होम महाभारत जब मरते हुए कर्ण ने पूछा आखिर मेरा क्या दोष था फिर श्री कृष्ण ने बताया…

जब मरते हुए कर्ण ने पूछा आखिर मेरा क्या दोष था फिर श्री कृष्ण ने बताया…

by divinetales
मरते समय कर्ण ने भगवान् कृष्ण से क्या माँगा?

मित्रों…महाभारत का युद्ध ऐसा भयावह  युद्ध था, जिसमें बहुत से दिग्गज और शक्तिशाली योद्धाओं ने कौरवों और पड़ावों की तरफ से लड़ाई लड़ी और अपने प्राण त्याग दिए. उन्हीं दिग्गज शूरवीरों में से एक थे सूर्यपुत्र कर्ण। 

ये तो सभी को पता है कि उनके जन्म होने के बाद से लेकर मृत्यु तक उन्हें कितनी ज्यादा यातना झेलनी पड़ी थी. अपने साथ हुए इन अन्यायों को लेकर महाभारत के युद्ध में मरते हुए कर्ण ने भगवान् श्रीकृष्ण से कुछ सवाल किये थे. और आज हम आपको यही बताएँगे कि  वो सवाल क्या थे और श्रीकृष्ण ने उन सवालों के क्या उत्तर दिए थे,

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका THE DIVINE TALES पर एक फिर से 

अर्जुन के हाथों जब कर्ण को बाण लग गया और कर्ण को जब आभास हो गया कि अब मेरा अंतिम समय आ गया तो तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को अपने पास बुलाया और उनसे पूछने लगे हे माधव मेरा मन में कुछ प्रश्न हैं जिसका मैं मरने से पहले समाधान चाहता हूँ और ये समाधान केवल आप ही बता सकते हैं। तब श्री कृष्ण ने कर्ण से बोलेमित्र जो भी पूछना है पूछो। तब कर्ण बोले हे माधव जन्मते ही मुझे मेरे माँ ने त्याग दिया। एक अवैध बच्चे के रूप में जन्म लेने में मेरा क्या अपराध था ?

उसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि मैं राधे पुत्र अर्थात सूद पुत्र था। क्षत्रिय होते हुए भी मैं क्षत्रिय ना था इसमें मेरा क्या अपराध था भगवान परशुराम ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी,उस वक्त मैं वह विद्या भूल जाऊंगा । क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय नहीं था।

एक बार दुर्बजेवाश मुझसे एक गाय को बाण लग गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई और उसके मालिक ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था। इतना ही नहीं द्रौपदी के स्वयंवर में भी मेरा अपमान किया गया। माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया किंतु अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए।

जो भी मुझे प्राप्त हुआ है, दुर्योधन से ही हुआ है। तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ?

कर्ण के प्रश्नों को सुनने के बाद भगवान कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया और कहा- कर्ण,  मेरा जन्म कारागार में हुआ। जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ,  उसी रात माता पिता से दूर किया गया।

माधव ने आगे कहा- तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता। मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला और खड़ा होकर चल भी पाया उसके पहले ही कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े। कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। लोगों से ताने ही मिले कि उनकी समस्याओं का कारण मैं हूँ। तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की तारीफ कर रहे थे, मुझे उस उम्र में कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी। जब मैं सोलह वर्षों का हुआ तब कहीं जाकर ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा। तुमने अपनी पसंद की कन्या से विवाह किया।

जिस कन्या से मैंने प्रेम किया वो मुझे नहीं मिली और उनसे विवाह करना पड़ा जिन्हें मेरी चाहत थी या जिनको मैंने राक्षसों से बचाया था। उन्हें जरासंध से बचाने के लिए मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसना पड़ा और युद्ध में रण छोड़ कर जाना पड़ा, जिसके कारण मुझे रणछोड़ भी कहा गया।

अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा। धर्मराज युधिष्ठिर अगर जीतते है तो मुझे क्या मिलेगा?

मुझे केवल युद्ध और युद्ध से निर्माण हुई समस्याओं के लिए दोष दिया जाएगा।

प्रभु ने आगे कहा- एक बात का ध्यान रहे कर्ण हर किसी को जिंदगी चुनौतियाँ देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है। परंतु सत्य धर्म क्या है यह तुम जानते हो। कोई बात नहीं अगर कितना ही अपमान हो, जो हमारा अधिकार है वो हमें ना मिल पाए…महत्व इस बात का है कि तुम उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हो।

मित्रों… श्रीकृष्ण ने कहा कि- रोना बंद करो कर्ण, जिंदगी न्याय नहीं करती इसका मतलब यह नहीं होता कि तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति है।

तो दोस्तों…आपने जाना श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच का संवाद। अब आपको बताते हैं मृत्यु के दौरान सूर्यपुत्र ने भगवान से क्या मांग की थी.

जैसा की सभी को ज्ञात है कि कर्ण एक दानवीर राजा थे, जिसके कारण श्रीकृष्ण ने कर्ण के आखिरी समय में भी उसकी परीक्षा ली और कर्ण से ब्राह्मण के रूप में दान माँगा। 

तब दानवीर ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को दे दिए। इस दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। कर्ण ने वरदान के रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए अपने अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगों का कल्याण करने को कहा। 

दूसरे वरदान के रूप में श्रीकृष्ण को जन्म अपने राज्य में लेने को कहा और तीसरे वरदान के रूप में अपना अंतिम संस्कार ऐसी जगह करने को कहा, जिस धरती पर एक भी पाप न हुआ हो।

भगवान् ने कर्ण के सभी वरदानों को स्वीकार कर लिया, परंतु तीसरे वरदान को लेकर प्रभु चिंता में आ गए और ऐसी जगह सोचने लगे, जहां कोई पाप ना हुआ हो। जिसके बाद संपूर्ण धरती पर ऐसे स्थान की खोज की गई, किन्तु माधव को ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां पाप न हुआ हो।

परंतु मित्रों… श्रीकृष्ण अपने वचन से बंधे हुए थे और सिर्फ उनके हाथ ही ऐसे स्थान थे जहां कोई पाप नहीं हुआ था। इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान् ने अपने हाथों पर दुर्योधन के सहयोग से किया और कर्ण को दिए सभी वरदानों को पूरा किया। 

दोस्तों, इस तरह से दानवीर कर्ण का अधर्म का साथ देने के बाद भी भगवान कृष्ण ने उनका अंतिम संस्कार कर उनको वीरगति के साथ बैकुंठ धाम भेजना पड़ा था।

तो मित्रों, इस वीडियो के जरिए आपने जाना सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी कुछ अहम् बातें….अगर आप इनमें से कोई भी बात पहले से जानते थे तो नीचे COMMNET करके हमें जरूर बताएं…

आज की इस वीडियो में बस इतना ही… हम उम्मीद करते हैं कि हमारी वीडियो के जरिए आपको कई सवालों के जवाब मिल गए होंगे. अगर ये वीडियो पसंद आई हो तो इसे लाइक और शेयर जरूर कीजिएगा… अगर आपने हमारे चैनल को subscribe नहीं किया तो जरूर करिए….इसके साथ ही मुझे दे इजाजत… और हां इस वीडियो को अंत तक देखने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया…

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