पुराणों से सम्बंधित बहुत सी रोचक जानकारी साझा करता आया है. हमारा उद्देश्य आपको भारतीय संस्कृति और इससे जुड़े तथ्यों के निकट रखना है. इसी सन्दर्भ में हम प्रस्तुत हुए हैं एक और जानकारी के साथ. इसमें हम आपको बताने जा रहे हैं पौराणिक काल के उन सभी पात्रों के नाम जो चिरंजीवी हैं. कहा जाता है की ये सभी पात्र किसी न किसी श्राप या वचन के कारण बाध्य हैं और अष्ट सिद्धियों के स्वामी है. तो आइये जानते हैं कि कौन हैं पौराणिक काल के अमर पात्र
परशुराम
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म एक ब्राह्मण के घर जमदग्नि और रेणुका के पुत्र के रूप में हुआ. उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार कहा जाता है. माता पिता ने अपने इस पुत्र का नाम राम रखा. राम शिव जी के परमभक्त थे. उन्होंने शिव जी की घोर तपस्या की. शिव जी ने प्रसन्न होकर राम को परशु दिया जो एक हथियार था इसलिए ही जमदग्नि पुत्र राम का नाम परशुराम पड़ा. परशुराम के विषय में एक बात बहुत प्रचलित है कि उन्होंने धरती से समस्त क्षत्रियों को नष्ट कर दिया था. उन्होंने आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं महर्षि ऋचीक से प्राप्त की. महर्षि ऋचीक से उन्हें सारंग नामक वैष्णव धनुष प्राप्त हुआ जो एक दिव्य धनुष था. साथ ही ऋषि कश्यप ने परशुराम को वैष्णव मन्त्र प्रदान किया.
ऐसा कहा जाता है कि किसी कारणवश ऋषि जमदग्नि ने परशुराम से अपनी माँ रेणुका का गला काटने के लिए कहा. परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया. इससे प्रसन्न होकर जमदग्नि ने परशुराम को अमर होने का वरदान दिया था. वहीँ कुछ सूत्रों के अनुसार चक्रतीर्थ में किये गए कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक भूलोक में रहने का वरदान दिया था.
विभीषण
रावण के भाई विभीषण भगवान राम के परमभक्त थे. जहाँ एक ओर रावण भगवान राम से युद्ध का प्रपंच रचता था वहीँ विभीषण राम भक्ति में लीन रहते थे. विभीषण ने रावण को सीता हरण के परिणामों को बताते हुए चेतावनी भी दी थी. विभीषण के बार बार समझाने पर भी रावण ने सीताहरण कर सीता को कैद में रखा और भगवान राम के साथ युद्ध का निश्चय किया. विभीषण सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए भगवान राम की सेना में सम्मिलित हुए और रावण की मृत्यु कैसे संभव है इसका रहस्य भी उन्होंने ही भगवान को बताया था. अपने भाई के विरुद्ध जाकर सत्य का साथ देने जैसा महान कार्य करने के कारण विभीषण को अमर पात्र होने का वरदान प्राप्त हुआ.
हनुमान जी
हनुमान जी के अमरत्व के विषय में तो सभी जानते हैं. कहा जाता है कि हनुमान जी आज भी इस संसार में हैं. भगवान राम के परमभक्त और शिव जी के अवतार बजरंग बली का शरीर वज्र के समान था. अंजनी पुत्र हनुमान त्रेता युग के बाद द्वापर युग में भी उपस्थित थे. महाभारत में एक प्रसंग है कि भीम को अपने बल पर अहम् होने के कारण एक बार भीम के रास्ते में बैठकर हनुमान जी ने भीम का अहंकार तोड़ा था.
महर्षि वेदव्यास
महाभारत के रचियता महर्षि वेदव्यास भी आठ चिरंजीवियों में सम्मिलित हैं. वेदव्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे. जन्म के समय रंग सांवला होने के कारण इनका नाम कृष्णद्वैपायन रखा गया. व्यास जी को अपनी दूरदृष्टि से ज्ञात था कि कलियुग में मनुष्य बुद्धि क्षीण हो जाएगी और मनुष्य का वेदों को समझना असंभव होगा इसलिए उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद कहलाये और इसलिए व्यास जी वेदव्यास के नाम से प्रसिद्द हुए. कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास आज भी जीवित हैं. गुरुपूर्णिमा के दिन वेदव्यास की पूजा भी की जाती है. बाद में वेदव्यास की माता सत्यवती ने शांतनु से विवाह किया जिनसे चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुए. चित्रांगद की मृत्यु युद्ध में हुई और विचित्रवीर्य संतान होने से पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त हुआ. महर्षि वेदव्यास वैराग्य की राह पर थे परन्तु अपनी माँ के कहने पर उन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों रानियों अम्बिका और अम्बालिका से अपनी योग सिद्धि के द्वारा दो पुत्र उत्पन्न किये. अम्बिका से उत्पन्न पुत्र धृतराष्ट्र और अम्बालिका से उत्पन्न पुत्र पाण्डु थे. वेदव्यास के तीसरे पुत्र विदुर थे जो एक दासी से उत्पन्न हुए थे. और एक पुत्र पत्नी आरुणि से उत्पन्न हुआ जिसका नाम शुक था और जो आगे चलकर शुकदेव गोस्वामी कहलाये. शुकदेव गोस्वामी जी ने ही श्रीमद भागवतम के ज्ञान प्रचार किया.
कृपाचार्य
कृपाचार्य महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे. महर्षि गौतम के पुत्र शरद्वान धनुर्विद्या में पारंगत और बहुत बड़े तपस्वी थे. उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए देवराज इंद्र ने जानपदी नामक देवकन्या को भेजा. उसे देख शरद्वान की तपस्या भंग हो गयी और काम ऊर्जा के संचार ने उनका वीर्य स्खलित होकर सरकंडे के समुदाय पर गिर पड़ा और दो भागों में विभाजित हो गया. जिससे एक पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुई. इन दो संतानों को राजा शांतनु ने वन में देखा. वहां काला मृगचर्म और धनुष बाण देखकर शांतनु समझ गए थे कि ये किसी बहुत विद्वान् ब्राह्मण की संतानें हैं. और उन्हें अपने घर ले आये. इन दोनों को ईश्वर की कृपा समझकर शांतनु ने पुत्र का नाम कृप और पुत्री का नाम कृपी रखा. कृप भी बड़े होकर धनुर्विद्या में पारंगत हुए और धनुर्विद्या के आचार्य हुए. इस प्रकार वे कृपाचार्य कहलाये. महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर थे. कृपाचार्य भी आठ अमर पात्र में से एक हैं.
अश्वत्थामा
कृपाचार्य कि बहिन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और दोनों का एक पुत्र हुआ जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया. अश्वत्थामा के बल और धनुर्विद्या से तो सभी परिचित हैं. द्रौपदी के पांच पुत्रों की हत्या करने पर भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि वो सृष्टि के अंत तक संसार में भटकता रहेगा. अब भी समय समय पर अश्वत्थामा को देखे जाने की खबरें आती रहती हैं.
ऋषि मार्कण्डेय
मार्कण्डेय बचपन से ही शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे. इनकी तपस्या और भक्ति से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और जब यमराज ऋषि मार्कण्डेय के प्राण लेने आये तो शिव जी ने यमराज को रोक लिया और ऋषि अमर पात्र बन गए.
महाभारत के पांच महापापी योद्धा
राजा बलि
विरोचन पुत्र दैत्यराज बलि भी आठ अमर पात्र में से एक है. बलि बहुत बड़ा दानी था और उसे इस बात का अहम् था कि वो दान में किसी को कुछ भी दे सकता है. उसके अहम् को चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और भिक्षु के रूप में बलि के द्वार पहुंचे. गुरु शुक्राचार्य के समझाने पर भी बलि दान देने को तैयार हो गया और ब्राह्मण भिक्षु से पूछा कि दान में क्या चाहिए. भिक्षु के केवल तीन पग ज़मीन मांगने पर बलि ने स्वीकृति दी. तब ब्राह्मण रूप में भगवान ने एक पग में भूमण्डल और दूसरे में स्वर्ग को नाप लिया. तब बलि ने अहम् को त्यागकर अपना सिर आगे कर दिया और तीसरा पग सिर पर रखने के लिए कहा. उसके इस आचार को देख भगवान ने उसे रसातल का राजा बना दिया. राजा बलि आज भी इस संसार में उपस्थित है.