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कैसी है यमराज की सभा जहाँ मृत आत्माओं को दी जाती है सजायें

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जैसा की आप सभी जानते हैं की हिन्दू धर्म में यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है जो यमपुरी में निवास करते हैं। इतना ही गरुड़ पुराण में ये भी बताया गया है की मृत्यु के बाद आत्मा को यमराज के दूत इसी यमपुरी में ले जाते हैं जहाँ उनको उनके कर्मो के हिसाब से सजा या फिर ऐश्वर्य प्रदान किया जाता है। परन्तु दर्शकों आज के इस एपिसोड में हम आपको बताएँगे की यमराज की वह सभा कैसी है जहाँ मृत आत्माओं को उनके कर्मो के हिसाब से सजाएँ सुनाई जाती है जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है।

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गरुड़ पुराण के अनुसार जब भगवान श्री विष्णु ने अपने वाहन पक्षीराज गरुड़ को जीवन और मृत्यु का सम्पूर्ण रहस्य बता दिया तब गरुड़ ने उनसे पुछा की हे स्वामी आपके पवित्र वचनो से मैं जीवन और मृत्यु का रहस्य तो जान गया परन्तु कृपया कर मुझे ये भी विस्तार से बताये की यमराज की वो सभा कैसी है जहाँ इंसानो और पृथवी लोक के अन्य प्राणियों की आत्मा को मृत्यु के बाद लाया जाता है और फिर यमराज की सभा में कार्यवाही के बाद उनके कर्मो के मुताबिक उनहे सजा दी जाती है।

तब भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ को बताया की हे पक्षीश्रेष्ठ जैसा की मैंने आपको बताया की यमराज जिन्हे धर्मराज भी कहा जाता है वो यमपुरी में निवास करते हैं। यमराज का यह लोक 86000 योजन यानि की करीब 12 लाख किलोमीटर में फैला हुआ है। यमपुरी में यमराज जिस राजमहल में निवास करते हैं उसे कालित्री के नाम से जाना जाता है। यमराज के इस भवन का निर्माण देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया है। यहां यमराज की सभा होती है, जिसमें आने वाली आत्माओं को उनके कर्मों के आधार पर न्याय मिलता है। इस राजमहल में यमराज जिस सिंहासन पर बैठते हैं, उस सिंहासन को ‘विचार-भू कहा जाता है। यमराज का यह महल चौकोर है। देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया यह महल एक हजार योजन में फैला हुआ है। देखने में यह महल चमकती हुई बिजली और सूर्य के तेजस्वी स्वरुप के समान पूरी दिव्यमान है। उस पुरी में धर्मराज का जो भवन है वह स्वर्ण के समान कांतिमान है। पांच सौ योजन ऊँचा और हजार खम्भों वाला यमराज का यह भवन कई तरह के मणियों से सुसज्जित है। सैकड़ों पताकाएं इस राजमहल की शोभा बढ़ाती है। सैकड़ों घण्टों की ध्वनियाँ उस भवन में हमेशा गूंजती रहती है। यहाँ पर शीतल मंद वायु बहती रहती है.जिनके बिच अनेक प्रकार के उत्सव और व्याख्यान होते रहते हैं।

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धर्मराज का यह लोक अभेद माना जाता है। यह लोक इतना सुरक्षित है की यहाँ असुर तो क्या देवता भी यमराज की मर्जी बिना प्रवेश नहीं कर सकते। यमराज की सेवा में लगे दूतों को यमदूत कहा जाता है। यमलोक के द्वारपाल को धर्मध्वज कहा जाता है। यहां महाण्ड और कालपुरुष नाम के दो प्रमुख रक्षक हैं। साथ ही 4 आंखों वाले दो कुत्ते यमलोक की चौकीदारी करते हैं।

यमलोक में मृत आत्माओं के प्रवेश के लिए चार द्वार बनाये गए हैं।  मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत मृतक के कर्मों के अनुसार उचित दरवाजे से प्रवेश कराते हैं। सात्विक विचारों वाले, माता-पिता-गुरुजनों का आदर करने वाले और सत्यवादी लोगों को पूर्व के दरवाजे से प्रवेश मिलता है। वहीँ साधु-संतों को उत्तर के द्वार से प्रवेश मिलता है। और दान पुण्य करने वाले व्यक्तियों को पश्चिम द्वार से प्रवेश मिलता है। जबकि दक्षिण द्वार से पापियों को प्रवेश मिलता है। उतरी द्वार से जो भी आत्मा यमलोक में प्रवेश करती है उसे किसी भी तरह की कार्यवाही का सामना नहीं करना पड़ता अर्थात इस द्वार से प्रवेश का अर्थ है कि उस आत्मा को सीधे स्वर्ग में स्थान मिल जाता है। इतना ही नहीं इस द्वार से प्रवेश करने वालों का स्वागत स्वयं अप्सराएं करती हैं।

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इसके आलावा यमलोक के मध्य भाग में यमराज के सहायक चित्रगुप्त का भवन बना हुआ है जिसका विस्तार पचीस योजन है। उसकी ऊंचाई दस योजन है। चित्रगुप्त का यह भवन लोहे के सरियों द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। इसमें आने जाने के लिए सैकड़ों गलियां हैं और सैकड़ों पताकाओं से यह सुशोभित रहता है। सैकड़ों दीपक इस भवन में प्रज्वलित रहते हैं। इतना ही नहीं चित्रगुप्त के इस भवन को सुन्दरतम चित्रों से सजाया गया है। इस भवन में मुक्तामणियों से निर्मित एक दिव्य आसन है जिसके ऊपर बैठकर चित्रगुप्त मनुष्यों अथवा अन्य प्राणियों की आयु गणना करते हैं।साथ ही कोई भी प्राणी जो कर्म करता है,वह सब कुछ चित्रगुप्त लिखते हैं। चित्रगुप्त के आलावा यमराज की सभा में कई चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजा होते हैं जो सलाहकार की भूमिका निभाते हैं। इनकी सलाह पर ही यमराज सजा का निर्धारण करते हैं।

और मृत्यु के बाद जब मृत आत्मा को यमलोक लाया जाता है तो पृथ्वी लोक की तरह ही यहाँ भी सभा का आयोजन किया जाता है परन्तु यहाँ किसी तरह का भेद भाव नहीं किया जाता। मृत आत्मा के यमराज की सभा में पहुँचते ही चित्रगुप्त एक एक कर उसके कर्मो के बारे सभा में पढ़कर सुनाते है फिर यमराज अपने सभी सभासदों से सलाह मशविरा करने के बाद उस आत्मा के लिए दंड का निर्धारण करते हैं। जिसके बाद आत्मा को दंड भुगतने के लिए नर्क में भेज दिया जाता है और अगर कोई आत्मा अपने जीवनकाल में पाप से अधिक पुण्य अर्जित किया रहता है तो उसे स्वंय यमराज स्वर्गलोक के प्रवेश द्वार तक छोड़ आते हैं।

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लेकिन मित्रों आपको ये भी बता दूँ की मृत्यु के पश्चात् जब आत्मा को यमलोक ले जाया जाता है तो उन्हें अपने कर्मो के हिसाब से मार्ग में भी कई तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है। क्यूंकि ऐसा माना जाता है की मृत्युलोक से यमलोक तक का मार्ग बड़ा ही दुर्गम है। इस मार्ग में हमेशा अग्नि दहकती रहती है और जब कोई पापी आत्मा इस मार्ग से होकर गुजरता है तो उसका पांव जलने लगता है जिसकी वजह से उसके पांव में फोड़े हो जाते है जो बड़ा ही पीड़ादायक होता है जबकि पुण्यात्मा को यही मार्ग शीतलता प्रदान करती है। इस मार्ग में पापात्मा के लिए वृक्षों की कोई छाया भी नहीं है,जहाँ पर वह विश्राम कर सके।इतना ही नहीं दुरात्मा के लिए उस मार्ग में अन्नादि की भी व्यवस्था नहीं है जिससे वह अपने प्राणो की रक्षा कर सके। इस मार्ग में जल होते हुए भी पापी आत्मा को जल दिखाई नहीं देता जिससे वह अपना प्यास बुझा सके। जबकि पुण्य आत्मा को इस मार्ग में वह सब कुछ मिलता है जो उसने जीवित रहते हुए दान किया था।

इसलिए हिन्दू  कहा गया मनुष्यों को चाहिए वस्तुओं का दान करे ताकि उसे मृत्यु के पश्चात् किसी भी तरह के तकलीफों का सामना ना करना पड़े। क्योंकि मृत्यु के पश्चात् मनुष्यों के साथ वही जाता है जो उसने अपने जीवनकाल में पाप या पुण्य अर्जित किया होता है।

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