भारत के राजस्थान, गुजरात और हरयाणा राज्यों में शीतला माता की बहुत मान्यता है। यहाँ शीतला माता के अनेक मंदिर हैं। इन राज्यों के लोग पूरे विधि विधान से शीतला माता की पूजा अर्चना करते हैं। भारत के अनेक स्थानों पर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो शीतला माता के विषय में नहीं जानते। यहाँ तक कि लोगों ने शीतला देवी का नाम तक नहीं सुना। इसलिए इस पोस्ट में लेकर आये हैं शीतला माता से जुडी पौराणिक कथा।
शीतला माता की कथा
कहा जाता है कि शीतला माता की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा की गयी थी। ब्रह्मा जी ने लोक कल्याण और धरती पर पूजे जाने के लिए शीतला देवी को धरती पर भेजा था। शीतलामाता के मन में विचार आया कि मैं धरती पर देखना चाहती हूँ कि कितने लोग मेरी पूजा करते हैं। ऐसा सोच शीतलामाता राजस्थान के डूंगरी गाँव में पधारीं। सारा दिन गाँव में भ्रमण करती रहीं फिर भी गाँव के किसी भी स्थान पर उन्होंने अपना एक भी मंदिर नहीं पाया। देवी शीतला गाँव में घूमती रहीं तभी अचानक किसी ने चावल का गर्म पानी छत से फेंका जो शीतलामाता के ऊपर आकर गिरा। देवी के पूरे शरीर में पीड़ा होने लगी और उबलते हुए पानी के कारण छाले पड़ गए। शीतलादेवी गांव में इधर उधर सहायता के लिए लोगों को आवाज़ देने लगीं परन्तु एक कुम्हारी के अतिरिक्त कोई भी उनकी सहायता के लिए नहीं आया।
कुम्हारिन पर हुई मेहरबान
उस कुम्हारी ने शीतला माँ को अपने घर में बैठाया और उनके शरीर पर ठंडा पानी डाला। उसके बाद कुम्हारी ने माता को रात की रखी हुई राबड़ी और दही खिलाया। ये दोनों ही शरीर को शीतलता प्रदान करने में सहायता करते हैं। चूँकि राजस्थान की जलवायु बहुत गर्म है, इसलिए वहां पर राबड़ी और दही खाने का प्रचलन है। यह मिश्रण खाने के पश्चात शीतला माँ को कुछ राहत मिली। तब कुम्हारी ने माता की दशा देखकर उनके बालों को संवारने के लिए कहा। बाल ठीक करते समय उसने बालों के अंदर छुपी माँ के सिर में एक आँख देखी।
माता शीतला का असली स्वरुप
यह देख कुम्हारी बहुत घबरा गयी और उस स्थान से भागने लगी। तब माता शीतला ने उसे रोका और उसे अपना सत्य बताया। और अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिए। कुम्हारी अभिभूत हो उठी और भावुक होकर आंसू बहाने लगी। उसने शीतला माता को अपने दरिद्र घर और जीवन के विषय में बताया। कहा कि मेरे घर में आपको बैठाने के लिए कोई स्थान नहीं है। तब देवी शीतला ने उसके घर में खड़े गधे को अपने बैठने का स्थान बनाया और हाथ में झाड़ू लेकर उसके घर की दरिद्रता को हटा दिया। इसलिए ही शीतला माता की सवारी गधा है और उनके हाथ में एक झाड़ू भी होती है।
शीतला अष्टमी पर्व
इस घटना के बाद से ही शीतला माता को ठन्डे पकवानों का भोग लगाया जाने लगा। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा आदि राज्यों में शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन लोग बासी खाने का भोग लगाते हैं। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता और सभी लोग बासी भोजन का सेवन करते हैं। शीतला अष्टमी चैत्र माह में होली के बाद मनाई जाती है। डुंगरी में हुई घटना के पश्चात् इस गांव में शीतला माता का मंदिर का निर्माण किया गया। वर्तमान में बहुत प्रसिद्द है। मान्यता है शीतला माता का उपवास करने से घर में समृद्धि का आगमन होता है और यह व्रत घर के सदस्यों को रोगग्रस्त होने से बचाता है। इस व्रत पर एक दिन पहले ही खाना पका लिया जाता है। इस खाने का ही शीतला माता को भोग लगाया जाता है।
बासी भोजन की प्रथा
इस पर्व के विषय में एक और भी पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार गांववासी शीतला माता की पूजा अर्चना कर रहे थे। उन्होंने भोग में माता को गरिष्ठ भोजन अर्पित किया। जिससे माता का मुँह जल गया। उन्होंने क्रोध में पूरे गाँव में आग लगा दी परन्तु एक वृद्धा का घर नहीं जला। तब सभी गांववासियों ने वृद्धा से इसकाकारण पूछा. वृद्धा ने बताया कि इस विपदा का कारण माँ को अर्पित किया हुआ गरिष्ठ भोजन था। वृद्धा ने बताया कि उन्होंने शीतला माता को बासी ठन्डे व्यंजनों का भोग अर्पित किया। जिस कारण शीतला माता ने प्रसन्न होकर वृद्धा का घर जलने से बचा लिया। तभी सब गाँव वालों ने माता से क्षमा मांगी और सप्तमी के दिन बासी भोजन का भोग लगाकर पूजा की। हिन्दू धर्म में यह मात्र ऐसा पर्व है जिसमे बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।