एक छोटा सा बालक ध्रुव, तारा बन गया। लेकिन कौन था वो बालक ?किस वजह से मनुष्य योनि में जन्मा एक बालक तारा बन गया ?और उसको तारा किसने बनाया। इन सब बातों से हम अनभिज्ञ हैं तो चलिए आज के पोस्ट में जानते हैं इन सभी प्रश्नो के उत्तर।
मनु कौन थे ?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मनु इस संसार के प्रथम मनुष्य थे जिन्हें स्वंयभू मनु भी कहा जाता है।वे ब्रह्मा जी से प्रकट हुए थे। उनके साथ ही प्रथम स्त्री भी उत्पन्न हुई थी जिसका नाम था शतरूपा। मनु और शतरूपा के विवाह के पश्चात् दो पुत्र हुए – प्रियव्रत और उत्तानपाद। बड़े होने पर प्रियव्रत का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती के साथ हुआ। जिनसे उन्हें दस पुत्र प्राप्त हुए। जबकि उत्तानपाद की सुनीति व् सुरुचि दो पत्नियां थीं। सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र प्राप्त हुए।
ध्रुव कैसे बना तारा
एक दिन की बात सुनीति का पुत्र ध्रुव राजा की गोदी में बैठा था।ध्रुव को राजा की गोदी में बैठा देख उसके सौतेली माँ सुरुचि को बहुत ईर्ष्या हुई और वह क्रोधित हो गई। क्रोध में उसने ध्रुव को राजा की गोदी से हटाते हुए कहा कि यह स्थान मेरे पुत्र का है।महाराज की गोदी में उनका वही पुत्र बैठ सकता है जिसने मेरे गर्भ से जन्म लिया हो। सुरुचि की बातों से ध्रुव को बहुत दुःख हुआ और उसने जाकर अपनी माँ को सारी बात बताई। तब ध्रुव की माता सुनीति ने कहा की तुम्हारी सौतेली माँ के कारण तुम्हारे पिता हम सब से दूर हो गए हैं। इसलिए तुम भगवन को ही अपना सहारा बनाओ।
माता की बातें बालक ध्रुव के ज्ञान चक्षु खुल गए और वो सभी मोह त्यागकर तपस्या करने चला गया। जब वो तपस्या के लिए जा रहा था तो रास्ते में उसकी भेंट नारद मुनि से हुई। नारद मुनि ने बालक ध्रुव को बहुत समझाया पर वह नहीं माना। तब देवर्षि नारद ने ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मन्त्र ध्रुव को दीक्षा के रूप में दिया। उसके बाद ध्रुव ने यमुना के तट पहुंचा और मन्त्र के उच्चारण से भगवान की आराधना आरम्भ की। कठोर तपस्या से उनकी ध्वनि वैकुण्ठ में भी गूँज गूंजने लगी।जिससे भगवान विष्णु योग निद्रा से उठ गए।
बालक ध्रुव की कठोर तपस्या
ध्रुव की आराधना को देख भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए और ध्रुव के सामने प्रकट हुए। नारायण ने कहा हे राजकुमार तुम्हारी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी। मैं तुम्हे ऐसा लोक प्रदान करूँगा जिसके आधार पर सभी ग्रह नक्षत्र घूमते हैं। और जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र परिक्रमा करता है। इस लोक का कभी नाश नहीं होता और सप्तऋषि भी नक्षत्रों के साथ इस लोक की प्रदक्षिणा करते हैं। इस लोक का नाम तुम्हारे नाम ओर ही होगा अर्थात ध्रुव लोक के नाम से जाना जायेगा। तुम इस लोक में 36 सहस्त्र वर्ष तक शासन करोगे। और तुम ऐसे ऐश्वर्य का भोग करके अंत में मेरे लोक को प्राप्त होंगे।और भगवान के इस वरदान के पश्चात् ध्रुव एक तारे में परिवर्तित हो गए।