भीमाशंकर मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से 6 वां ज्योतिर्लिंग हैं जो महाराष्ट्र में पुणे के पास उत्तर पश्चिम दिशा में 50 किमी दूर साहाद्री पहाड़ियों की घाटी पर स्थित शिराधन नामक गांव में स्थित प्राचीन मंदिर हैं | भीमाशंकर मंदिर को मोटेश्वर भी कहा जाता है और यहीं से भीमा नदी का उद्गम भी होता है | महारष्ट्र में पेशवाओं के राजा नाना फडनविस ने इस मंदिर में शिखर व सभामंडप बनाबाकर इसे आधुनिक रूप प्रदान किया था | इस मंदिर के आसपास के वातावरण मनमोहक पहाड़ियां और दुर्लभ जानवर व पक्षी आदि के कारण न सिर्फ या भक्तों बल्कि पर्यटकों की भी भीड़ लगी रहती हैं | भीमाशंकर मंदिर में दर्शन और इसके आसपास के पर्यटक स्थलों को घूमने के लिए सबसे सही समय सितम्बर से लेकर फरवरी का रहता हैं |
भीमाशंकर मंदिर परिसर –
भीमाशंकर मंदिर का निर्माण मुख्यतः नागर शैली में हुआ है, मगर किसी किसी हिस्से में इंडो आर्यन शैली भी देखने को मिलती है | मंदिर के शिखर को कई प्रकार के पत्थरों को एक साथ मिलाकर बनाया गया है | इस मंदिर में महादेव के शिवलिंग के साथ माता पार्वती का मंदिर भी है, माता पार्वती को यहाँ कमलजा ( ब्रह्मा जी द्वारा माँ पार्वती की कमल के पुष्पों के द्वारा पूजा करने के कारण ) कहा जाता है | इस सबके बाद मोक्ष कुंड, सर्वतीर्थ कुंड, ज्ञान कुंड और कुषारण्य कुंड ( भीमा नदी का उद्गम स्थल ) स्थित हैं | इस मंदिर सबसे ख़ास नाना फडनविस द्वारा बनबायी गयी विशेष घंटी है |
मंदिर के निर्माण से जुडी कथा –
मंदिर के निर्माण से महादेव और कुम्भकर्ण के पुत्र भीमा से जुडी एक कथा प्रचलित है | एक बार पर्वत पर कुम्भकर्ण की मुलाक़ात एक कर्कटी नाम की महिला से हुई जिसके साथ कुम्भकर्ण ने विवाह कर लिया | विवाह के कुछ दिन बाद कुम्भकर्ण तो वापस लंका लौट गया मगर वह महिला इसी पर्वत पर रहने लगी | कर्कटी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम भीमा रखा गया | जब श्री राम के द्वारा कुम्भकर्ण को मार देने की खबर कर्कटी ने सुनी तो वह अपने पुत्र को देवताओं से बचाने के लिए यहीं निवास करने लगी | भीमा छोटा था तब उसे श्री राम के द्वारा अपने पिता की मृत्यु की जानकारी नहीं थी मगर जैसे जैसे वह बड़ा होता गया उसे पूरी बात पता चली तब उसने श्री राम से बदला लेने का विचार बनाया |
भीमा जानता था की श्री राम से अकेले सामने से लड़ पाना मुश्किल है इसलिए उसने ब्रह्मा जी की तपस्या करके जीतने का वरदान प्राप्त किया | वरदान मिलते ही वह साधारण इंसान, ऋषि मुनियों और देवताओं तक को परेशान करने लगा | भीमा से परेशान होकर सभी लोग महादेव के पास पहुंचे और अपनी समस्या को ख़त्म करने की प्राथना करने लगे तब शंकर जी ने कहा मै अवश्य ही भीमा का वध करूँगा |
इसी राज्य के राजा कामेश्वरोप अनन्य शिव भक्त थे, एक दिन वह जब शिवलिंग के आगे बैठकर पूजा कर रहे थे तभी भीमा वहां पहुँचा और राजा से पूजा करने से मन करने लगा जब राजा नहीं माना तो उसने अपनी तलवार से जैसे ही शिवलिंग पर वार किया तुरंत ही महादेव प्रकट हुए और भीमा का अंत कर दिया तभी देवता और ऋषि मुनि उस जगह पर पहुंचे और शिव जी से कल्याण के लिए सदैव वहां निवास करने की प्राथना की तब शंकर जी तथास्तु कहा कर उसी शिवलिंग में अंतर्ध्यान हो गए | कहा जाता है तभी से महादेव साक्षात् रूप से इस शिवलिंग में निवास करते हैं | महादेव द्वारा इस जगह पर भीमा राक्षस का अंत करने के कारण इन्हें भीमाशंकर कहा जाता है |
प्रमुख त्यौहार –
भीमाशंकर मंदिर में शिवरात्रि का त्यौहार जो महादेव को समर्पित है बड़ी धूमधाम और हर्षो उलास के साथ मनाया जाता है | इस दिन महादेव का विशेष श्रंगार और पूजन पाठ आदि किया जाता है | शिवरात्रि का त्यौहार मनाने के लिए हर साल यहाँ बहुत दूर दूर से लोग आते हैं |
आरती व दर्शन का समय –
भीमाशंकर मंदिर भक्तों के लिए सुबह 05:00 से 12:00 बजे तक तथा उसके बाद शाम को 04:00 से 0930 तक खुला रहता है | जिसमे आरती क्रमशः सुबह 04:30 से प्रातः आरती, इसके बाद 03:00 बजे मध्यान्ह आरती, 05:00 बजे संध्या आरती और आखिरी रात में 07:00 बजे रात्री आरती की जाती है | मंदिर में प्रवेश और आरती के लिए आपको किसी भी तरह का विशेष शुल्क प्रदान नहीं करना होता है |
पर्यटन स्थल –
- हनुमान तालाब
- गुप्त भीमशंकर
- कमलजा मंदिर
- मनमोहक पहाड़ियां
- भीमाशंकर वन्य जीव अभ्यारण्य
आवागमन –
भीमाशंकर मंदिर तक आप आसानी से हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग तीनो के द्वारा पहुँच सकते हैं :
हवाई मार्ग द्वारा – हवाई मार्ग द्वारा जाने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पुणे है, यहाँ से आप बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर तक आ सकते हैं |
रेल मार्ग द्वारा – रेल मार्ग द्वारा मंदिर आने के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन पुणे रेलवे स्टेशन है, यहाँ से आप बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर आ सकते हैं |
सडक मार्ग द्वारा – सड़कमार्ग द्वारा मंदिर अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है आप बस, कार किसी के भी माध्यम से आसानी से मंदिर तक आ सकते हैं |