बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मंदिर भारतीय राज्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है । यह मंदिर हिंदू देवता भगवान् विष्णु जी को समर्पित है और यह स्थान धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों चार धाम में से एक है । इस मंदिर का निर्माण सातवीं नौवीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं। मंदिर के नाम पर ही इसके इर्द-गिर्द बसे नगर को बद्रीनाथ ही कहा जाता है । भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान हिमालय पर्वतमाला के मध्य गढ़वाल क्षेत्र में समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । जाड़ों की ऋतु में हिमालय क्षेत्र के मौसमी दिशाओं के कारण मंदिर वर्ष के 6 माह की सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है । यह भारत के कुछ सबसे व्यस्त तीर्थ स्थलों में से एक है । बद्रीनाथ मंदिर में आयोजित सबसे प्रमुख पर्व माता मूर्ति का मेला है, जो पृथ्वी पर माँ गंगा नदी के आगमन की खुशी में मनाया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण –
16 वीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवा कर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी और यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था । शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है । यहां भगवान विष्णु का विशाल प्रकृति की गोद में स्थित है । यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप और सभा मंडप । बद्रीनाथ जी के मंदिर में 15 मूर्ति स्थापित है । साथ ही साथ मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है । इस मंदिर को धरती का बैकुंठ और भी कहते हैं ।
मंदिर की स्थापना से जुडी कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार यह है स्थान शिव भूमि के रूप में व्यवस्थित था । भगवान विष्णु अपने ध्यान योग के लिए स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिव भूमि का स्थान बहुत भा गया । उन्होंने वर्तमान चरण पादुका स्थल पर गंगा और अलकनंदा के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे उनके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती और शिव जी बालक के पास आए और उस बालक से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए । तो बालक ने ध्यान योग करने के लिए शिव भूमि का स्थान मांग लिया यही पवित्र स्थान आज बद्री विशाल के नाम से जाना जाता है ।
बद्रीनाथ नाम कैसे पड़ा –
इसके पीछे एक रोचक कथा है यह कहते हैं कि एक बार देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई । तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या करने लगे । जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुंच गई जहां भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे उस समय उस स्थान पर बद्री ( बेरों के पेड़ ) का वन था । यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया और इस जगह का नाम बद्री नाथ पड़ा ।
मंदिर में आरती व दर्शन का समय –
बद्रीनाथ मंदिर भक्तों के लिए सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है | इस में बद्रीनाथ भगवान् की दिन दो बार आरती सुबह 04:30 बजे महाभिषेक और आरती व रात्री में 08:30 बजे रात्री आरती होती है | भगवान् को प्रसाद के रूप में गरी का गोला, मिश्री, कच्चे चने के दाल और वन की तुलसी की माला अर्पित किया जाता है |
प्रमुख त्यौहार –
पावन बद्रीनाथ मंदिर में मुख्य रूप से दो त्यौहार माता मूर्ति का मेला और बद्री केदार त्यौहार बहुत ही धूम धाम से हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है | इन दोनों त्योहारों के समय पर दूर दूर से आने वाले श्रधालुओं की यहाँ अच्छी खासी संख्या देखने को मिलती है |
मंदिर से जुडी मान्यता –
यहाँ बद्रीनाथ मंदिर से जुडी मान्यता है की इस मंदिर में दर्शन मात्र करने से ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा मिल जाता है | यहाँ ऊँची शिला पर एक ब्रह्म कपाल नाम की जगह स्थित जहाँ पितरो को तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है | बद्रीनाथ मंदिर में पूजा करने वाले ब्राह्मण आदि गुरु शंकराचार्य जी के अनुनायी होते हैं जो रावल कहलाते हैं | रावल के लिए स्त्री का परामर्श करना भी पाप माना जाता है |
पर्यटन स्थल –
बद्रीनाथ में आप बद्रीनाथ मंदिर के अलावा और भी कई दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं :
- चरनपादुका
- वसुधारा झरना
- नीलकंठ पर्वत
- तप्त कुंड
- भीम पुल
- नारद कुंड
- व्यास गुफा
- ब्रहम कपाल
- सरस्वती नदी
- माता मूर्ति मंदिर
- अल्का पूरी
- पांडूकेश्वर
- गणेश गुफा
- सतोपंथ झील
आवागमन –
बद्रीनाथ जाने के लिए आप हवाई, रेल और सडक तीनों मार्गो का प्रयोग कर सकते हैं :
हवाई मार्ग द्वारा – हवाई मार्ग द्वारा बद्रीनाथ पहुँचने के लिए बद्रीनाथ से सबसे नजदीक लगभग 317 किमी दूर जॉली ग्रांट नाम एयरपोर्ट है | यहाँ से आप बस या कार के जरिये आसानी से बद्रीनाथ मंदिर तक पहुँच सकते हैं |
रेल मार्ग द्वारा – रेल मार्ग द्वारा बद्रीनाथ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश बद्रीनाथ से लगभग 300 किमी दूर स्थित है | यहाँ से आप बस या ट्रेन के द्वारा आराम से बद्रीनाथ दर्शन करने को पहुँचसकते हैं |
सडक मार्ग द्वारा – ऋषिकेश, हरिद्द्वार, देहरादून और दिल्ली से सडक मार्ग के द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है | यहाँ से आप बस, कार या अपने साधन से आराम और आसानी से मंदिर तक जा सकते हैं |