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पीताम्बरा पीठ से जुडी मान्यता और पहुँचने का तरीका – Peetambra Peeth In Hindi

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पीताम्बरा पीठ से जुडी मान्यता और पहुँचने का तरीका - Peetambra Peeth In Hindi

पीताम्बरा पीठ दतिया की सम्पूर्ण जानकारी – हमारा भारत देश कई धर्मो का देश माना जाता है, भारत में ऐसे कई सारे मंदिर है, जो बहुत प्रसिद् है । अधिकतर इन मंदिरो के प्रसिद् होने का कारण वंहा आने वाले लोगो की इच्छा पूर्ण हो जाना है । कई लोगो का यह मानना है, कि जाने मात्र से ही आपकी बड़ी से बड़ी इच्छा पूरी हो जाती है । इन्हीं मंदिरों में से एक सुप्रसिद्व मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित है । इसे पीताम्बरा पीठ के नाम से जाना जाता है, यह भारत के शक्ति पीठों में से एक है । ऐसा कहा जाता है, कि जिस स्थान पर आज यह सुप्रसिद् मंदिर स्थित है यंहा पहले शमशान हुआ करता था ।

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह भारत का एक मात्र धूमावती देवी का मंदिर है । यदि आप पर किसी प्रकार का सरकारी मुकदमा चल रहा है या किसी राज्य हित की बात है, तो यंहा देवी के अनुष्ठान करवाने से आपको सफलता प्राप्त हो जाती है । इस कारण पीताम्बरा पीठ कई बड़े से बड़े नेता, अभिनेता अनुष्ठान करवाने के लिए आते रहते है । इस मंदिर में अन्य कई छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित है । इस पीठ की एक खास बात यह है कि यंहा हर छोटे – बड़े मंदिर की आरती अलग से की जाती है । ऐसा भारत के कुछ खास जगहों पर ही किया जाता है । 

पीताम्बरा पीठ की स्थापना

यह दिव्य पीताम्बर पीठ मध्यप्रदेश के दतिया जिले के मध्य में स्थित है । पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक बहुत ही सिद्व संत द्वारा की गई थी । इन्हें स्थानीय लोग श्री स्वामीजी महाराज के नाम से संबोधित करते है । श्री स्वामीजी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था। वह परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी थे । वह एक स्वतंत्र अखन्ड ब्रंहचारी रूप में दतिया जिले में अधिक समय तक रहे । श्री स्वामीजी महाराज का वास्तविक नाम व वह कंहा से आये थे यह किसी को भी नहीं पता है ।

इस बात का स्वामीजी महाराज द्वारा भी कभी नहीं बताया गया । श्री स्वामीजी महाराज के द्वारा सन् 1935 में पीताम्बरा पीठ की नींव रखी गई थी। श्री स्वामीजी महाराज कई लोगो के लिए अध्यातमिक प्रतिक थे और आज भी उनके साथ वे जुड़े हुए है । वह सस्ंकृत व हिन्दी के अच्छे ज्ञाता थे, उनके द्वारा संस्कृत में कई पुस्तकें भी लिखी गई है । श्री स्वामीजी महाराज के द्वारा देश के कल्याण के लिए कई यज्ञ किए गए थे ।

मंदिर परिसर की व्याख्या

श्री पीताम्बरा पीठ में कई मंदिर स्थापित है, इस मंदिर में सबसे प्रसिद्ध बगलामुखी देवी का मंदिर है । इस मंदिर को श्री स्वामीजी महाराज ने सन् 1920 के दशक में ही स्थापित किया था । बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरा देवी के नाम से जाना जाता है । इस पीठ में एक अन्य मंदिर है, जो भी अत्यधिक प्रसिद् है । श्री स्वामीजी महाराज ने आश्रम के भीतर ‘धूमावती देवी’ के मंदिर की भी स्थापना की थी । यह विश्व का एक मात्र मंदिर है। ऐसा माना जाता है, कि धूमावती देवी और बगलामुखी देवी दस महाविघाओं में से दो है । बगलामुखी के दर्शन करने की प्रत्येक व्यक्ति को अनुमति है ।

लेकिन धूमावती देवी के दर्शन सौभाग्यवती स्त्रीयों के लिए वर्जित है । शनिवार का दिन धूमावती देवी का विशेष दिन माना जाता है । इस दिन आम दिनों के मुकाबले अधिक संख्या में लोगो का ताता लगता है । धूमावती देवी के पट एक निश्चित समय के लिए ही खोले जाते है । देवी की आरती के समय ही कुछ समय के लिए धूमावती देवी के दर्शन होते है । इनके अलावा पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में परशुराम, हनुमान, कालभैरव व अन्य कई और मंदिर भी स्थित है। इस प्रांगण में श्री वनखंडेश्वर शिव के शिवलिंग भी स्थापित है । यह शिवलिंग महाभारत के समकालीन का माना जाता है। यह पीठ मुख्य रूप से शक्ति अर्थात ‘देवी माँ को समर्पित’ का आराधना स्थल है।

मंदिर की देखरेख

पीताम्बरा पीठ को वर्तमान स्थिती में एक ट्रस्ट के द्वारा देखरेख में रखा गया है । पीठ के परिसर में एक संस्कृत पुस्तकालय भी है, जिसकी स्थापना श्री स्वामीजी महाराज द्वारा ही की गई थी । इस पुस्तकालय में पीठ के इतिहास व कई प्रकार के तत्रों व गुप्त मंत्रो से संबधित पुस्तकें प्राप्त हो जाती है । इस पीठ में एक संस्कृत विध्यालय के जैसा शिविर भी है । यंहा पर बच्चों को संस्कृत भाषा का ज्ञान दिया जाता है। यहाँ पर आप कई प्रकार के मत्रों व विधियों का ज्ञान प्राप्त कर सकते है । यह एकदम निशुल्क रहता है । प्रत्येक रविवार को बगलामुखी देवी के प्रांगण में शास्त्रीय संगीत का अयोजन किया जाता है ।

बगलामुखी देवी की प्रतिमा

बगलामुखी देवी की प्रतिमा बहुत ही आकर्षित है । इनकी मूर्ति को में चार हाथों को प्रदर्शित किया गया है। इनके चारो हांथो में क्रमशः मुदगर, पाश , बज्र व शत्रुजिव्हा है । इनको सजाने के लिए अधिकतर पीले रंग के वस्त्र का ही प्रयोग किया जाता है । इनके हाथ में शत्रुजिव्हा का अर्थ यह मान जाता है, कि इनकी आराधना के द्वारा आप अपने शत्रु को पूर्ण रूप से पराजित कर सकते है । कई लोंगो का कहना यह है, कि यदि राज्य को आतंकवाद की समस्या को खत्म करना है, तो यंहा अनुष्ठान करना चाहिए । ऐसा कहा जाता है, कि देवी एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है।

माता धूमावती देवी की प्रतिमा

माता धूमावती देवी का मंदिर भी पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में स्थित है। ऐसा माना जाता है, कि जब स्वामी जी महाराज द्वारा धूमावती देवी की स्थापना की जा रही थी तो कई विद्वानों द्वारा उन्हें देवी की स्थापना करने से रोका गया था । श्री स्वामी जी महाराज ने उन विद्वानों को समझाते हुए उनसे कहा माँ का यह भयंकर रूप तो केवल दुष्टों के लिए है, भक्तों के लिए तो माँ अति दयालु है । पूरे संसार में माता धूमावती देवी का यह एक मात्र मंदिर है । धूमावती देवी की स्थापना के दिन ही, स्वामी जी महाराज ने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी और ठीक एक वर्ष बाद वह ब्रह्मलीन हो गए ।

इस दिन को धूमावती की जयंती के रूप में मनाया जाता है । प्रत्येक वर्ष छोटी दीपावली के दिन यह जयंती होती है और इस दिन पंडितो के द्वारा यज्ञ और अनुष्ठान किया जाता है । इस दिन एक विशेष आरती की जाती है । धूमावती देवी को हमेशा नमकीन पदार्थों का प्रसाद लगाया जाता है । 

ऐतिहासिक महत्व

माँ पीताम्बरा का स्वरूप रक्षात्मक है, इस पीठ के साथ कई ऐतिहासिक महत्व जुडे़ हुए है । ऐसा कहा जाता है, कि सन् 1962 में जब चीन द्वारा भारत पर हमला कर दिया गया था, उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी थे । उस हमले में भारत की सहायता के लिए रूस तथा मिस्त्र ने अपना साथ देने से मना कर दिया था, तब किसी विद्वान योगी ने प्रधानमंत्री जी को, स्वामी जी महाराज से मिलने की सलाह दी । उस समय प्रधानमंत्री दतिया आये और स्वामी जी से मिले ।

स्वामी जी ने उन्हें राष्ट्रहित के लिए एक 51 कुंण्डीय महा यज्ञ करने की सलाह दी । तब प्रधामंत्री ने उनकी बात मानकर यज्ञ करवाया, यज्ञ को कई सिध्द पंडितो ने तांत्रिकों के द्वारा आरंभ करवाया गया और प्रधानमंत्री जी को यजमान बनाया गया । यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि उससे पहले संयुक्त राष्ट्र का संदेश मिला कि चीन के द्वारा आक्रमण रोक दिया गया है । इस यज्ञ के सम्पन्न होने में कुल 11 दिन का समय लगा । जिस जगह पर यज्ञ हुआ  आज भी वहाँ यज्ञशाला निर्मित है । 1965 और 1971 के भारत-पाक युध्द के द्वौरान भी यंहा यज्ञ किया गया था ।

यंहा पहुँचने का तरीका

हवाई मार्ग से

देश के दूसरे प्रमुख शहरों से दतिया के लिए कोई नियमित रूप से उड़ाने नहीं है मगर दतिया के सबसे नजदीकी ग्वालियर पर आप हवाई मार्ग से आकर फिर ग्वालियर से बस के द्वारा दतिया तक पहुँच सकते हैं |

रेल मार्ग से

देश के सभी प्रमुख स्थानों से आप रेल मार्ग द्वारा दतिया तक आसानी से पहुँच सकते हैं |

सड़क मार्ग से

दतिया तक देश के सभी प्रमुख स्थानों से आसानी से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है |

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