माता हिंगलाज मंदिर का प्राचीन लगभग 2000 साल पुराना मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में माता सती के 51 शक्ति पीठों में से एक प्रमुख शक्ति पीठ स्थित है | यह मंदिर चंद्र्कूप पहाड़ बनी एक गुफा में हिंगोल नदी के पास स्थित है, इस मंदिर में माता पार्वती की प्रति रूप प्रतिमा स्थापित है | इस मंदिर की सबसे ख़ास बात यह है की इस मंदिर की देखरेख व संचालन का काम मुस्लिम समुदाय के द्वारा किया जाता है | मुस्लिम समुदाय के अनुसार हिंगलाज मंदिर माता तीर्थ को नानी पीर माना जाता है | इस मंदिर में भारत से जाने वाले श्रद्धालुओं के साथ सिंध और करांची से आने वाले भक्तो की भी अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है |
माता हिंगलाज मंदिर परिसर –
चंद्रकूप पहाड़ की एक गुफा में माता की प्रतिमा स्थापित है जिसमे किसी भी प्रकार के पट या गेट की व्यवस्था नहीं है | मंदिर की गुफा तक पहुँचने के लिए पत्थर के सीढ़ी बनी हुई हैं | जिनसे चड़ने पर पहले गणपति महाराज की प्रतिमा स्थापित है, फिर माता की गुफा प्रारंभ होती है | माता की परिक्रमा करने के लिए गुफा के एक सिरे से परिक्रमा प्रारम्भ करने पर उसी जगह वापस आ जाते हैं, यह परिक्रमा पथ प्राकर्तिक रूप से निर्मित है |
इस मंदिर माता सती को कोटहरी तथा भगवान् शंकर को भीमलोचन भैरब के रूप में स्थापित किया गया है | मंदिर परिसर के अंदर ही गणेश भगवान, माता कालिका की प्रतिमा स्थापित है | मंदिर परिसर के पास में ही ब्रह्म कुंड और तीर कुंड के नाम से 2 कुंड बने हुए हैं | इन कुण्डो से जुडी मान्यता है कि माता यहाँ प्रतिदिन सुबह स्नान करने आती हैं |
मंदिर से जुडी कथा –
जब माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा अपमानित किये जाने पर अपने आप को यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिया था | तब भगवान् शंकर ने क्रोध में आकर माता सती के जले हुए शरीर को लेकर तांडव किया था | भगवान् शंकर को शांत करने के लिए बिष्णु भगवान् ने माता सती के जले हुए शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे | माता सती के शरीर के अंग जिन जिन स्थानो पर गिरें उन्हें शक्ति पीठ कहा गया और वहां मंदिरों का निर्माण करवाया गया | मान्यता है की हिंगलाज मंदिर में माता सती के शरीर का प्रथम हिस्सा यानी की सर आकर गिरा था | माता के शरीर के बांकी हिस्से भारत के कई स्थानों पर गिरे जहाँ शक्ति पीठो का निर्माण किया गया है |
धार्मिक मान्यता –
मंदिर परिसर के बाहर रक लगभग 10 फीट लम्बा जलते हुए अंगारों का बाड़ा बनाया गया है | इस बाड़े को हिन्दू धर्म के अनुसार चुल और मुस्लिम धर्म के अनुसार अलाव कहा जाता है | मान्यतानुसार माता ने प्रकट होकर यह वरदान दिया था कि जो भी इस चुल को नंगे पैरचलकर पार करेगा उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी | हिन्दू व मुस्लिम दोनों धर्म के अनुसार इस प्रथा को पूरा करने से मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है | किसी भी भक्त को इस जलते हुए अंगारों के चुल या अलाव को पार करते समय किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है |
आरती, दर्शन व प्रसाद –
वैसे तो दरवाजे न होने के कारण यह मंदिर भक्तो के लिए हमेशा ही खुला रहता है | मगर दर्शन सुबह 6 बजे से शाम के 7 नजर तक ही होते हैं | माता की दिन में दो बार आरती सुबह 6 बजे व शाम को 7 बजे की जाती है | प्रसाद के रूप में यहाँ हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा अगरबत्ती, लाईचेदाने, नारियल व् लाल चुनरी और मुस्लिम भक्तो के द्वारा लाल कपडा, अगरबत्ती, इत्र, फूल और सिरनी आदि अर्पित किया जाता है |
आवागमन –
हिंगलाज मंदिर की यात्रा पाकिस्तान में करांची से 10 किमी दूर हाव नदी से प्रारंभ होती है | सबसे पहले यहाँ लासबेला में स्थित माता की प्रतिमा के दर्शन छड़ीदार ( पुजारी ) के द्वारा करवाए जाते है | यहाँ नारियल चढ़ाकर अपने पापों का हिसाब बोल कर देना पढ़ता है | जो यह परम्परा श्रद्धा और भक्ति से पूरी करता है, उसका नारियल माता के द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो उसे आगे जाने की अनुमति मिल जाती है | जिसका नारियल माता के द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है वह यहाँ से वापस लौट जाता है | यहाँ से आगे जाने पर भक्तो को यहाँ वापस लौटने तक सन्यासी का धर्म धारण करना पड़ता है |
इसके बाद आगे की यात्रा प्रारम्भ होती है जिसमे बरसाती नाले, रेट की शुष्क नदी आदि मिलती है | यह 15 मील का सफर पैदल तय करके आप चंद्र्कूप पहाड़ी पर पहुँचते है | यहाँ पहाड़ी पर चढ़कर तीन मीठे पानी के कुंये मिलते हैं इन कुँओं के पानी को पीकर भक्तो के समस्त कष्ट और थकावट समाप्त हो जाती है | इन कुँओं के सामने ही माता हिंगलाज मंदिर की गुफा है |