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पदमपुराण के अनुसार कैसा होता है यमलोक?

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हर मनुष्य जीवन भर अपना कर्म करता रहता है चाहे वो बुरा हो या अच्छा। और अंत समय आने पर यही सोचता रहता है की  मरने के बाद उसे उसकी कर्मो की वजह से स्वर्ग मिलेगा या नर्क। मनुष्य की ये प्रवृति होती है की वह अपने हिसाब से बुरे कर्मो की गिनती भी अच्छे कर्मो में करने लगता है और यह सोचकर प्रसन्न होता है की मरने बाद उसे अवश्य ही स्वर्ग मिलेगा। जब की वो जानता है की कोई भी मनुष्य अपने कर्मो के फल का निर्धारण स्वंय नहीं कर बल्कि मृत्यु के बाद उसके कर्मो के फल का निर्धारण स्वंय यमराज करते हैं। और वही बताते हैं की मनुष्य ने जो अपने जीवन काल में कर्म किया झाई उसके वो कर्म पुण्य थे या पाप। और फिर उसी के अनुसार उसे स्वर्गलोक या नरकलोक की प्राप्ति होती है। परन्तु यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की यदि किसी मनुष्य को मरने के बाद स्वर्ग मिलता है तो वह स्वर्गलोक में कौन-कौन सी सुविधाओं का भोग करता है और यदि किसी मनुष्य को नर्क मिलता है तो उसे कैसी-कैसी यातनाएं झेलनी पड़ती है। दर्शकों आज के इस वीडियो में हम आपको इसी से जुडी पदमपुराण की एक कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ जसका वर्णन यमलोक से लौटी कुछ कन्याओं ने किया हुआ है।

पदमपुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक बार यमदूत कुछ कन्याओं को भूलवश समय से पहले यमलोक लेकर चले गए लेकिन जब चित्रगुप्त ने उनके एवं एवं मृत्यु का लेखा जोखा देखा तो उन्होंने यमदूतों से कहा की हे यमदूतों ये तुमने क्या किया इन कन्याओं की आयु अभी पूर्ण नहीं हुई है। इसलिए इन कन्याओं को तुरंत वापस मृत्युलोक दे आओ। उधर जब इस बात का पता उन कन्याओं को चला तो उन सब ने यमदूतों से कहा हे भगवन आपकी इस भूल की वजह से मेरे परिवारजनों को जो कष्ट पहुंचा है उसके बदले आपको हमें ये आलोक दिखाना और इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी देनी होगी तभी हम सभी वापस धरतीलोक जायेंगे अन्यथा यहीं रहेंगे। कन्याओं की बातें सुनकर  यदूत घबरा गए और दौड़े दौड़े यमराज के पास पहुंचे और उन्हें सब बात बताई। तब यमराज ने अपने दूतों से कहा तुमलोगों को अपने भूल का प्रायश्चित करना ही होगा और बदले में उन कन्याओं को यमलोक के दर्शन करने होंगे। यमराज की बाते सुनकर यमदूत तुरंत कन्याओं के पास आये और उन सभी को पूरा यमलोक दिखाया फिर जाकर वे कन्याएं धरतीलोक वापस आ गयी। धरती लोक वापस आने पर उनके बंधु-बांधव ख़ुशी से झूम उठे और सभी ने उनसे यमलोक के बारे में पूछा जिसका वर्णन कन्याओं ने इस प्रकार किया।

कन्याओं ने कहा यमलोक का वातावरण बड़ा ही घोर और भय उत्पन्न करने वाला है। वहां हमेशा सभी जीवों को विवश होकर जाना पड़ता है। गर्भ में रहने वाले अथवा बूढ़े,स्त्री,पुरुष या नपुंसक सभी तरह के जीवों को वहां जाना होता है। वहां चित्रगुप्त अपने सहायकों के साथ मिलकर देहधारियों के शुभ और अशुभ फल का निर्धारण करते हैं। पृथ्वीलोक पर जो शुभ कर्म करनेवाले,कोमलहृदय तथा दयालु पुरुष हैं. वे सौम्य मार्ग से यमलोक में जाते हैं। नान प्रकार के दान और व्रतों में संलग्न रहने वाले स्त्री-पुरुषों से सूर्यनन्दन यम की नगरी भरी है। माघस्नान करनेवाले लोग वहां विशेष रूप से शोभित होते हैं। धर्मराज उनका अधिक सम्मान करते हैं। वहां उनके लिए सब प्रकार की भोग सामग्री सुलभ होती है। माघस्नान में मन लगाने वाले लोगों के सैकड़ों,हजारों विचित्र-विचित्र विमान वहां शोभा पाते हैं। इन पुण्यात्मा जीवों को विमान पर बैठकर आते देख सूर्यनन्दन यम अपने आसन से उठकर खड़े हो जाते हैं और अपने पार्षदों के साथ जाकर उन सबकी अगवानी करते हैं। फिर उन्हें विमान पर बैठाकर स्वर्ग को भेज देते हैं। स्वर्गलोक की कहीं तुलना नहीं है,वह सब प्रकार के दिव्य भोगों से परिपूर्ण है। इस प्रकार उनकी अनुमति ले पुण्यात्मा स्वर्गलोक में जाते हैं।

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वहीँ  जो क्रूरतापूर्ण कर्म करनेवाले और दान न देनेवाले पापी जीव हैं। उनकी आत्माएं यमराज के घर अत्यंत भयंकर दक्षिण मार्ग से जाते हैं। यमराज का नगर अनेक रूपों में स्थित है। उसका विस्तार चारों ओर से छियासी हजार योजन में है। पुण्यकर्म करने वाले मनुष्यों को वह बहुत निकट सा जान पड़ता है,किन्तु भयंकर मार्ग से जानेवाले पापी जीवों के लिए वह अत्यंत दूर है। वह मार्ग कहीं तो तीखे कीटों से भरा होता है और कहीं रेत  एवं कंकड़ों से। कहीं पत्थरों के ऐसे टुकड़े बिछे होते हैं जिनका किनारा छुरों की धार के समान तीखा होता है। कहीं बहुत दूर तक कीचड़ ही कीचड़ भरी रहती है। कहीं घातक अंकुर उगे होते हैं और कहीं-कहीं लोहे की सुई के समान नुकीले कुशों से सारा मार्ग ढका होता है। इतना ही नहीं कहीं रास्ते पर दहकते हुए अंगारे बिछे रहते हैं। ऐसे मार्ग से पापी जीवों को दुखित  होकर जाना पड़ता है। इसके अलावा यह मार्ग कहीं तपी हुई शिला और कहीं हिम से वह मार्ग आच्छादित रहता है। कहीं ऐसी बालू भरी रहती है जिसमे चलनेवाला जिव कंठ तक धंस जाता है और बालू कान के पास तक आ जाती है। कहीं गरम जल और कहीं कंडों  की आग से यमलोक का मार्ग व्याप्त रहता है। 

उन सबकी पीड़ा सहते हुए पापी जिव की आत्माएं यमलोक में जाते हैं। कहीं तीखे अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा होती है,जिससे उनके सारे शरीर में घाव हो जाते हैं। तत्पश्चात उनके ऊपर नमक मिले हुए पानी की मोटी धाराएं बरसायी जाती है। इस प्रकार कष्ट सहन करते हुए उन्हें जाना पड़ता है। कहीं अत्यंत ठंडी,कहीं रूखी और कहीं कठोर वायु का सब ओर से आघात सहते हुए पापी जीव सूखते और रोते हैं। इस प्रकार वह मार्ग बड़ा ही भयंकर है। यहाँ राहखर्च नहीं मिलता। कोई सहारा देनेवाला नहीं रहता। वह सब ओर से दुर्गम और निर्जन है। वहां और कोई मार्ग आकर नहीं मिला है। वह बहुत बड़ा और आश्रय रहित है। वहां अन्धकार-ही-अन्धकार भरा रहता है। वह महान कष्टप्रद और सब प्रकार के दुःखों का आश्रय है। ऐसे ही मार्ग से यम की आज्ञा का पालन करनेवाले अत्यंत भयंकर यमदूतों द्वारा समस्त पाप-परायण मूढ़ जीव बलपूर्वक लाये जाते हैं।

ऐसी पापी जीवों की आत्मायें यमलोक में बंधू-बांधवों से रहित होते हैं।  वे शरीर से दुर्बल और भयभीत होते हैं तथा क्षुधा की आग से जलते रहते हैं।ऐसे जीवों की आत्माओं की बाहें पीठ की ओर घुमाकर बाँध दी जाती है और उनके हाथों में कील ठोंक दी जाती है। साथ ही पैरों में बेड़ी भी पड़ी होती है। कुछ दूसरे जीवों के गले में रस्सी बांधकर उन्हें पशुओं की भाँती घसीटा जाता है। और वे अत्यंत दुःख उठाते रहते हैं।  कितने ही दुष्ट मनुष्यों की जिह्वा में रस्सी बांधकर उन्हें खिंचा जाता है। किन्ही की कमर में भी रस्सी बाँधी जाती और उन्हें गरदनिया देकर इधर-उधर ढकेला जाता है। यमदूत किन्ही की नाक बांधकर खींचते हैं और किन्ही के गाल तथा ओंठ छेदकर उनमे रस्सी डाल देते और उन्हें खींचकर ले जाते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोगों के कानो और ठोढीयों में छेद करके उनमे रस्सी डालकर खिंचा जाता है।

किन्ही को भालों से छेदा जाता है,कुछ को बाणो से घायल कर दिया जाता हैं। और इस प्रकार उन्हें विवश करके यमलोक में ले जाया जाता है। वे भूख-प्यास से पीड़ित होकर अन्न और जल माँगते हैं,धुप से बचने को छाया के लिए प्रार्थना करते हैं और शीत से व्यथित होकर तापने के लिए अग्नि माँगते हैं। जिन्होंने उक्त वस्तुओं का दान नहीं किया होता,वे उस पाथेय रहित पथ पर इसी प्रकार कष्ट सहते हुए यात्रा करते हैं। इस प्रकार अत्यंत दुखमय मार्ग से चलकर जब वे प्रेत लोक में पहुंचते हैं,तब दूत उन्हें यमराज के आगे उपस्थित किया जाता है। तब यमराज और चित्रगुप्त उन पापियों को धर्मयुक्त वाक्यों से समझाते हुए फटकारते हुए कहते हैं की ओ खोटे कर्म करनेवाले पापियों तुमने दूसरों के धन हड़प लिए हैं और सुन्दर रूप के घमंड में आकर परायी स्त्रियों के साथ व्यभिचार किया है। मनुष्य अपने-आप जो कुछ कर्म करता है उसे स्वंय ही भोगता है,फिर तुमने अपने ही भोगने के लिए पापकर्म क्यों किया ? और अब अपने कर्मो की आग में जलकर इस समय तुमलोग संतप्त क्यों हो रहे हो?

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इतने में ही यमदूत कुछ राजाओं के आत्माओं को लेकर यमराज के पास पहुंचे,तब यमराज ने उन आत्माओं को देखते हुए कहा देखों दुरात्माओं ये राजालोग भी अपने भयंकर कर्मो से प्रेरित हो मेरे पास आये है,इन्हे अपनी खोटी बुद्धि और बल का बड़ा घमंड था।ये दुराचारी राजायेन अपनी  प्रजा का सर्वनाश करने वाले हैं । ये थोड़े समय तक रहने वाले राज्य के लिए घोर पाप किये हैं। इन सभी ने राज्य के लोभ में पड़कर मोहवश बलपूर्वक अन्याय से जो प्रजाजनों को दंड दिया ,और इस समय उसी का फल भोगने यहाँ आये हैं। अब इन राजाओं से पूछो की कहाँ है वो राज्य और कहाँ गयी वह रानी,जिसके लिए इन सब ने ये पाप कर्म किया था ? इस प्रकार राजाओं से धर्म की बात कहकर धर्मराज ने अपने दूतों से कहा तुम इन राजाओं को पकड़कर ले जाओ और क्रमशः नरक की आग में डालकर इन्हे पापों से शुद्ध करो। तब वे दूत शीघ्र ही उठकर राजाओं के पैर पकड़ लिए और उन्हें बड़े वेग से आकाश में घुमाकर ऊपर फेंक दिया। तत्पश्चात उन्हें पूरा बल लगाकर तपाई हुई शिलापर बड़े वेग से पटका।  शिलापर गिरने से उनका शरीर चूर-चूर हो गया,रक्त के श्रोत बहने लगे। उसके बाद पापी की शुद्धि के लिए उसे नरक के समुद्र में डाल दिया गया।

इस पृथ्वी के निचे नरक की अट्ठाइस कोटियां है। वे सातवें तल के अंत में भयंकर अंधकार के भीतर स्थित है। उनमे पहली कोटिका नाम घोरा है। उसके निचे सुघोरा की स्थिति है। तीसरी अतिघोरा,चौथी महाघोरा और पांचवी कोटि घोररूपा है। छठी का नाम तरलतारा,सातवीं का भयानका,आठवीं का कालरात्रि और नवीं का भयोत्कटा है। उसके निचे दसवीं कोटि चंडा है। उसके भी निचे महाचंडा है। बारहवीं का नाम बारहवीं का नाम चण्डकोलाहला है। उसके बाद प्रचण्डा,नरनायिका,कराला,विकराला और वज्रा है। तीन अन्य नरकों के साथ वज्रा की बीसवीं संख्या है।

रौरव से लेकर अविचितक कुल एक सौ चालीस नरक माने गये हैं। इन सब में पापी मनुष्य अपने-अपने कर्मो के अनुसार डाले जाते हैं और जबतक भांति-भांति की यातनाओं द्वारा उनके कर्मो का भोग समाप्त नहीं हो जाता तबतक वे उसी में पड़े रहते हैं। इस प्रकार क्लेश सहकर जब ये आत्माएं प्रायः शुद्ध हो जाते हैं,तब शेष कर्मो के अनुसार पुनः इस पृथ्वी पर आकर जन्म ग्रहण करते हैं। तृण और झाडी आदि के भेद से नाना प्रकार के स्थावर होकर वहां के दुःख भोगने के पश्चात् पापी जीव कीड़ों की योनि में जन्म लेते हैं। फिर किटयोनि से निकलकर क्रमशः पक्षी होते हैं। पक्षीरूप से कष्ट भोगकर मृगयोनि में उत्पन्न होते हैं। वहां के दुःख भोगकर अन्य पशु योनि में जन्म लेते हैं। फिर क्रमशः गोयोनि में आकर मरने के पश्चात मनुष्य होते हैं।

इसके बाद कन्याओं ने कहा माताओं हम सभी धन्य हैं जो  इस परम पवित्र भारत वर्ष में  हमें जन्म मिला है,यह अत्यंत दुर्लभ है। इसमें भी हजार-हजार जन्म लेने के बाद पुण्यराशि के संचय से कदाचित कभी जीव मनुष्य योनि में जन्म पाता है,परन्तु जो माघ स्नानं में तत्पर रहने वाले हैं,उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। उन्हें यहाँ ही परम मोक्ष मिल जाता है और पर्याप्त भोगसामग्री भी सुलभ होती है। भारतवर्ष को कर्मभूमि कहा गया है। अन्य जीतनी भूमियां है,ये भोगभूमि मानी जाती है। यहाँ यति तपस्या और याजक यज्ञ करते हैं तथा यहीं पारलौकिक सुख के लीये श्रद्धापूर्वक दान दिए जाते हैं। कितने ही धन्य पुरुष यहीं माघस्नान करते तथा तपस्या करके अपने कर्मो के अनुसार ब्रह्मा,इंद्र देवता और मरुद्वानो का पद प्राप्त करते हैं। यह भारतवर्ष सभी देशों से श्रेष्ठ माना गया है,क्यूंकि यहीं मनुष्य धर्म तथा स्वर्ग और मोक्ष की सिद्धि कर सकते हैं। इस पवित्र भारतदेश में क्षणभंगुर मानव जीवन को पाकर जो अपने आत्मा का कल्याण नहीं करता,उसने अपने आप को ठग लिया। मनुष्यों में भी अत्यंत दुर्लभ ब्राह्मणत्व को पाकर जो अपना कल्याण नहीं करता,उससे बढकर मुर्ख कौन होगा। कितने ही काल के बाद जीव अत्यंत दुर्लभ मानव जीवन प्राप्त करता है,इसे पाकर ऐसा करना चाहिए जिससे कभी नरक में न जाना पड़े। देवता लोग भी यह अभिलाषा करते हैं की हमलोग कब भारतवर्ष में जन्म लेकर माघ मास में प्रातः काल किसी नदी या सरोवर के जल में गोते लगाएंगे। देवता यह गीत गाते हैं की जो लोग देवत्व के पश्चात स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के मार्गभूत भारतवर्ष के भूभाग में मनुष्य जन्म धारण करते हैं,वे धन्य हैं।

इसलिए आप सभी भी पुण्य करे और पाप छोड़ दे। पुण्य से देवत्व की प्राप्ति होती है और अधर्म से नरक में गिरना पड़ता है। और यदि आपलोग संसार बंधन से छुटकारा पाना चाहते हो तो सच्चिदानंदस्वरूप परमदेव श्री नारायण की आराधना करो। यह संसार निःसार है और नाना प्रकार के दुखों से भरा है। इसपर विश्वास नहीं करना चाहिए,क्यूंकि एक दिन तुम्हारा निश्चय ही नाश होनेवाला है। इसलिए  सदा ही श्री विष्णु की आराधना करते रहो। और यही अंतिम मार्ग है आपको अपनी मुक्ति पाने का।

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