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त्रिदेवों की उत्पति कैसे हुई

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हिन्दू धर्म में त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सभी देवताओं में सबसे पूजनीय माना गया है। धार्मिकग्रंथों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा को सृष्टि का रचियता माना गया है जबकि भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार और भगवान शिव को इस सृष्टि का विनाशक माना गया है।

लेकिन हिन्दू धर्म को मानने वालों के मन में एक प्रश्न हमेशा उठता है की त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पति कैसे हुई या फिर इनमे से सबसे श्रेष्ठ कौन हैं ?

शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ वह तो स्वंयभू हैं अर्थात वे प्रकट नहीं हुए। वह निराकार परमात्मा हैं तब भी थे जिस समय पूरी सृष्टि अंधकारमय थी न जल था, न अग्नि और न वायु!

तब केवल तत्सदब्रह्म ही थे जिन्हे हिन्दू श्रुतियों में सत् कहा गया है। सत् अर्थात उस परब्रह्म काल ने कुछ समय के बाद द्वितीय होने की इच्छा प्रकट की और उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है।

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परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म और वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव कहलाये। फिर सदाशिव ने शक्तिस्वरूपा जननी को प्रकट किया जो अम्बिका कहलायी।

फिर इसी ब्रह्मरूपी सदा शिव और अम्बिका से ब्रह्मा,विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई। ऐसा माना जाता है की इन दोनों ने सबसे पहले भगवान शिव की उत्पति की जो सृष्टि के संहारक कहलाये।

फिर कुछ समय बाद रमण करते हुए सदा शिव के मन में इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए जिस पर सृष्टि निर्माण का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें। ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वर रूपी सदा शिव ने अपने वामांग पर अमृत मला जिससे एक पुरुष प्रकट हुआ। शिव ने उस पुरुष से संबोधित करते हुए कहा वत्स व्यापक होने के कारण तुम विष्णु के नाम से जाने जाओगे। इसके बाद भगवान शिव ने अपने दाहिने अंग से एक दिव्य ज्योति उत्पन्न की और उसे विष्णु जी के नाभि कमल में डाल दिया,कुछ समय बाद विष्णु जी के नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। यानी ये माना जा सकता है की त्रिदेवों के माता पिता परब्रह्म सदाशिव और शक्तिस्वरूपा अम्बिका है।

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तो दोस्तों ये थी त्रिदेवों के जन्म से जुडी कथा लेकिन अब आप के मन में ये सवाल उठ रहा होगा की त्रिदेव यानी ब्रह्मा विष्णु महेश में सबसे शक्तिशाली कौन हैं ?

तो मित्रों में आपको बता दूँ की इससे जुडी एक कथा का वर्णन हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है जिसके अनुसार जब एक दिन भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई कि सबसे महान कौन है तब एक अग्नि रुपी खंबे के रूप में भगवान शिव उनके बीच आ गए थे। वो दोनों इस रहस्य को समझ ही नहीं पाए की तभी अचानक एक दिव्य आवाज आई। जो भी इस खंबे का छोर ढूंढ लेगा, वही सबसे महान कहलाएगा।यह सुनते ही ब्रह्माजी ने एक पक्षी का रूप धारण किया और खंबे का ऊपरी हिस्सा ढूंढने निकल गए। वहीं, विष्णु जी वराह का रूप धारण कर खंबे का अंत ढूंढने निकल गए। बहुत समय बिट गया। और जब बहुत खोजने के बाद भी दोनों में से किसी को खंबे का छोर नहीं मिला और दोनों ने ही अंततः हार मान ली।दोनों जहाँ से शुरू हुए थे वहीँ लौट आये। इसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आ गए और भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने मान लिया कि वे दोनों नहीं बल्कि भगवान शिव ही सबसे महान और शक्तिशाली हैं। यह शक्तिस्तम्भ उनके जन्म लेने और मरने का प्रतीक है और इसी कारण यह कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू हैं यानी अमर हैं।

इस कथा के आलावा एक और कथा का वर्णन हमारे धार्मिकग्रंथों में किया गया है जो इस बात की परीक्षा है की त्रिदेवों में कौन सबसे शक्तिशाली है।

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इस दूसरी कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के मन में ये ख्याल आया की अगर मै विनाशक हूँ तो क्या मै हर चीज का विनाश कर सकता हूँ? क्या मै ब्रह्मा और विष्णु का विनाश भी कर सकता हूँ ? क्या उन पर मेरी शक्तियां कारगर होंगी ? उधर जब भगवान ब्रह्मा और विष्णु को शिव के मन में चल रहे विचार के बारे में पता चला तो वह दोनों मुस्कुराने लगे और फिर ब्रह्माजी ने कहा की हे भोलेनाथ हे शिव आप अपनी शक्तियां मुझ पर क्यों नहीं आजमाते ?

मै भी यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि हम तीनो में सर्वशक्तिमान कौन हैं। यह सुनकर विष्णुजी से भी रहा नहीं गया और वो भी शिवजी से हठ करने लगे तब भगवान शिव ने सकुचाते हुए ब्रह्माजी के ऊपर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर दिया।

जिसके बाद देखते ही देखते ब्रह्माजी जलकर भष्म हो गए। और उनकी जगह एक राख का छोटा सा ढेर लग गया।यह देख शिवजी चिंतित हो गए और मन ही मन सोचने लगे की यह मैंने क्या कर दिया।अब इस सृष्टि का क्या होगा? और फिर उस राख को अपनी मुठ्टी में उठाने लगे तभी राख में से ब्रह्माजी प्रकट हुए और वे बोले हे शिव मै कहीं नहीं गया हूँ. मै यहीप रहूँ। मेरे विनाश के कारण इस राख की रचना हुई है और जहाँ भी रचना होती है वहां मैं होता हूँ।इसलिए मै आपकी शक्तियों से समाप्त नहीं हुआ।

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यह सुन भगवान विष्णु मुस्कुराये और बोले हे महादेव, मै संसार का रक्षक हूँ. मै भी देखना चाहता हूँ कि क्या मै आपकी शक्तियों से स्वयं कि रक्षा कर सकता हूँ? कृपया मुझ पर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें। यह सुन पहले तो भगवान शिव मना करते रहे परन्तु जब ब्रह्माजी ने भी हठ किया तो शिवजी ने विष्णुजी को भी अपनी शक्तियों से भष्म कर दिया। विष्णुजी के स्थान पर अब वहां राख का ढेर था परन्तु उनकी आवाज़ राख के ढेर से अब भी आ रही थी। विष्णुजी शिवजी से बोल रहे थे हे शिव मै अब भी यही हूँ। आप रुके नहीं। अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर भी कीजिये और तब तक करते रहे जब तक कि इस राख का आखिरी कण भी ख़त्म न हो जाये।

यह सुन शिवजी ने अपनी शक्तियों को और तेज कर दिया।राख कम होनी शुरू हो गयी।और अंत में उस राख का सिर्फ एक कण बचा। भगवान शिव ने सारी शक्तियां लगा दी लेकिन उस कण को समाप्त नहीं कर पाए। भगवान विष्णु उस कण से पुनः प्रकट हो गए और यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें भगवान शिव भी समाप्त नहीं कर सकते।यह देख भगवान शिव ने मन ही मन सोचा कि मै ब्रह्मा और विष्णु को सीधे समाप्त नहीं कर सकता।  लेकिन अगर मै स्वयं का विनाश कर लूँ तो वे भी समाप्त हो जायेंगे क्योंकि अगर मै नहीं रहूँगा तो विनाश संभव नहीं होगा और बिना विनाश के रचना कैसी?

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अतः ब्रह्मा और विष्णुजी भी नहीं रहेंगे। उसके बाद शिवजी ने स्वयं का विनाश कर लिया और जैसा वे सोच रहे थे वैसा ही हुआ। जैसे ही वे जलकर राख में तब्दील हुए, ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए। कुछ समय के लिए पूरी सृष्टि अंधकारमय हो गया। वहां उन तीनो देवो की राख के सिवाय कुछ नहीं था। उसी राख के ढेर से एक आवाज़ आई- “मै ब्रह्मा हूँ। मै देख सकता हूँ कि यहाँ राख की रचना हुई है और जहाँ रचना होती है, वहां मै होता हूँ। इस तरह उस राख से पहले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए और उसके बाद विष्णु और शिवजी क्योंकि जहाँ रचना होती है वहां पहले जीवन आता है और फिर विनाश।

इस तरह शिवजी को बोध हुआ कि त्रिदेव का विनाश असंभव है और कोई भी एक दूसरे से शक्तिशाली या कम आवश्यक नहीं है।

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