मरने के बाद आत्मा का क्या होता है ? यह प्रश्न केवल मेरे या आपके ही मन में नहीं है। शायद दुनिया का हर व्यक्ति एक बार तो ज़रूर यह सोचता है कि मृत्यु के बाद उसका क्या होगा। उसका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा या कोई और रूप मिलेगा। वैसे तो यह एक ऐसी गुत्थी है जिसे सुलझाना असंभव है। किन्तु मरने के बाद आत्मा का क्या होता है ? इसका विस्तृत वर्णन हमारे पुराणों में मिलता है और उसी के आधार पर हम इस पोस्ट में कुछ सम्बंधित तथ्य बताने जा रहे हैं।
आत्मा नश्वर है
पुराणों में कहा गया है कि जीवन का अंत नहीं होता अर्थात आत्मा का अंत नहीं होता। आत्मा के कारण ही हमारे अंदर जीवन हैं अन्यथा तो हम केवल एक ढांचा ही हैं। और ये ढांचा पांच तत्व आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी से बना है। इसलिए जब शरीर क्षीण हो जाता है या किसी मनुष्य कि अवधि इस संसार में समाप्त हो जाती है तो शरीर नष्ट हो जाता है। परन्तु आत्मा कभी नहीं मरती। इसलिए ही कहा जाता है कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है। आत्मा को मृत्यु के पश्चात उसके पिछले जन्मों में किये गए कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है।
मनुष्य योनि में जन्म
ऐसा माना जाता है कि लाखों योनियों में जन्म लेने के पश्चात मनुष्य जन्म मिलता है। मनुष्य जन्म भी हमे अच्छे कर्मों के आधार पर मिलता है। यानि यह बात तो स्पष्ट है कि पिछले जन्मों में हमने कुछ अच्छे कर्म किये हैं जिसके परिणामस्वरूप हम इस संसार में मनुष्य रूप में हैं। परन्तु यह यात्रा यहाँ नहीं समाप्त होती. मनुष्य योनि में जन्म लेने के पश्चात हमे अहम् हो जाता है कि हमसे ऊपर कोई नहीं है। हमसे अधिक कोई शक्तिशाली नहीं है। हम स्वयं को संतुष्ट करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। और कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं फिर चाहे वो धोखा हो। स्वयं पर घमंड या प्रताड़ना या दूसरों के प्रति बुरी भावना। बस यहीं पर मनुष्य अपने बुरे कर्मों का खाता बनाना आरम्भ कर देता है। यह बिना जाने हुए कि ब्रह्माण्ड में कहीं हमारे हर कर्म, हर गतिविधि का लेखा जोखा तैयार किया जा रहा है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हमारे द्वारा किये गए प्रत्येक अच्छे या बुरे कर्म का रिकॉर्ड बनता है। मनुष्य माया और अहंकार के प्रभाव में यह भूल जाता है कि उसके द्वारा किये बुरे कर्मों से उसकी दुर्गति निश्चित है।
मनुष्य के कर्म
मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर विभिन्न लोकों में जन्म मिलता है। यदि किसी मनुष्य ने इतने पाप किये हैं कि उसे किसी और योनि में जन्म मिला तो उसे पुनः तब तक मनुष्य जन्म नहीं मिलेगा जब तक सभी योनियों में अच्छे कर्म करते हुए वो प्रायश्चित कर मनुष्य जीवन प्राप्त करने के योग्य न बन जाए। शास्त्रों में कहा गया है की आत्मा को उसका गंतव्य स्थान या वास्तविक निवास मोक्ष के द्वारा प्राप्त होता है। और मोक्ष केवल मनुष्य जीवन मिलने पर ही संभव है। तो हम समझ ही सकते हैं कि इतने महत्वपूर्ण जीवन को हम किस प्रकार के कार्य करने में व्यर्थ कर देते हैं। पूरा जीवन अपनी वास्तविकता को भूलकर केवल भौतिक संसार में ही उलझे रहते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य जीवन में अध्यात्म का अभ्यास ही आत्मा को उसके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने में सहायक है। अध्यात्म को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसा भी माना जाता है कि आत्मा को केवल अध्यात्म के द्वारा ही प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस संसार में यदि किसी ने बहुत अच्छे कर्म किये हैं और जो अध्यात्म से जुड़ा रहता है उसे स्वर्ग लोक प्राप्त होता है।
क्या सच में स्वर्ग और नर्क होता है ?
इस प्रकार की आत्मा स्वर्ग के सुख भोगने के योग्य होती है परन्तु यदि कोई स्वर्ग लोक में भी अच्छे या बुरे कर्मों के साथ जीवन व्यतीत करता है तो उसे वापस निम्न लोकों में जन्म मिलता है। वहीँ यदि किसी के कर्म बहुत गलत हैं तो उसे पाताल लोकों में भी जन्म लेना पड़ता है। पाताल लोक के सात स्तर हैं। कर्मों के आधार पर आत्माओं को विभिन्न स्तरों पर जन्म मिलता है। पाताल लोक के सबसे निम्न स्तर पर आत्मा को बहुत से कष्ट सहने पड़ते हैं। यहाँ भीषण गर्मी होती है और पिशाचों के साथ जीवन व्यतीत करना होता है। पाताल में आत्माओं को उच्च लोकों की निगरानी में रहना होता है। पाताल के विशेष रूप से निचले स्तरों में आत्माओं का आभामंडल या औरा कमज़ोर होता है। और पिशाचों आदि नकारात्मक शक्तियों का उन पर बहुत अधिक प्रभाव होता है। क्यूंकि इन स्तरों पर अध्यात्म का अभ्यास बहुत कम है। पृथ्वीलोक पर भी यदि किसी का औरा मजबूत नहीं है तो उस पर नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। निचले लोकों में इस प्रकार का प्रभाव कई गुणा हो जाता है।
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पाताललोक में केवल नकारात्मकता का ही प्रभाव होता है। पृथ्वीलोक की स्थिति बहुत बेहतर है और इस लोक में रहकर आध्यात्मिक विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे मृत्यु के पश्चात हमारे कर्मों के कारण हमारी आत्मा को कष्ट न भोगना पड़े। आध्यात्मिक विकास तो किसी भी लोक में होना ही चाहिए। परन्तु पाताललोक में नकारात्मक शक्तियों के कारण अध्यात्म के लिए बहुत संघर्ष करना होता है। वहां बुरी आत्माएं आध्यात्मिक कृत्य करने से रोकती हैं और उनके प्रभाव को रोक पाना भी असंभव होता है। जहाँ पाताललोक में बुरी शक्तियां हमें रोकती हैं यहीं स्वर्गलोक के सुख देखकर आत्मा अपना धर्म अर्थात भगवान को स्मरण करना भूल जाती है और वहां से निम्न लोकों पर आ जाती है। यदि स्वर्गलोक में भी आत्मा आध्यात्मिक कृत्य करती रहती है तो उसका उद्धार निश्चित होता है। इसलिए पृथ्वी लोक में रहकर भी अध्यात्म को जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। यदि जन्म और मृत्यु के चक्र से निकलना है तो अध्यात्म के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं है।
ऐसा भी कहा जाता है कि मृत्यु के समय आत्मा की जो चेतना होती है या जो इच्छा होती है उसी प्रकार उसका अगला जन्म आकार लेता है। उदाहरण के लिए यदि मृत्यु के समय भगवान् को स्मरण किया तो अगले जन्म में किसी ऐसे परिवार में जन्म मिलता है जहाँ पूजा अर्चना होती है। भगवान के नाम का भजन कीर्तन होता है। हमें अपने पिछले जन्म के कर्मों का तो याद नहीं रहता परन्तु इस जन्म में भगवान का स्मरण करके अपना आने वाला जन्म बेहतर बनाया जा सकता है। इस संसार में रहते हुए हमे यह भी याद रखना चाहिए कि हमारा सम्बन्ध भौतिक संसार से नहीं आध्यात्मिक संसार से है। पुराणों में वैकुण्ठ को प्रत्येक आत्मा का वास्तविक निवास बताया गया है।