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अर्जुन को क्यों बनाना पड़ा नपुंसक ?

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अर्जुन को अपने जीवन में एक बार नपुंसक बनना पड़ा था। अर्जुन को महाभारत का मुख्य पात्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है की महाभारत काल में अर्जुन के समतुल्य कोई भी धनुर्धारी नहीं था। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ था अर्जुन को एक साल तक नपुंसक के रूप में जीवन व्यतीत करना पड़ा। 

अर्जुन की तपस्या 

पाँचों पांडवों और द्रौपदी के वनवास के विषय में तो हम सभी जानते हैं। अपने वनवास के दौरान पांडव बहुत अधिक निराश हो गए थे। तब भगवान कृष्ण ने उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा। कौरव यही चाहते हैं कि पांडव पूरी तरह टूट जाएँ और विफल हो जाएँ। भगवान कृष्ण ने कहा कि 13 वर्षों का यह वनवास पांडवों के लिए एक वरदान है। जिसका लाभ उठाते हुए उन्हें अपने हौसले और शक्ति को बढ़ाना चाहिए। अर्जुन को गहन तपस्या करके अपने शरीर सहित इंद्रलोक जाने कि शक्ति प्राप्त करनी चाहिए। जिससे अर्जुन इंद्रलोक जाकर अपने पिता से दिव्य अस्त्रों को प्राप्त कर सके। और  युद्ध में इन अस्त्रों को प्रयोग कर सकें। तब अर्जुन ने भगवान कृष्ण के कहे अनुसार घोर तपस्या की। और स्वयं को शरीर सहित इंद्रलोक जाने योग्य बनाया। तब इंद्र ने अर्जुन को लाने के लिए वाहन भेजा।

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अर्जुन पहुंचे इंद्रलोक

अर्जुन इंद्रलोक पहुंचा।  इंद्रदेव ने उन्हें ब्रह्मास्त्र प्रदान करने का वचन दिया।  साथ ही अप्सरा उर्वशी से कहा कि अर्जुन अतिथि है। उसके सम्मान और आवभगत में ज़रा भी कमी नहीं रेहनी चाहिए। इंद्र ने अपने दिए वचन के अनुसार अर्जुन को ब्रह्मास्त्र समेत सभी दिव्यस्त्र प्रदान किये। अर्जुन के इंद्रलोक में प्रवास के दौरान अप्सरा उर्वशी उसके रूप को देखकर उन पर मोहित हो गयी। एक बार रात्रि के समय वो अर्जुन के शयनकक्ष में पहुंची। वह उसके को नींद से जगाने का निरंतर प्रयास किया। अर्जुन कि नींद खुलने के पश्चात् उसको अचम्भा हुआ कि इतनी रात में उर्वशी उसके कक्ष में क्यों आयी है। उर्वशी ने कहा कि अपने अतिथि कि सेवा करना मेरा धर्म है। मैं अपने आतिथ्य धर्म का पालन कर रही हूँ। तुम्हारी सेवा करना मेरा परम कर्तव्य है।

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उर्वशी की कामवासना

उर्वशी ने अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करने के अनेकों प्रयास किये। अर्जुन असमंजस में थे कि उर्वशी को क्या कहें। उर्वशी ने कहा मुझ जैसी अप्सरा के  सौंदर्य, यौवन और उसके आवाहन कि भाषा भी तुम नहीं समझ सकते। अर्जुन ने कहा कि यह सदाचार कि भाषा नहीं है। मेरे लिए हर वो स्त्री आदरणीय और माता के सामान है जो मेरे विवाह बंधन में नहीं बंधी। तुम मेरी माँ सामान हो। तब उर्वशी ने आश्चर्य से पूछा एक सूंदर स्त्री और नौजवान पुरुष के मध्य माता और पुत्र का सम्बन्ध कैसे हो सकता है। तुम्हारी बातें मुझे श्राप के सामान प्रतीत होती हैं। उसने कहा इंद्रदेव मेरे पिता हैं और तुम उनकी प्रेमिका इसलिए तुम मेरी माँ सामान हो। उर्वशी ने कहा यह पृथ्वीलोक का नियम है। और इंद्रलोक कि अप्सराओं कि कोई सीमारेखा नहीं होती। हमारे संबंधों में प्रतिबंध नहीं होते।

अर्जुन को उर्वशी का श्राप

 तब उन्होंने कहा कि मैं यहाँ अपने देह समेत पृथ्वी लोक से आया हूँ। मैं वही का निवासी हूँ , मैं वही के नियमों का पालन करूँगा। तब उर्वशी ने क्रोध में कहा कि पृथ्वी लोक यह धर्म है कि पुरुष एक स्त्री के प्रेम को ठुकरा दें। अर्जुन के पुनः समझने पर उर्वशी ने अहम में कहा कि मैं उर्वशी हूँ।मैंने कभी किसी से इस प्रकार प्रेम कि याचना नहीं की। आज तक हर पुरुष ने मेरे समक्ष प्रेम की भिक्षा मांगी है। मैंने पहली बार किसी से प्रेम की याचना की । तुमने मेरा तिरस्कार किया है। इस अपमान को कोई भी स्त्री नहीं सहन कर सकती ।इसलिए मैं तुम्हे श्राप देती हूँ । अपने जिस पुरुषत्व और यौवन का तुम्हे इतना घमंड है उसका नाश हो जायेगा । तुम नपुंसक हो जाओगे। अर्जुन ने कहा मैं आपके इस श्राप को स्वीकार करता हूँ।

श्राप कैसे बना वरदान

भगवान कृष और रुक्मिणी यह पूर्ण दृश्य देख रहे थे।  रुक्मिणी ने कृष्ण से कहा की जहाँ एक ओर अर्जुन ब्रह्मास्त्र को प्राप्त करके शक्तिशाली बन गया है। वहीँ दूसरी ओर उर्वशी के श्राप ने उसे क्षीण कर दिया है। तब भगवान कृष्ण ने कहा कि सत्य और धर्म का मार्ग अत्यंत कठिन होता है। परन्तु अंत में विजय भी धर्म कि ही होती है। अर्जुन के लिए यह श्राप भी विधि का विधान है। इस श्राप में उसका ही लाभ छुपा है। तब रुक्मिणी ने पूछा इसमें अर्जुन का कैसा लाभ? कृष्ण ने उत्तर दिया कि पांडवों का 12 वर्ष का वनवास समाप्त हो गया है। परन्तु अभी एक वर्ष का अज्ञातवास बचा हुआ है। इस अज्ञातवास के दौरान उर्वशी का यह श्राप उसके लिए वरदान साबित होगा। इस श्राप के कारण अर्जुन नपुंसक का रूप ले लेगा। उसे कोई नहीं पहचान सकेगा

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