हमारे पौराणिक ग्रंथों में कई ऐसी कथाएं हैं जिनसे आज तक जनमानस अवगत नहीं हो पाए हैं। रामायण में प्रभु राम के जीवन और रावण के वध का विवरण मिलता है। रामायण की यह कथा प्रभु श्रीराम और माता सीता के अयोध्या वापस लौटने के बाद की है।आखिर देवी सीता ने क्यों किया था कुंभकर्ण के पुत्र का वध क्यों करना पड़ा।
विभीषण का आगमन
एक दिन श्रीराम अपने परिवार के साथ राजसभा में बैठे थे। उसी समय विभीषण अपनी पत्नी और मंत्रियों के साथ दौड़े-दौड़े श्रीराम के पास पहुंचे। और उनसे मदद की गुहार करने लगे।तब प्रभु श्रीराम ने विभीषण से परेशानी का कारण पूछा। विभीषण ने बाताया कि कुंभकर्ण का एक पुत्र है।जिसका नाम मूलकासुर है। मूलकासुर का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। इस कारण कुंभकर्ण उसे लंका से बाहर जंगल में छोड़ आया था।
जंगल में मूलकासुर का मधुमक्खियों ने पालन-पोषण किया।लेकिन जब मूलकासुर को यह मालूम हुआ की उसके पिता कुम्भकरण आपके साथ युद्ध में मारे गए। और अब मैं लंका का राजा हूँ तो उसने प्रण लिया कि वह पहले मेरा वध करेगा।और बाद में अपने पिता के हत्यारे यानि श्रीराम का वध करेगा। विभीषण ने श्रीराम से कहा हे प्रभु मूलकासुर ने आपको मारने की ठान ली है। और वह इसके लिए तैयारी भी कर रहा है।
युद्ध की तैयारी
विभीषण के इतना कहते ही श्रीराम ने भाइयों सहित वानर सेना को युद्ध का आदेश दिया।और पुष्पक विमान पर बैठकर लंका की ओर चल पड़े।उधर जब मूलकासुर को इस बात की पता चली तो वह युद्ध करने के लिए लंका के बाहर पहुंच गया।दोनों सेनाओं में करीब 7 दिनों तक भयंकर युद्ध चलता रहा. लेकिन कोई परिणाम नहीं आया।युद्ध ख़त्म न होता देख ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उन्होंने श्रीरम से कहा कि मूलकासुर किसी भी पुरुष के हाथों नहीं मर सकता। क्योंकि मैंने ही इसे स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्त करने का वरदान दिया है। इसलिए मूलकासुर को एक स्त्री ही मार सकता है।
ऋषि का श्राप
आगे ब्रह्मा जी ने भगवान राम से कहा कि एक बार मूलकासुर ऋषि-मुनियों से अपने पिता की मृत्यु का शोक व्यक्त करते हुए कह रहा था- की सीता के कारण मेरे कुल का विनाश हुआ। इस पर एक ऋषि ने क्रोधित होकर मूलकासुर को श्राप से दिया की जिस सीता को तू चंडी कह रहा है। उसी के हाथ से तेरा अंत होगा। मुनी के ये कहने पर मूलकासुर उन्हें निगल गया। इसलिए मूलकासुर को देवी सीता ही परास्त कर सकती है।
सीता का आगमन
ब्रह्मा के कहे अनुसार श्री राम ने हनुमान को गरुड़ के साथ सीता को लाने के लिए भेजा। जैसे ही हनुमान जी और गरुड़, माता सीता के पास श्रीराम का संदेश लेकर पहुंचे।उसी समय देवी सीता उनके साथ चल पड़ी।और भगवान राम के पास पहुंची। तब श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के पराक्रम और उसे मिले वरदान के विषय में बताया।
चंडी अवतार
यह सब सुनते ही माता सीता क्रोधित हो गईं। र उनकी आवाज चारों दिशाओं में गूंजने लगी।माता सीता की देह से चंडी रूपी छाया निकलकर मूलकासुर का वध करने के लिए आगे बढ़ने लगीं। छाया को अपने पास आता देख मूलकासुर ने कहा हे देवी तुम यहाँ से चली जाओ। क्योंकि मैं स्त्रियों पर अपना पराक्रम नहीं दर्शाता। इसपर चंडी छाया ने मूलकासुर से कहा -मैं तेरी मृत्यु चंडी हूं। तूने ऋषि मुनियों का वध किया है इसलिए तेरा अंत निश्चित है।
इतना कहकर सीता के रूप में चंडी ने मूलकासुर पर पांच बाण चलाएं। दोनों ओर से बाणों की बौछार की जाने लगी।फिर भी मूलकासुर परास्त नहीं हो पा रहा था।
मूलकासुर का वध
तब चंडी सीता ने चंडिकास्त्र से मूलकासुर का सिर धार से अलग कर दिया। जो सीधा लंका के दरवाजे पर जा गिरा। यह देखकर राक्षस भाग खड़े हुए और सीता की छाया पुन: देह में समा गई। इस तरह सीता माता के हाथों कुंभकर्ण के पुत्र मूलकासुर का वध संभव हुआ.