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यमलोक कैसा है और यहाँ क्या होता है?

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गरुड़ पुराण के अनुसार कैसा होता है यमलोक ?

हिन्दू धर्म में गरुड़ पुराण का पाठ अक्सर किसी के मृत्यु के बाद किया जाता है। क्या आप जानते हैं क्यों? दोस्तों यह एक ऐसा पुराण है जिसमे मनुष्य की मृत्यु के पश्चात आत्मा के साथ क्या होता है? आत्मा कहाँ जाती है? किस प्रकार की आत्मा को यमलोक प्राप्त होता है आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन है। या ऐसा कहें कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा की सम्पूर्ण यात्रा विस्तारपूर्वक इस पुराण में बताई गयी है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पापी आत्माओं को किस प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं। इस पोस्ट में हम जानेंगे कि गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक कैसा है और यहाँ क्या होता है?

कौन जाता है यमलोक ?

गरुड़ पुराण में जब गरुण भगवान श्री हरि विष्णु से यमलोक के विषय में प्रश्न करते हैं। तब उत्तर में भगवान यमलोक के रास्तों और यमलोक की व्याख्या करते हुए कहते है की वास्तव में यमलोक में उन्ही आत्माओं को ले जाया जाता है जो पापी होती हैं। यमलोक में यमराज निवास करते हैं। जिन आत्माओं ने पुण्य कर्म किये होते हैं जैसे दया, दान, आदि उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जब किसी पापी व्यक्ति की मृत्यु का समय निकट होता है। तब यमराज के दूत व्यक्ति के पास आते हैं और जैसे ही आत्मा शरीर से बाहर निकलती है। यमदूत आत्मा को अपने साथ यमलोक ले जाते हैं।

यमलोक का रास्ता 

 यमदूतों का रूप बहुत ही भयानक होता है।ये बहुत डरावने दिखते हैं और आत्मा को प्रताड़ित करते हुए यमलोक लेकर जाते हैं। अर्थात शरीर त्यागते ही पापी आत्माओं को प्रताड़ना मिलना आरम्भ हो जाती है। यमदूत जिन रास्तों से आत्मा को यमलोक लेकर जाते हैं ये रास्ते भी बहुत डरावने और कष्टदायी हैं। आत्मा को राहत प्रदान करने वाली एक भी वस्तु इन रास्तों पर नहीं पायी जाती। इन रास्तों में भयंकर गर्मी होती है। पानी की एक बूँद और वृक्ष की छाया, कुछ भी नहीं मिलता।  यह मार्ग पिघले हुए लावा के सामान तपता हुआ, काँटों से भरा हुआ और भूमि अग्नि के सामान गर्म है. रास्ते में मिलने वाली प्रताड़नाओं से आत्मा अपने परिजनों को बहुत याद करती है और भावों में बहकर तड़पती है। ऐसे कष्टों को सहन करते हुए अंततः आत्मा यमलोक पहुँचती है।

गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक

यमलोक 86000 योजन में फैला हुआ है। हमारी गणना के अनुसार 1 योजन लगभग 1000 किलोमीटर के बराबर होती है। यमलोक के चार द्वार हैं-दक्षिण और दक्षिण। पश्चिम में यमपुरी है।  यमपुरी की दीवारें इतनी शक्ति शाली हैं कि इन्हें भेदना असंभव है। यहाँ यमराज की अनुमति के बिना देवता भी प्रवेश नहीं कर सकते। यमपुरी में यमराज समेत उनके सभी दूतों के निवास स्थान हैं। यमपुरी बिजली के समान चमकती है। भगवान विष्णु यमराज के भवन का व्याख्यान करते हुए कहते हैं कि यमराज के भवन की चमक स्वर्ण के समान है।  वहां हमेशा कर्णप्रिय ध्वनि सुनाई देती रहती है। अनगिनत प्रकार के पुष्प इस भवन को सुगन्धित करते रहते हैं। इस भवन में एक बेहद आकर्षक सिंहासन है जहाँ यमराज विराजमान होते हैं। अनेक गन्धर्व और अप्सराएं उनकी सेवा के लिए उपस्थित रहते हैं। यहाँ यमराज की सभा लगती है।

क्या सच में स्वर्ग और नरक होता है ?

 गरुणपुराण के अनुसार यहाँ केवल धर्म के मार्ग पर चलने वाली आत्माएं प्रवेश कर सकती हैं। ऐसी आत्माएं जिन्होंने कभी असत्य न कहा हो, आध्यात्मिक प्रवृत्ति की हों, शांत स्वभाव की हों और जिन आत्माओं ने दान पुण्य किया हो। ऐसे ही आत्माओं को यमराज कि सभा में आने का अवसर प्राप्त होता है। इस प्रकार की आत्माओं के साथ यमराज मित्रता का व्यवहार करते हैं। ऐसी आत्माओं और यमराज समेत इस सभा में बहुत से ऋषि मुनि और तपस्वी उपस्थित होते हैं।

यमपुरी के मध्य में चित्रगुप्त का भवन है जो बहुत आकर्षक और भव्य है। यहाँ हर समय वाद्ययंत्र बजते रहते हैं और इसमें मणियों और रत्नो का बहुत आकर्षक सिंहासन है। जिस पर बैठकर चित्रगुप्त आत्माओं के कर्मों का लेखा जोखा तैयार करते हैं और कर्मो के अनुसार आत्माओं को यातनाएं दी जाती हैं।

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