शिव जिनका न आदि है न अंत। परमात्मा शिव ही इस सृष्टि का निर्माता भी हैं और विनाशक भी। धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए और अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव कई बार इस धरा पर अवतरित हुए है।तो आइये जानते हैं की भगवान शिव के कितने अवतार हुए हैं और उन अवतारों का क्या रहस्य है।
1.वीरभद्र अवतार
भगवान शिव का यह अवतार दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती के देह का त्यागने के समय हुआ था।जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ की सती ने देह त्याग दिया है तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया।उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।
2.पिप्पलाद अवतार
भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का मानव जीवन में बड़ा महत्व है।शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका।पौराणिक कथा के अनुसार जब पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए ।देवताओं ने बताया शनिदेव की दृष्टि के कारण तुम्हारे पिता जन्म से पूर्व तुम्हे छोड़कर चले गए ।पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए । उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया । श्राप के प्रभाव से शनि देव उसी समय आकाश से गिरने लगे । देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे ।शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।
3.नंदी अवतार
भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का प्रतीक है।नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है ।इस अवतार की कथा इस प्रकार है ।शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे।अपना वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की ।तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया । कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा।भगवान शिव ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया । इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए ।
4.भैरव अवतार
शिव महापुराण में भैरव को शिव का पूर्ण अवतार बताया गया है।एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे।तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी।उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो।अत मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया।उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं।भीषण होने से भैरव हैं।भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया।ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
5.अश्वत्थामा अवतार
महाभारत के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भगवान शंकर के अंशावतार थे।आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी।और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में उनके घर जन्म लेंगे।समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया।शिवमहापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।
6.शरभावतार
भगवान शंकर का छठा अवतार है शरभावतार।शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग तथा शेष शरभ पक्षी का था।इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था।हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे।तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की।लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई।यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े।तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई।उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
7.गृहपति अवतार
शंकर का सातवां अवतार है गृहपति।पौराणिक कथा के अनुसार नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था।वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं।शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की।पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए।यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की।एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया।मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की।उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया।कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शिव शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए।कहते हैं पितामह ब्रह्मï ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।
8.ऋषि दुर्वासा अवतार
ऋषि दुर्वासा को भी भगवान शिव का अवतार माना गया है।धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया।उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए।उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे।जो तीनो लोकों में में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाला होगा।समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए।विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए। और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
9.हनुमान अवतार
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है।इस अवतार में भगवान शंकर एक वानर के रूप में जन्म लिए थे।शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए। विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया।सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया।समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया।जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।
10.वृषभ अवतार
भगवान शिव ने श्री विष्णु के पुत्रों का संहार करने के लिए वृषभ अवतार लिया था ।धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी।विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए।विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया।उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।
11.यतिनाथ अवतार
भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी।जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका नामके भील दम्पत्ति रहते थे।एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए।उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की।आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने
। और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा।इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया।प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक को मार डाला है।इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए।तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें।अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन हमारा धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं।जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।
12.कृष्णदर्शन अवतार
इस अवतार में भगवान शिव ने धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है।इसलिए कृष्णदर्शन अवतार को धर्म का प्रतीक माना गया है।धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ।विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे ।तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन कर आपस में बाँट लिया।नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए।
पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ कर धन को प्राप्त करे।तब नभग ने यज्ञभूमि पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न किया।अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए।उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले । यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है।विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा।नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष भगवान शिव हैं।यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है।पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।
13.अवधूत अवतार
भगवान शिव ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शिव जी के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए।इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया।इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा।इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा।वैसे ही उनका हाथ स्थिर हो गया।यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की।जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।
14.भिक्षुवर्य अवतार
शिव का अवतार यह सन्देश देता है की वही इस सृष्टि के रक्षक हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला।उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए।समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया।रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घडिय़ाल ने अपना आहार बना लिया।तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा।इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची।तब शिवजी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया। और उससे बालक का पालन-पोषण करने को कहा।तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है।यह सब कह कर भिक्षुक रुपी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया।बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।
15.सुरेश्वर अवतार
भगवान शिव का सुरेश्वर अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को दर्शाता है।इस अवतार में भगवान शिव ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था।उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा।इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊँ नम: शिवाय का जप करने लगा।शिवजी ने सुरेश्वर का रूप धारण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगा।इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर शिव रुपी इन्द्र को मारने के लिए खड़ा हुआ—– उपमन्यु के दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए।तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया।उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।
16.किरात अवतार
किरात अवतार में भगवान शिव ने अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी।महाभारत के अनुसार वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे।तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए सुअर का रूप धारण कर वहां पहुंचा।अर्जुन ने सूअर पर अपने बाण से प्रहार किया।उसी समय भगवान शिव ने भी किरात वेष धारण कर उसी सूअर पर बाण चलाया।शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और सूअर का वध उसके बाण से हुआ है यह कहने लगे।इस पर दोनों में विवाद हो गया।अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया।अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।
17.सुनटनर्तक अवतार
पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे।नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए।जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया।इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए।कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए।उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
18.ब्रह्मचारी अवतार
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने दुबारा जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया।पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिव ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे।पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की।जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा ।उद्देश्य जानने के बाद वो शिव की निंदा करने लगे।शिव की निंदा सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ।पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया। यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।
19.यक्ष अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला । भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया।इसके बाद अमृत कलश निकला।अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनमे अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं। देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया।देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा।अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए।तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शिव भगवान हैं।सभी देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।