हिन्दू धर्मग्रंथों में युद्ध से जुडे कई कथाओं का विवरण किया गया है।अधिकतर लोग महाभारत और रामायण में वर्णित युद्धों के बारे में तो जानते हैं लेकिन उन्हें भी कई ऐसे युद्धों के बारे में जानकारी नहीं है जिनका विवरण हमारे पुराणों में किया गया है।पाठकों आज मैं आपको शिवपुराण में वर्णित एक ऐसे ही युद्ध के बारे में बताने जा रहा हूँ।नमस्कार ,THE DIVINE TALES पर आपका स्वागत है।
ब्रह्मा और विष्णु के बिच युद्ध
शिवपुराण की एक कथा के अनुसार एक दिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ शेषनाग की शय्या पर विश्राम कर रहे थे।उसी समय सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी उनके पास पहुंचे।आंखे बंद होने के कारण भगवान विष्णु को ब्रह्मा के आने पता नहीं चला और वो सोये ही रहे।यह देख ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठे और विष्णु जी से बोले मेरे आने बाद भी तुम सोये हुए हो जबकि मैं तुम्हारा स्वामी हूँ ।उसी समय विष्णु जी की आंखे खुल गई और ब्रह्मा जी के मुख से अपने लिए ऐसी बातें सुन उन्हें भी गुस्सा आ गया ।लेकिन फिर मन को शांत कर उन्होंने ब्रह्मा जी कहा हे प्रिये आपका स्वागत है और किस बात को लेकर क्रोधित हैं ।
विष्णु जी की बाते सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा हे विष्णु मैं जगत के साथ साथ तुम्हारा भी संरक्षक हूँ।पूरे जगत में मेरा सम्मान किया जाता है फिर तुम मेरा अपमान कैसे कर सकते हो ।
तब विष्णु जी ने कहा -हे ब्रह्मा तुम तो भली भांति जानते हो की मेरे अंदर पूरा ब्रह्माण्ड समाहित ।तुम भी मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुए हो और मैं तुम्हारा पिता हूँ।इसलिए तुम्हारे सारे कथन झूठे हैं।
विष्णु जी के इतना कहते ही ब्रह्मा जी और भी क्रोधित हो उठे और खुद को श्रेष्ट बताने लगे।कुछ देर तो के बिच श्रेष्ठता के लिए बहस हुई लेकिन उसके बाद दोनों हथियार निकाल लिए और उसके बाद दोनों के बिच एक भयंकर युद्ध शुरू हो गया।
दिव्यास्त्रों का उपयोग
युद्ध के शुरू होते ही भगवान विष्णु अपने वाहन गरूर पर सवार होकर ब्रह्मा जी पर बाणो की वर्षा करने लगे।इधर ब्रह्मा जी भी विष्णु जी पर तीर बरसाने लगे।इस तरह दोनों के बिच भयंकर युद्ध छिड़ गया।ब्रह्मा जी पर अपने बाणो का कोई असर ना होता देख विष्णु जी ने ब्रह्मा जी पर महेश्वर अस्त्र से प्रहार किया जिससे बचने के लिए ब्रह्मा जी ने पशुपास्त्र चला दिया।दोनों अस्त्रों के टकराने से पूरा ब्रह्मांड कांप उठा।लेकिन इसके बाद भी दोनों के बिच युद्ध चलता रहा।युद्ध का कोई भी परिणाम ना निकलता देख सभी देवी देवता डर गए और स्वर्ग से कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे।
कैलाश पर्वत पहुंच कर देवताओं ने शिव जी को विष्णु और ब्रह्मा जी युद्ध के बारे में बताया और किसी तरह रोकने के लिए कहा।देवताओं की बात सुनकर भगवान् शिव ने कहा मुझे इस युद्ध की जानकारी पहले से है ये दोनों खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए व्यर्थ ही युद्ध कर रहे है।साथ ही ये भी कहा की मैं स्वंय युद्ध क्षेत्र में जाकर इस युद्ध को रोकूंगा।इसके बाद शिव जी युद्ध के मैदान की और चल दिए।वहां पहुँच कर भगवान शिव ने दोनों के बिच अग्नि के विशाल स्तम्भ का रूप ले लिया।यह देख दोनों ही हैरान हो गए और एक दूसरे से पुछा ये क्या है।हमें इसका पता लगाना होगा।इसके बाद दोनों ने निर्णय लिया की जो इस स्तम्भ के सिरे का पहले पता लगाएगा वही श्रेष्ठ माना जायेगा।और दोनों स्तम्भ के सिरे का पता लगाने निकल पड़े ।
अग्नि स्तम्भ के दोनों सिरे की खोज
विष्णु जी ने सूअर का रूप धारण कर जड़ खोजने लगे और हंस रूप में ब्रह्मा जी ने ऊपरी सिरे को खोजना शुरू किया।कई साल बीत गए लेकिन ना तो विष्णु जी को उस अग्नि स्तम्भ का जड़ मिला और ना ही ब्रह्मा जी को ऊपरी सिरा।अंत में विष्णु जी युद्ध के मैदान वापस आ गए।विष्णु जी वापस युद्ध के मैदान में वापस आया देख ब्रह्मा जी भी वापस आने लगे तभी रास्ते में उन्हें केतकी का फूल गिरते दिखाई दिया तो ब्रह्मा जी ने फूल से पुछा हे फूल तुम क्यों गिर रहे हो और इस का ऊपरी सिरा कहाँ है।
तब केतकी के फूल ने जवाब दिया की मैं तो इस अग्नि स्तम्भ के बिच से कई सालों से निचे गिर रहा हूँ इसलिए मई नहीं जानता की इसका शीर्ष कहाँ है।तब ब्रह्मा जी ने उससे कहा हे केतकी अब से मई जैसा कहूं वैसा ही तुम करना।मेरे साथ निचे चलो में जो भी विष्णु जी बताऊंगा उसमे तुम मेरी गवाही देना।इतना कहकर ब्रह्मा जी केतकी फूल के साथ युद्ध स्थल पहुंचे जहाँ विष्णु निराश बैठे थे।ब्रह्मा के पहुंचते ही विष्णु जी ने उनसे कहा की मैं इस के जड़ को नहीं खोज पाया।यह सुन ब्रह्मा जी खुश हो गए और उन्होंने विष्णु जी कहा की वो अग्नि स्तम्भ के ऊपरी सिरा को खाज लिया है और ईस्ट झठी बात की गवाही केतकी फूल ने भी दिया।तब विष्णु जी ने ब्रह्मा को खुद से श्रेष्ठ मानते हुए उनकी पूजा की ।
विष्णु जी को वरदान और ब्रह्मा को अभिशाप
ब्रह्मा जी के झूठ से क्रोधित होकर शिव जी तुरंत अपने असली रूप में आ गए ।शिव को देखकर विष्णु जी खड़े हो गए और उन्हें प्रणाम किया।यह देख शिव जी ने विष्णु जी कहा की मैं आपसे प्रसन्न हूँ।आपने श्रेष्ठ बनाने के लिए झठ का सहारा नहीं लिया इसलिए आप भी मेरे इतना ही पूजनीय हो ।
और ब्रह्मा जी को अहंकार का दंड देने के लिए भौरो को उत्पन्न किया और भैरो को ब्रह्मा के उस मुख को काट देने को कहा जिससे उन्होंने झूठ बोला था।यह सुन विष्णु ने भगवान शिव से ब्रह्मा जी को क्षमा कर देने को कहा।विष्णु की स्तुति पर शिव जी ने ब्रह्मा को तो माफ़ कर दिए लेकिन साथ ही ये भी श्राप दिया की आपको ना तो कोई सम्मानित करेगा और नाही आपकी पूजा होगी।और केतकी फूल को शिव जी ने अपने गले से त्याग दिया ।
तो पाठको उम्मीद करता हूँ की आपको हमारी ये पोस्ट पसंद आई होगी ।