आप सभी रामायण में वर्णित कई कथाएं पढ़ी होगी | जैसे की प्रभु प्रभु राम लक्ष्मण की जन्म और मृत्यु की कथा। आज में बताने जा रहा हूँ की कैसे हुई थी प्रभु राम के भाइयों की मृत्यु|
रावण वध के पश्चात् प्रभु राम,माता सीता और भाई लक्ष्मण सहित अयोध्या वापस आ गए। वापस आने के बाद कुछ दिनों तक प्रभु राम और माता सीता ने सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया। पर एक धोबी के कारण प्रभु राम को देवी सीता को त्यागना पड़ा । उसके बाद माता सीता फिर वन में जाकर महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में रहने लगी। जहाँ उन्होंने दो पुत्र लव और कुश को जन्म दिया। दोनों पुत्रों के बड़े होने के बाद सीता अयोध्या की राजसभा में श्री राम के सामने धरती में समां गयी। माता सीता के पाताल लोक जाने के बाद श्री राम उदास रहने लगे। उनके मन में विचार आने लगा की अब मेरा भी समय पूरा हो गया है। मुझे भी अब ये मृत्यु लोक छोड़ देना चाहिए।
कालदेव का अयोध्या में आगमन
ब्रह्मा की आज्ञा पाते ही कालदेव अयोध्या श्री राम के पास पहुंचे । उस समय प्रभु राम लक्ष्मण के साथ किसी विषय पर बात कर रहे थे। कालदेव ने प्रभु राम को पहले प्रणाम किये और फिर बोले प्रभु मुझे ब्रह्मदेव ने भेजा है। प्रभु राम कालदेव के आने का अर्थ समझ गए । फिर भी उन्होंने कालदेव से आने का कारण पुछा। तब कालदेव में कहा – हे प्रभु आने का कारण में आपको अकेले में ही बता सकता हूँ। उसके बाद श्री राम ने लक्ष्मण को उस कक्ष से बाहर जाने को कहा। साथ ही श्री राम ने कहा की इस बिच जो कोई भी इस कक्ष में आये उसे मृत्यु दंड मिलेगा। उसके बाद लक्ष्मण उस कक्ष की पहरेदारी करने लगे।
दुर्वाषा ऋषि का क्रोध
थोड़ी देर बाद वहां अचानक ऋषि दुर्वाषा आ पहुंचे और श्री राम से मिलने की जिद करने लगे।
लक्ष्मण ने ऋषि दुर्वाषा को अंदर जाने से रोक दिया जिस पर वो क्रोधित हो उठे। लक्ष्मण से बोले अगर मुझे राम से नहीं मिलाने दिया गया तो मैं उन्हें श्राप दे दूंगा। ऋषि के शाप से बचने के लिए लक्ष्मण उन्हें अंदर ले गए। अपने कक्ष में लक्ष्मण को देखकर राम उदास हो गए। वो जानते थे की ना चाहते हुए भी उन्हें अब अपने सबसे प्रिय भाई लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना पड़ेगा। उसके बाद श्री राम ने लक्ष्मण को देश निकाला दे दिया। उस समय देश निकाला मृत्युदंड से भी बड़ी सजा मानी जाती थी।
लक्ष्मण की मृत्यु
लक्ष्मण ने अपने भ्राता के वचन को निभाने के लिए राज्य से बाहर जाने के बजाय सरयू में जल समाधि ले ली। लक्षमण की मृत्यु से दुखी प्रभु श्रीराम भी जल समाधि लेने का निर्णय किया।अपने बड़े भाई के इस निर्णय का पता भरत और शत्रुघ्न को लगा । वे दोनों ने श्री राम को वैकुण्ठ धाम ना जाने की बहुत विनती की। लेकिन जब श्री राम नहीं माने तो दोनों श्री राम के साथ साकेत धाम जाने की जिद पर अड़ गए । बहुत जिद करने पर राम ने दोनों की विनती स्वीकार कर ली।
प्रभु राम के भाइयों की मृत्यु
अगली सुबह श्री राम दोनों भाइयों और सुग्रीव सहित विभीषण के साथ सरयू तट पर पहुंचे| और फिर जल समाधि ले ली। फिर कुछ देर बाद नदी के अंदर से भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस तरह प्रभु राम के साथ भरत और शतुघ्न भी वैकुण्ठ धाम को चले गए।