दर्शकों आपने पौराणिक कथाओं में अप्सराओं के बारे में पढ़ा या सुना होगा। इन कथाओं में अप्सराओं को एक बेहद खूबसूरत और आकर्षक महिलाओं के रूप में दर्शाया जाता है जो देवराज इंद्र की सभा में नृत्य और गायन का काम करती है और जरूरत पड़ने पर अप्सराएं स्वर्ग लोक में रहनी वाली आत्माओं एवं देवों का वासना की पूर्ति भी करती है। लेकिन इन बातों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता क्यूंकि अप्सरों का उल्लेख सिर्फ धर्मग्रंथों में ही मिलती है। हालाकिं हिन्दू धर्मग्रंथों के अलावा चीनी और यूनानी धर्म ग्रन्थ में भी अप्सराओं का उल्लेख मिलता है परन्तु उनमे अप्सराओं का चरित्र हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित चरित्र से काफी भिन्न हैं और उनके नाम भी अलग है। लेकिन इन अप्सराओं में कुछ अप्सराएं ऐसी भी थी जिसने मनुष्य जाति का इतिहास बदल कर रख दिया। तो दर्शकों आइये जानते हैं कुछ ऐसी अप्सराओं की प्रेम की कथा के बारे में जिसने देवराज इंद्र के कहने पर पृथ्वी लोक पर अवतरित तो हुई परन्तु उसे किसी ना किसी से प्रेम हो गया और वो यहीं की होकर रह गयी।
हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वर्गलोक की अप्सराएं इतनी सुंदर होती थी की किसी भी सिद्ध पुरुष का मन बस उसे एक बार देख लेने से ही डोल जाता था। तभी तो जब कभी कोई ऋषि-या महर्षि कठोर तप करने लगते थे और देवराज इंद्र को अपना सिंहासन खतरे में लगने लगता था तो वो इन सुंदरी का उपयोग उनकी तपस्या भांग करने के लिए किया करते थे। और इसी कड़ी में कई अप्सराओं को इन ऋषि-महर्षियों से प्रेम हो गया और आज भी उनका वंश पृथ्वीलोक पर मौजूद है। इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है :-
1) मेनका
हिंदू पौराणिक कथाओं में, मेनका को स्वर्गलोक की अप्सराओं में से सबसे सुंदर माना जाता है। मेनका का जन्म देवों और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। वह सुन्दर होने के साथ साथ कुशाग्र बुद्धि और सहज प्रतिभा की धनि थी। एक कथा के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र के कठोर तप के कारण इंद्र देव भयभीत हो गए और उन्होंने मेनका को स्वर्ग से धरती पर भेजा ताकि वह विश्वामित्र को अपने रूप और यौवन से लुभा सके और उनका तप भंग हो जाए। मेनका इंद्र का आदेश पाते ही पृथ्वी लोक पर आई और उसने सफलतापूर्वक विश्वामित्र को अपने सौंदर्य के जाल में फंसकर उनकी तपस्या भंग कर दी। महर्षि विश्वामित्र मेनका के रूप को देखकर उसपर मोहित हो गए और उसे प्रेम करने लगे।उधर मेनका भी विश्वामित्र के साथ वास्तविक प्रेम में पड़ गई। फिर दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे। कुछ समय बाद दोनों के संयोग से एक पुत्री का जन्म हुआ जो बाद में ऋषि कण्व के आश्रम में पली-बढ़ी और शकुंतला के नाम से प्रसिद्ध हुई। बड़े होने पर शकुंतला का विवाह राजा दुष्यंत से हुआ। विवाह के पश्चात् शकुंतला और राजा दुष्यत के संयोग से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम भरत रखा गया और उसी भरत के नाम पर आज हमारे देश का नाम भारत है।
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2) उर्वशी
अप्सरा उर्वशी का सौंदर्य भी बड़ा ही मनमोहक था। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में नृत्य कर रही थी उस समय राजा पुरुरवा भी वहां उपस्थित थे और उसके सौंदर्य को देखकर वो उसके प्रति आकृष्ट हो गए। उधर उर्वशी भी राजा पुरुरवा पर मोहित हो गयी जिसकी वजह से उर्वशी की ताल बिगड़ गई थी। इस बात का पता जब देवराज इंद्र को चला तो वो क्रोधित हो उठे और उन्होंने दोनों को मृत्युलोक में रहने का शाप दे दिया। उसके बाद राजा पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर मृत्युलोक में रहने लगे। दोनों के कई पुत्र हुए। जिनमे से आयु के पुत्र नहुष हुए। नहुष के ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख पुत्र थे। इन्हीं में से ययाति के यदु, तुर्वसु, द्रुहु, अनु और पुरु हुए। यदु से यादव और पुरु से पौरव हुए। पुरु के वंश में ही आगे चलकर कुरु हुए और कुरु से ही कौरव हुए। भीष्म पितामह कुरुवंशी ही थे।
महाभारत के अनुसार उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और उसने अर्जुन से निवेदन किया था की वो उसके साथ रमन करे परन्तु अर्जुन ने यह कहते हुए मना कर दिया की हे देवी ! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता समान हैं। और अर्जुन के मुख से ऐसी बातें सुनकर उर्वशी उसे 1 वर्ष तक नपुंसक होने का शाप दे दिया था। इसी तरह अप्सरा उर्वशी से सम्बंधित सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती हैं।
3) पुंजिकस्थला
एक ओर जहां उर्वशी और मेनका ने पुरुरवा के वंश को आगे बढ़ाया वहीं पुंजिकस्थला ने वानर वंश को आगे बढ़ाया था। माता अंजनी से हनुमान के जन्म की कथा तो हम सब ने सुनी है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं की माता अंजनी किसी समय इंद्र के दरबार में पुंजिकस्थला नामक एक अप्सरा हुआ करती थी। ऐसा माना जाता है की एक बार पुजिंकास्थला ने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी। गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने दया दिखाई और कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा। तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, इस तरह अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।
इस शाप के बाद पुंजिकस्थला धरती पर चली गई और वहां एक शिकारन के रूप में रहने लगी। वहीं उनकी मुलाकात केसरी से हुई और दोनों में प्रेम हो गया। केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे। तब मतंग ऋषि की आज्ञा से अंजना ने तप किया। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया, कि तुम्हारे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। पवनदेव की कृपा से पुंजिकस्थला को एक पुत्र मिला जिसका नाम आंजनेय रखा गया जो आगे चलकर बजरंग बलि और हनुमान के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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4) रम्भा
रम्भा अपने रूप और सौन्दर्य के कारण तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी । और यही कारण था कि हर कोई उसे अपना बनाना चाहता था। रामायण में कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी के रूप में रम्भा का उल्लेख मिलता है। रामायण के अनुसार रावण ने रम्भा के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था जिसके चलते रम्भा ने उसे शाप दिया था कि आज के बाद जब भी तुम न चाहने वाली किसी स्त्री से संभोग करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा। माना जाता है कि इसी शाप के भय से रावण ने सीताहरण के बाद सीता को छुआ तक नहीं था। वहीं महाभारत’ में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।इसके आलावा एक कथा के अनुसार एक बार विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलवाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा। परन्तु जब वो पृथ्वीलोक पर आई तो ऋषि विश्वामित्र उसे देखते ही इन्द्र का षड्यंत्र समझ गए और उन्होंने रंभा को हजार वर्षों तक शिला बनकर रहने का शाप दे डाला। सवाल यह उठता है कि अपराध तो इंद्र ने किया था फिर सजा रंभा को क्यों मिली? हालांकि वाल्मीकि रामायण की एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण द्वारा यह ऋषि के शाप से मुक्त हुई थीं।