नवरात्री के नौ दिनों को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है. इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि का दूसरा दिन समर्पित है माँ दुर्गा का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी को. तो आइये जानते हैं ब्रह्मचारिणी की कथा .
माँ ब्रह्मचारिणी की उत्पति
ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली. माँ ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में पूरा जीवन तपस्या की. उनकी घोर तपस्या के कारण ही वो ब्रह्मचारिणी के नाम से जानी गयीं. इसलिए ब्रह्मचारिणी को तपस्या, ज्ञान और वैराग्य की देवी माना जाता है. अपने पूर्व जन्म में देवी ब्रह्मचारिणी ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और महादेव शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की. ब्रह्मचारिणी ने एक हज़ार वर्ष केवल फल और फूल का आहार करके व्यतीत किये. सौ वर्षों तक केवल शाक खाकर जीवन व्यतीत किया. तीन हज़ार वर्षो तक केवल टूटे हुए बिल्व पत्र अथवा बेलपत्र का आहार करके शिव जी के ध्यान में लीं रहीं. और इसके बाद बेलपत्र खाना भी त्याग दिए और निराहार एवं निर्जल महादेव की तपस्या करती रहीं. जीवन के बहुत से दिन देवी ब्रह्मचारिणी ने खुले आकाश के नीचे व्यतीत किये. पत्रों का त्याग करने के कारण ही उनका नाम अपर्णा भी पड़ा. इतनी गहन तपस्या से उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था. सभी देवता, ऋषिगण, एवं मुनि देवी की तपस्या से अभिभूत थे. सभी ने देवी के समर्पण की सराहना की और प्रार्थना करते हुए कहा कि हे देवी आज तक इस संसार में किसी ने इतनी कठोर तपस्या नहीं की है, ऐसा करने का साहस केवल आप में ही है. आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी और अगले जन्म में चंद्रमौलि शिव आपको पति के रूप में प्राप्त होंगे. आप कृपा करके तपस्या छोड़कर अपने घर लौट जाइये. ब्रह्मा जी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें शिव जी की पत्नी बनने का वरदान दिया और इस प्रकार अगले जन्म में शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया.
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
प्रयास करें कि नवरात्रि की पूजा में लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें.
सर्वप्रथम जिस कलश को आपने प्रथम दिन स्थापित किया है इसका तिलक करके, दीपक प्रज्ज्वलित करके कलश का पूजन करें. साथ में जो माँ दुर्गा की तस्वीर है उसका भी कुमकुम और चावल से तिलक करें. आशा है आपने माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित की है. इसमें तेल या घी उचित मात्रा में डालते रहे जिससे ज्योति रात्रि के समय में भी प्रज्ज्वलित रहे. दिन में कुछ कुछ देर बाद देखते रहे कि ज्योति ठीक प्रकार से जल रही है. यदि उसकी बत्ती छोटी हो गयी हो तो एक नयी बत्ती बनाकर दीपक में डालकर उसे जलाएं तब पुराणी बत्ती को दीपक से निकाल लें.
संभव हो तो इस दिन देवी को कमल का पुष्प अर्पित करें. इस के पश्चात फल, मिष्ठान, सुपारी, पान आदि अर्पित करें. जैसा कि हमने प्रथम दिन की पूजा में बताया था कि एक कंडे का टुकड़ा जलाकर इसमें कपूर डालकर लौंग का जोड़ा घी में डुबोकर अर्पित करें और अग्यारी का रोली चावल से तिलक करें.
ब्रह्मचारिणी स्त्रोत-मंत्र
ब्रह्मचारिणी स्त्रोत-मंत्र 11 बार उच्चारण करें. स्त्रोत-मंत्र इस प्रकार है
दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करके कवच का पाठ करें.
साथ ही इस पुस्तक में उल्लेखनीय बीज मन्त्रों का भी उच्चारण करें.
इसके पश्चात
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मन्त्र का जप करें
देवी की वंदना करें और प्रार्थना करें कि भौतिक जीवन जीते हुए आपको आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हो और आप वैराग्य की ओर अग्रसर हों.
अब देवी की आरती करके प्रार्थना क्षमा याचना के साथ पूजा का समापन करें.
संध्या आरती भी अवश्य करें
जय ब्रह्मचारिणी