रावण के विषय में आपने अधिकतर एक ही बात सुनी है सीता हरण ,इसके अलावा उसमे असंख्य गुण तथा विशेषताएं भी थी। शास्त्र,वास्तु तथा ज्योतिष के महान ज्ञाता रावण ने एक पुस्तक भी लिखी थी जो रावण संहिता के नाम से प्रसिद्ध है। यह ज्योतिष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। अपने असीम ज्ञान के कारण रावण को अहम हो गया था। और भगवान राम के हाथों मृत्यु का सामना करना पड़ा। इस पोस्ट में हम आपको रावण केजीवन से जुड़े रहस्य बताएँगे।
पहला रहस्य
दशानन को यह नाम शिवजी ने दिया था। जब रावण शिवजी का कैलाश पर्वत से लंका में स्थानांतरण करना चाहता था तब उसने कैलाश पर्वत को उठा लिया था। लेकिन शिवजी ने अपना पांव रखकर ऐसा करने से रोक लिया। और उसकी उंगली कुचल दी। वह पीड़ा के कारण जोर से दहाड़ने लगा। इसी समय उसने शिव तांडव स्त्रोतम प्रदर्शित किया। उसने रूद्र विणा का निर्माण भी किया जिसमे उसने अपना एक सिर विणा के तुम्बे को बनाने में,एक भुजा को धरणी बनाने में तथा अपनी तंत्रिका को स्ट्रिंग्स बनाने में उपयोग किया। शिवजी प्रभावित हुए और उसको यह नाम दिया।
दूसरा रहस्य
रावण ने पुष्पक विमान जैसे हवाई वाहन को भी नियंत्रित कर लिया था। पुष्पक विमान को हर कोई नियंत्रित नहीं कर सकता था। उसके पास ऐसे ही अनेक हवाई विमान थे।
तीसरा रहस्य
अत्यंत तीव्र बुद्धि वाले रावण को कोई वश में भी नहीं कर सकता था। असीम शक्तिशैली रावण मानसिक तथा शारीरिक रूप से सबसे अधिक प्रबल था। ग्रहों की स्थिति बदलने की शक्ति रखने वाले रावण एक अत्यंत ज्ञानी ब्राह्मण थे। अपने पुत्र मेघनाथ के जन्म पर रावण ने सभी ग्रह को मेघनाथ के ग्यारहवे ग्रह में रहने का निर्देश दिया था। परन्तु शनि ग्रह ने ऐसा करने पर आपत्ति जताईऔर बारहवें ग्रह में स्थापित हो गए। तो रावण ने शनि को कारावास में दाल दिया था।
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चौथा रहस्य
क्या आप जानते हैं की रावण और कुम्भकरण भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। जय और विजय नामक द्वारपाल बैकुंठ में भगवान की सेवा द्वार रक्षकों के रूप में कर रहे थे। एक दिन ब्रह्मा के पुत्र चार कुमार जिन्होंने ब्रह्मचर्य को चुना था और ब्रह्मा जी से सदा पांच वर्ष का रहने का वरदान माँगा बैकुंठ पहुंचे। और उन्हें बालक समझकर जय और विजय ने उन्हें प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। उनको यह कह दिया गया की भगवान विष्णु अभी नहीं मिल सकते। चार कुमारों ने कहा की भगवान अपने भक्तो के लिए सदैव समर्पित रहते हैं। क्रोधित कुमारों ने जय और विजय को श्राप दिया की उन्हें भगवान से अलग रहना पड़ेगा। जय और विजय के क्षमा मांगने पर कुमारों ने कहा या तो वो धरती पर भगवान के सहयोगियों के रूप में सात जन्म व्यतीत करें या तीन जन्म भगवान के शत्रु बनकर बिताएं। जय और विजय ने धरती लोक पर तीन जन्मो के दंड को उचित समझा और एक जन्म में रावण तथा कुम्भकरण के रूप में पृथ्वी पर आये।
पांचवां रहस्य
रावण की मृत्यु के समय राम ने लक्षमण को उससे कूटनीति तथा विद्याएं सीखने के लिए भेजा। लक्षमण रावण के सिर की ओर जाकर खड़े हो गए थे तो उसको क्रोध आया और अपना ज्ञान देने से मना कर दिया। तब राम के कहे अनुसार लक्षमण उसके चरणों के समीप पहुंचे और क्षमा मांगी। इस प्रकार रावण ने अपनी कूटनीतियां तथा विद्याएं लक्षमण को प्रदान की।