सनातन धर्म को सबसे प्राचीन माना जाता है। इस धर्म में वेदों और पुराणों में उल्लेखनीय सिद्धांतों और धार्मिक परम्पराओं का अनुसरण किया जाता है। सनातन धर्म के प्रतीक प्रायः पूजा में या किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में देखने को मिलते हैं । आज हम इन्ही प्रतीक का विवरण और महत्त्व लेकर आपके सामने प्रस्तुत हुए हैं। सभी प्रतीकों की जानकारी के लिए इस वीडियो को पूरा देखिये।
स्वास्तिक
इस शब्द का निर्माण संस्कृत के दो शब्द सु और अस्ति से मिलकर होता है । सु का अर्थ है शुभ और अस्ति का अर्थ है होना। किसी भी धार्मिक कार्य में स्वास्तिक को अवश्य सम्मिलित किया जाता है। क्यूंकि यह अत्यंत शुभ माना गया है। पूजा या किसी शुभ कार्य का आरम्भ स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर किया जाता है। यह प्राचीन काल से ही मंगल का प्रतीक रहा है। इसकी आकृति सभी दिशाओं को प्रदर्शित करती है। जिसका अर्थ है कि सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो अर्थात स्वास्तिक के माध्यम से लोक कल्याण की भावना प्रकट की जाती है। ऋग्वेद में स्वास्तिक की भुजाओं को चार दिशाओं और चार लोकों की उपमा दी गयी है ।और इसे सूर्य का प्रतीक कहा गया है। हिन्दू धर्म ग्रथों में इसकी भुजाओं को ब्रह्मा की चार भुजाएं, चार मुख और चार वेदों का प्रतीक भी कहा गया है। इसके अतिरिक्त स्वास्तिक को सम्पूर्ण मनुष्य जीवन का निचोड़ जैसे- चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम, चार पुरषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का भी प्रतीक बताया गया है। स्वास्तिक दो प्रकार का होता है। प्रथम और वामावर्त। प्रथम स्वातिक में भुजाएं आगे की ओर होती हैं इसे भारतीय सभ्यता में शुभ माना गया है। वहीँ वामावर्त स्वातिक में भुजाएं पीछे की ओर इंगित हैं जिसे अशुभ माना जाता है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो हिटलर के ध्वज में वामावर्त स्वास्तिक अंकित था।
ॐ
हिन्दू धर्म के सबसे महत्वूर्ण प्रतीक ॐ का उच्चारण मात्र ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। ॐ पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। ॐ को समस्त संसार के मन्त्रों का केंद्र कहा जाता है। शास्त्रों में उल्लेखनीय है कि ॐ तीन प्रकार की ध्वनियों से बना हुआ है अ, उ, और म। इनके अतिरिक्त इसमें नाद और बिंदु भी सम्मिलित हैं। यह भूलोक, भूवः लोक और स्वर्ग लोक का प्रतीक है। ॐ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी कहा गया है। पुरातन समय में जब तपस्वी और योगी ध्यान में बैठते थे तो उनका अनुभव था कि ॐ एक ऐसी ध्वनि है जो स्थायी रूप से सुनाई देती है। यह ध्वनि न केवल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में बाहरी रूप से बल्कि शरीर के अंदर भी लगातार सुनाई देती है। ॐ की ध्वनि चेतन मन और आत्मा को शान्ति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली है। ॐ शब्द के उच्चारण में दांत, जिव्हा, होंठ, तालु और फेफड़ों की वायु की सम्मिलित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पहला अक्षर अ कंठ से निकलता है, दूसरा अक्षर उ ह्रदय को स्वस्थ रखता है और तीसरा अक्षर म नाभि में कम्पन उत्पन्न करता है। इसकी गूँज से शरीर की नसों और नाड़ियों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। शास्त्रों में ॐ जप का बहुत महत्त्व बताया गया है। इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है। साथ ही यह मानसिक और शारीरिक रोगों को नष्ट करने में सहायक है।
शंख
शंख भारत के हर घर में पूजा के स्थान पर पाया जाता है। यह मात्र एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो पूजा में अनिवार्य है। हिन्दू धर्म में पूजा आरम्भ होने से पहले शंख की ध्वनि को शुभ माना जाता है। सनातन धर्म में शंख से जल अर्पित करने की भी प्रथा है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में शंख को बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण कहा गया है। महाभारत में युद्ध आरम्भ करने से पूर्व शंखनाद किया गया था। अथर्ववेद में उल्लेखनीय है कि शंख से राक्षसों का नाश संभव है। देवताओं द्वारा भी शंख का प्रयोग किया गया था। भगवान कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख बहुत अद्भुत बताया गया है। यह विजय का प्रतीक है। शंख की ध्वनि से आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। उल्लेखनीय है कि जहाँ तक शंख की ध्वनि पहुँचती है वहां-वहां रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। समुद्र मंथन से निकले १४ रत्नों में एक शंख भी था। शंख दो प्रकार का होते हैं, दक्षिणावर्ती और वामावर्ती।
दक्षिणावर्ती शंख का मुख दायीं ओर खुला होता है। यह बहुत ही पवित्र और लक्ष्मी एवं समृद्धि प्रदान करने वाला शंख है।
वामावर्ती शंख बांयीं ओर से खुला होता है, इसकी ध्वनि बीमारी के कीटाणुओं को नष्ट करती है।
दीपक
हर पूजा के कार्य में दीपक प्रज्ज्वलित करना बहुत महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में दीपक प्रज्जवलित किया जाता है। दीपक न केवल प्रकाश उत्पन्न करता है अपितु अज्ञानता को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने का भी प्रतीक है। साथ ही दीपक मनुष्य जीवन में सकारात्मकता प्रदान करता है। विशेष रूप से गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्त्व है क्यूंकि गाय को बहुत पवित्र माना गया है और इसके दूध से बने घी में अनेक गुण होते हैं। जो न केवल शरीर बल्कि वातावरण को भी शुद्ध और पवित्र करते हैं। जहाँ गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित किया जाता है वहां एक भिन्न प्रकार की सकारात्मकता होती है। इसलिए तेल के दीपक से अधिक घी के दीपक को महत्त्व दिया जाता है।
तिलक
सनातन धर्म में तिलक को भी बहुत महत्वपूर्ण कहा गया है। पूजा में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का मस्तिष्क तिलक से सुसज्जित होता है। अनेक लोग प्रतिदिन तिलक लगाते हैं। तिलक की प्रथा सनातन धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म में नहीं है। मानव शरीर में सात चक्र पाए जाते हैं जो ऊर्जा और शक्ति के केंद्र हैं। मस्तिष्क में जहाँ तिलक लगाया जाता है वहां आज्ञाचक्र उपस्थित है। यही गुरु स्थान है और यही हमारे शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा और चेतना का स्थान है। इस चक्र पर तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला व् सुषुम्ना मिलती हैं इसलिए इस स्थान को संगम अथवा त्रिवेणी भी कहते हैं। ध्यान लगाने की प्रक्रिया में इसी चक्र पर ऊर्जा को केंद्रित किया जाता है। मस्तिष्क पर तिलक धारण करने से शांति मिलती है। भिन्न भिन्न उँगलियों से तिलक लगाने के भिन्न महत्त्व हैं। जैसे अनामिका से तिलक लगाने से मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। वहीँ अंगूठे से तिलक लगाना प्रसिद्धि, वैभव और आरोग्य का प्रतीक है।