।
8 देवी लक्ष्मी
समुंद्र मंथन के दौरान आठवें स्थान पर निकली थी देवी लक्ष्मी। देवी लक्ष्मी को देखते ही असुर,देवता और ऋषि मुनि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं। लेकिन देवी लक्ष्मी ने भगवान श्री हरि विष्णु को पति रूप में स्वीकार कर लिया। लक्ष्मी प्रतीक हैं धन,वैभव, ऐश्वर्य व अन्य संसारिक सुखों का। जब हम सब परमात्मा रुपी अमृत को प्राप्त करना चाहते हैं तो सांसारिक सुख भी हमें अपनी ओर खींचते हैं। पर हम सब को उस ओर ध्यान ना देकर केवल परमात्मा की भक्ति में ही ध्यान लगाना चाहिए।
9 वारुणी देवी
देवी लक्ष्मी के बाद नौवें क्रम पर वारुणी देवी निकली थी। सभी देवताओं की अनुमति से इसे असुरों ने ले लिया। दोस्तों वारुणी का अर्थ होता है मदिरा यानी नशा। – यह भी एक बुराई है। दोस्तों इंसान में नशा कैसा भी हो संसार और समाज के लिए वह बुरा ही होता है। अगर हम सबको परमात्मा को पाना है तो हम सब को सबसे पहले नशा छोड़ना होगा।
10 चंद्रमा
समुद्र मंथन के दौरान दसवें क्रम पर चंद्रमा की उत्तपति हुई। जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। दोस्तों चंद्रमा शीतलता का का प्रतीक है। जब हम सबका मन बुरे विचार,लालच,वासना,नशा आदि से मुक्त हो जाएगा। तब हम सबका मन चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा। परमात्मा को पाने के लिए हम सब के पास ऐसे ही मन की आवश्यकता है। \
11 पारिजात वृक्ष
ग्यारहवें नंबर पर पारिजात वृक्ष की उत्तपति हुई थी।पारिजात वृक्ष की विशेषता थी की इसे छूने से ही शरीर की सारी थकान मिट जाती थी। इसलिए इसे भी देवताओं ने अपने पास ही रख लिया। पारिजात वृक्ष का अर्थ है:किसी भी मनुष्य को सफलता प्राप्त होने से पहले मिलने वाली शांति। जब हम परमात्मा के निकट पहुंचते हैं तो हमारी थकान मिट जाती है। हम सबके मन में शांति का एहसास होता है।
12 पांचजन्य शंख
समुंद्र मंथन से 12वें क्रम में पांचजन्य शंख निकला था। इस शंख को भगवान श्री हरि विष्णु ने ग्रहण किया। दोस्तों शंख को विजय का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही शंख की ध्वनि बहुत ही ज्यादा शुभ मानी गई है। हमारे पुराण कहते हैं कि जब हम सब परमात्मा रुपी अमृत से एक कदम की दूरी पर होते हैं तो मन का खालीपन ईश्वरीय नाद से भर जाता है। ऐसी स्थिति में जाकर हम सबको परमात्मा से साक्षात्कार होता है।
13 भगवान धन्वंतरि
समुंद्र मंथन से सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे। भगवान धनवंतरी प्रतीक हैं निरोगी तन व निर्मल मन का। दोस्तों जब हमसब का तन निरोग और मन निर्मल होगा। तभी हम सबको परमात्मा की प्राप्ति होगी।
14 अमृत
समुंद्र मंथन में 14 नंबर पर अर्थात सबसे अंतिम में अमृत निकला था। इसका अर्थ यह है कि पांच कर्मेंद्रियां, पांच जननेन्द्रियां तथा अन्य चार। मन बुद्धि चित्त और अहंकार। अगर हम इन सभी पर नियंत्रण करने में कामयाब रहे तभी हम सबको अपने जीवन में परमात्मा प्राप्ति हो पाएगी।