हमारे देश में कम ही लोग ऐसे हैं जो सहवास यानि सेक्स के विषय में खुलकर बातें करते है लेकिन क्या अपने कभी सोचा है की यदि हिंदू धर्म सहवास का विरोधी होता तो क्या हिंदू धर्म के मूल सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में `काम` को शामिल किया जाता? सोचिए क्या खजुराहो के मंदिर बनते? या फिर आचार्य वात्सायन कामसूत्र जैसे ग्रंथों की रचना करते,अगर नहीं तो आज हम क्यों सहवास यानी सेक्स जैसे महत्वपूर्ण विषय पर बात करने से डरते है क्यूंकि हिन्दू प्राचीन नियमों के अनुसार सहवास से वंशवृद्धि, मैत्रीलाभ, साहचर्य सुख, मानसिक रूप से परिपक्वता, दीर्घायु, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुख की प्राप्ति हासिल की जा सकती है।
आज की युवा पीढ़ी सिर्फ आनंद के लिए एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करते है जबकि वो ये नहीं जानते की पति और पत्नी के बीच सहवास रिश्तों को मजबूत बनाए रखने का एक आधार होता है, बशर्ते कि उसमें प्रेम हो, काम-वासना नहीं ।इसलिए ये जरूरी हो जाता है की आज की युवा पीढ़ी को सहवास के प्राचीन नियमों के बारे में जानना चाहिए ताकि उनके रिश्ते आपस में अधिक मजबूत हो सके और उन्हें एक संस्कारवान संतान की प्राप्ति हो सके । तो मित्रों आइये मिलकर जानते हैं कि हिन्दू धर्मशास्त्रों में सहवास के वे कौन से नियम हैं जिन्हें जानकर लाभ उठाया जा सकता है और दाम्पत्य सुख को और अधिक बढ़ाया जा सकता है।
1. पहला नियम :मित्रों हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मनुष्यों के शरीर में व्यान,समान, अपान,उदान और प्राण नाम के 5 प्रकार की वायु रहती है। इन पाँचों में से एक अपान वायु ही मल, मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव को बाहर निकालने का कार्य करती है। इसमें से शुक्र को ही वीर्य भी कहा जाता है यानी यह वायु संभोग से संबंध रखती है।शास्त्रों के अनुसार जब इस वायु की गति में फर्क आता है या यह किसी भी प्रकार से दूषित हो जाती है तो मूत्राशय और गुदा संबंधी रोग उत्पन्न होते हैं।जिस वजह से संभोग की शक्ति पर भी असर पड़ता है।अपान वायु ही स्त्रियों में माहवारी, प्रजनन और यहां तक कि संभोग को भी नियंत्रित करने का कार्य करती है। इसलिए मनुष्यों को चाहिए वह अपने शरीर में इस वायु को शुद्ध और गतिशील बनाए रखने के लिए अपने उदर यानी पेट को साफ़ रखे और निश्चित समय पर शौचादि से निवृत्त हो।
2. दूसरा नियम :कामसूत्र के रचयिता आचार्य वात्सायन का मानना है की स्त्रियों को कामशास्त्र का ज्ञान होना बेहद जरूरी है,क्यूंकि इस ज्ञान का प्रयोग पुरुषों से अधिक स्त्रियों के लिए जरूरी है। वे आगे लिखते है की यदि स्त्री और पुरुष दोनों में ही इसका भरपूर ज्ञान हो तो चर्म सुख की प्राप्ति होती है। वात्सायन के अनुसार सभी स्त्री को विवाह से पहले पिता के घर में और विवाह के पश्चा्त पति की अनुमति से कामशास्त्र की शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए। इससे दांपत्य जीवन में स्थिरता बनी रहती है और पति अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित नहीं हो पाता |इसलिए स्त्रियों को यौनक्रिया का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वह काम कला में निपुण हो सके और पति को अपने प्रेमपाश में बांधकर रख सके।साथ ही आचार्य वात्सायन बताते है की स्त्रियों को अपने किसी विश्वसनीय दाई,विवाहिता सखी, हम उम्र मौसी या बड़ी बहन, ननद या भाभी जिसे संभोग का आनंद प्राप्त हो चुका हो आदि से बिना किसी लज्जा के सहवास की शिक्षा लेनी चाहिए।।
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3. तीसरा नियम :हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी को अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्थी, अष्टमी, रविवार, संक्रांति, संधिकाल, श्राद्ध पक्ष, नवरात्रि, श्रावण मास और ऋतुकाल आदि में किसी भी रूप में शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करनी चाहिए।जो स्त्री पुरुष इस नियम का पालन करते है उनके घर में सुख, शांति, समृद्धि और आपसी प्रेम-सहयोग बना रहता है और जो ऐसा नहीं करते वह अपने घर में गृहकलह और धन की हानि और आकस्मिक घटनाओं को आमंत्रित करने का काम करता है।
4. चौथा नियम :हमारे धर्मशास्त्रों में ये भी बताया गया है की रात्रि का पहला प्रहर यानी रात के बारह बजे तक रतिक्रिया के लिए सबसे उचित समय है। इस प्रहर में की गई रतिक्रिया के फलस्वरूप धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी सन्तानो की प्राप्ति होती है। भगवान शिव के आशीर्वाद से ऐसी संतानों की आयु लम्बी एवं भाग्य प्रबल होता है। और जो स्त्री पुरुष प्रथम प्रहर के बाद रतिक्रिया करते हैं उससे उत्पन्न होने वाली संतान में राक्षसों के समान गुण आने की प्रबल आशंका होती है। क्यूंकि प्रथम प्रहर के बाद राक्षसगण पृथ्वीलोक के भ्रमण पर निकलते हैं। इसके अलावे पहले प्रहर के बाद रतिक्रिया इसलिए भी अशुभकारी है, क्योंकि ऐसा करने से शरीर को कई रोग भी घेर लेते हैं।
5. पांचवां नियम : हिन्दू प्राचीन ग्रन्थ आयुर्वेद के अनुसार किसी भी पुरुष को स्त्री के मासिक धर्म के दौरान अथवा किसी रोग, संक्रमण होने पर उसके साथ संबंध नहीं बनाना चाहिए। यदि वह खुद को संक्रमण या जीवाणुओं से बचाना चाहता है तो सहवास के पहले और बाद में कुछ स्वच्छता नियमों का पालन करना चाहिए। जननांगों पर किसी भी तरह का घाव या दाने हो तो सहवास न करें। सहवास से पहले शौचादि से निवृत्त हो लें। सहवास के बाद जननांगों को अच्छे से साफ करें या स्नान करें।
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छठा नियम :यदि आपकी पत्नी या पति की सहवास करने की इच्छा नहीं है,या किसी दिन व्यवहार मित्रवत नहीं है, मन उदास या खिन्न है तो ऐसी स्थिति में सहवास नहीं करना चाहिए। इसके आलावा यदि मन में या घर में किसी भी प्रकार का शोक हो तब भी संभोग नहीं करना चाहिए।अर्थात पति-पत्नी की मन:स्थिति अच्छी हो तभी सहवास करना चाहिए।
सातवां नियम :इन सबके आलावा हिन्दू धर्मशास्त्रों में ये भी बताया गया है की पवित्र माने जाने वाले वृक्षों के नीचे, सार्वजनिक स्थानों, चौराहों, उद्यान, श्मशान घाट, वध स्थल, औषधालय, मंदिर, ब्राह्मण, गुरु और अध्यापक के निवास स्थान में संभोग नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो शास्त्रानुसार उसको इसका बुरा परिणाम भुगतना पड़ता है।
आठवां नियम :हिन्दू धर्म शास्त्र में इस बात का भी उल्लेख मिलता है की किसी भी स्त्री पुरुष को किसके साथ सहवास नहीं करना चाहिए। दुश्चरित्र, अशिष्ट व्यवहार करने वाली तथा अकुलीन, पर स्त्री या परपुरुष के साथ सहवास नहीं करना चाहिए अर्थात व्यक्ति को अपनी पत्नी या स्त्री को अपने पति के साथ ही सहवास करना चाहिए। नियमविरुद्ध जो ऐसा कार्य करता है, वह बाद में जीवन के हर मोड़ पर पछताता है।क्यूंकि उसके अनैतिक कृत्य को देखने वाला ऊपर बैठा है।
नौवां नियम : ये भी बताया गया है की किसी भी पुरुष को अपनी पत्नी के साथ गर्भकाल के दौरान सहवास नहीं करना चाहिए। गर्भकाल में संभोगरत होते हैं, तो भावी संतान के अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है। हालांकि कुछ शास्त्रों के अनुसार 2 या 3 माह तक सहवास किए जाने का उल्लेख मिलता है लेकिन गर्भ ठहरने के बाद सहवास ना हीं किया जाए तो ही उचित है।
दसवां नियम :इसके अलावे आचार्य वात्सायन द्वारा लिखित कामसूत्र में इस बात का भी वर्णन मिलता है की मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम 4 दिवसों में संभोग से पुरुष रुग्णता को प्राप्त होता है।पांचवीं रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवीं रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नौवीं रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अतिश्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवीं रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवं चौदहवीं रात्रि के संभोग से सद्गुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है। पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मीस्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। इसके बाद अक्सर गर्भ नहीं ठहरता।