“दुनिया चले न श्री राम के बिना राम जी चले न हनुमान के बिना”….
ये तो आपने कई बार सुना होगा लेकिन एक दिन ऐसा क्या हुआ जो श्री राम ने अपने परम भक्त बजरंगबली पर ब्रह्मास्त्र चला दिया…
पौराणिक कथा की माने तो जब भगवान श्री राम लंका पति रावण को मौत की नींद सुलाकर अयोध्या लौटे तब उनको अयोध्या का राजा बनाया गया। तभी एक दिन श्री राम जी के दरबार में एक सभा का आयोजन हुआ। उसी सभा में सभी वरिष्ठ गुरु और देवतागण भी उपस्थित हुए।
बता दें, उस सभा में चर्चा हो रही थी कि राम ज्यादा शक्तिशाली हैं या राम का नाम। सब लोग राम को सबसे ज्यादा शक्तिशाली बता रहे थे।
वहीं नारद मुनि का कहना था कि राम नाम में ज्यादा ताकत है। नारद मुनि की बात कोई सुन ही नहीं रहा था। तभी दूर से हनुमान जी इस चर्चा के दौरान चुपचाप बैठे सभी की बाते सुन रहे थे।
और जब सभा खत्म हुई, तब नारद मुनि ने हनुमान जी से ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी ऋषि मुनियों को नमस्कार करने को कहा। नारद दी की इस बात पर बजरंगबली ने सवाल किया कि उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को नमस्कार क्यों नहीं किया …. इसपर नारद जी ने बताया कि वो पहले राजा हुआ करते थे इसलिए उनको ऋषियों में गिनना व्यर्थ है।
तभी बजरंगबली ने ठीक वैसा ही किया जैसा नारद जी ने कहा था। हनुमान जी सबको नमस्कार कर चुके थे लेकिन उन्होंने विश्वामित्र को नमस्कार नहीं किया।
इस बात पर ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान राम को आदेश दिया कि वो फौरन हनुमान जी का वध कर दें।
फिर क्या होना था….प्रभु श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र के आदेश को टाल नहीं सकते थे। जिसके बाद उन्होंने हनुमान जी को मारने का निश्चय कर लिया।
तभी हनुमान जी ने नारद मुनि से इस समस्या का समाधान पूछा। इस पर नारद मुनि ने बजरंगबली को सलाह दी कि वो राम नाम जपना शुरू कर दें। हनुमान जी ने राम नाम जपना शुरू कर दिया।
भगवान राम ने अपने गुरु का सम्मान करते हुए बजरंगबली पर बाण चला दिए लेकिन बजरंगबली निरंतर राम-राम की माला जपते रहे। जिससे श्री राम के प्रहार का उनपर कोई असर नहीं हुआ। फिर बिना समय वयर्थ किए भगवान राम ने हनुमान जी पर सबसे शक्तिशाली शस्त्र ब्रह्मास्त्र चला दिया। लेकिन हनुमान जी पर इस बार भी कोई असर नहीं हुआ।
एक परम भक्त और उसके भगवान के बीच हो रहे ऐसे मंजर को देख नारद जी को बहुत दुख हुआ। वह विश्वामित्र के पास जाकर माफी मांगने लगे। विश्वामित्र ने नारद जी को माफ कर दिया। इस तरह हनुमान जी ने अपनी सच्ची भक्ति का परिचय दिया और मृत्यु को भी पराजित कर दिया।
भगवान श्री राम के प्रति बजरंगबली के अंदर जो श्रद्धा भाव है उससे सभी भली भाती परिचित हैं। इस भक्तिभाव के कारण ही बजरंगबली को भक्त शिरोमणि भी कहा जाता। लेकिन श्रीराम और हनुमानजी के बीच केवल भक्त और भगवान का ही नाता नहीं है बल्कि वो भाई-भाई भी हैं।
रामायण की कथा अनुसार जब राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों के साथ श्रृंग ऋषि से पुत्रप्राप्ति का हवन करवाया था जिससे प्रसन्न होकर हवनकुंड से सोने का कटोरा लेकर अग्निदेव प्रकट हुए। स्वर्ण के इस कटोरे में दिव्य खीर भरी हुई थी। जिसे तीनों रानियों को खिलाया गया था।
बता दें, राजा दशरथ ने खीर सबसे पहले महारानी कौशल्या को दी, उसके बाद सुमित्रा और कैकयी को। सबसे अंत में प्रसाद मिलने के कारण देवी कैकयी ने क्रोधित होकर राजा दशरथ से कठोर शब्द कहे।
उसी समय भगवान शंकर के प्रेरणा से एक चील वहां आई और कैकेयी की हथेली से प्रसाद उठाकर अंजन पर्वत की तरफ ले गई। अंजन पर्वत पर माता अंजनी तपस्या में लीन थीं। चील ने प्रसाद का कटोरा ले जाकर अंजनी देवी के हाथ पर रख दिया। इस प्रसाद को ग्रहण करने से देवी अंजनी भी राजा दशरथ की तीनों रानियों की तरह गर्भवती हुईं।
फिर राजा दशरथ के घर 4 पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने जन्म लिया और दूसरी ओर देवी अंजनी के गर्भ से वीर हनुमान जन्मे। एक ही खीर से जन्म के कारण भगवान राम और हनुमान में भाई का रिश्ता माना जाता है।
माना जाता है कि जब भगवान राम देवी सीता की खोज में वनों में भटक रहे थे, तब हनुमान और भगवान राम की प्रथम भेंट हुई। जबकि भगवान राम और हनुमान बचपन में साथ खेले हैं।
कथा के अनुसार, भगवान शिव, राम रूप में जन्मे भगवान विष्णु के अवतार के बाल स्वरूप के दर्शन करने अयोध्या आए। भगवान शिव मदारी के रूप में आए थे और साथ में अपने रुद्रावतार भगवान हनुमान को वानर रूप में लेकर अयोध्या आए। तब भगवान राम और हनुमान साथ में खेले।
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