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भगवान शिव श्मशान में क्यों रहते हैं ?

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भगवान शिव श्मशान में क्यों रहते हैं

दोस्तों, एक बार महादेव जी को  बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी से उनसे पूछ पड़ी – हे ! देव, ये आप किसको प्रणाम करते रहते हैं? शिव जी ने पार्वती जी से कहा कि देवी! जो व्यक्ति एक बार ‘राम’ कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूं। 

उस पर पार्वती जी ने शिव जी से पूछने लगी किन्तु आप श्मशान में क्यों जाते हैं और  चिता की उस भस्म को इस तरह शरीर पर क्यों लगाते हैं

उत्तर देने की जगह शिवजी उसी समय पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहां एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। 

लोग ‘राम नाम सत्य’ कहते हुए शव को ला ही रहे थे। तब शिव जी  पार्वती को उस शवयात्रा को दिखाते हुए बोले – इस श्मशान की ओर आते समय लोग ‘राम’ नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। 

इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य नाम ‘राम’ निकलता है। उसी को सुनने, मैं श्मशान में चला आता हूं और इतने लोगों के मुख से ‘राम’ नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूं, इसे प्रणाम करता हूं और इसीलिएअग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूं। देवी, ‘राम’ नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।

दोस्तों, एक और प्रचलित लोककथा के अनुसार – दरअसल एक बार देवी  उमा भगवान शिव से पूछने लगी  –  हे ! भगवन,स्वर्ग लोक में तो अनेकों सुख सुविधाओं से संपन्न निवास स्थान है। फिर उन सब को छोड़कर आप इस  श्मशान भूमि में कैसे रहते हैं। श्मशान की वो भूमि तो  हमेशा केशों और हड्डियों से भरी रहती है, चारो तरफ  मनुष्य की खोपड़ियाँ और घड़े पड़े रहते हैं गिद्धों और गीदड़ों की जमाते जुटी रहती हैं। हर ओर चिंताएं जला करती हैं, मांस, वसा और रक्त की कीच से सनी उस भूमि में विखरी हुई आंतो वाली हड्डियों के ढेर पड़े रहते हैं। फिर भला ऐसे अपवित्र स्थान में आप क्यों रहते हैं। 

उस पर शिव जी उत्तर देते हुए बोले- देवी,  मैं तो पवित्र स्थान की खोज में दिन रात  इस पृथ्वी पर विचरण करता रहता हूं परंतु इस पूरे धरती लोक पर मुझे  शमशान से बढ़कर दूसरा कोई पवित्र स्थान नहीं मिला।  इसीलिए सभी  निवास स्थानों में से  श्मशान में ही मेरा मन अधिक रमता है। 

बरगद की डालियों से ढकी और मुर्दों के शरीर से टूट कर गिरी उन पुष्पमालाओं से सुसज्जित इस  श्मशान भूमि में  मेरे  भूत गणों का वास  हैं,अपने  भूत गणो के बिना तो मै कहीं भी नहीं रह सकता। इसलिए मेरे लिए  यह शमशान ही  पवित्र और स्वर्गीय है। 

और प्रिय, यह कोई अपवित्र स्थल नहीं बल्कि परम पुण्य स्थली है।  पवित्र वस्तु की कामना रखने वाले उपासक इसी की उपासना करते हैं। यहाँ मनुष्यों का अधिक आगमन भी नहीं होता इसलिए इस पृथ्वी पर  श्मशान भूमि से अधिक पवित्र स्थान कोई दूसरा  नहीं हो सकता। 

देवी, यह वीरो का स्थान है इसलिए मृतकों कि सैकड़ों खोपड़ियों से भरा हुआ भयानक स्थान भी मुझे सुंदर लगता है।  इसीलिए मैंने यहाँ अपना निवास बनाया है। 

और ऐसी मर्यादा है कि दोपहर के समय, दोनों संध्याओ के समय, तथा आद्रा नक्षत्र में दीर्घायु की कामना रखने वाले अथवा अशुद्ध और पापी प्रवृति वाले  पुरुषों को वहां जाना भी नहीं चाहिए ।

प्रिय, एक कारण ये भी है कि मेरे सिवा दूसरा कोई भूत जनित भय का नाश नहीं कर सकता इसीलिए मैं श्मशान में रहकर समस्त जनमानस  की रक्षा करता हूं। मेरी आज्ञा मानकर ही भूतों के समुदाय अब इस जगत में किसी की हत्या नहीं कर सकते। 

संपूर्ण जगत् के हित के लिए मैं उन भूतों को श्मशान भूमि में ही रोके  रखता हूं। 

देवी अब मैंने,   श्मशान भूमि में रहने के पीछे का  सम्पूर्ण रहस्य तो तुमको बता दिया है अब यदि कोई और प्रश्न भी तुम्हारे मन में है तो मुझसे निसंकोच पूछो।  

फिर देवी उमा पूछने लगी  –  हे ! भगवन आपका ये रूप पिंगल, विकृत, और भयानक सा प्रतीत होता है। आपका पूरा शरीर भभूति से लतपत है, सिर पर जटाओं का भार लदा हुआ है,उस पर आपकी ये विकराल आंखें एक ऐसा शूल, रौद्र, भयानक,  और घोर रूप प्रकट करती है जिससे किसी का भी भयभीत होना समान्य है कृपा कर आप मुझे इस रूप के इतने विचित्र होने का कारण  बताये। 

शिव जी बोले  – प्रिये, इसका भी एक यथार्थ कारण है…….  

इस संसार के सारे पदार्थ दो भागों में विभक्त हैं – शीत और उष्ण। अग्नि और शौम रूप के प्रतीक  उन शीत और उष्ण तत्वों  से ही यह संपूर्ण जगत गुथा हुआ है। जिनमें से  शौम्य गुण की स्थिति भगवान विष्णु में है और मुझ में इसके बिल्कुल विपरीत आग्नेय  तेजश गुण प्रतिष्ठित है। 

इस प्रकार ये विष्णु और शिव रूप  सदा समस्त लोगों की रक्षा में लगे रहते हैं।  और  देवी, ये जो विकराल नेत्र से युक्त और शूल से सुशोभित भयानक आकृति वाला मेरा रूप है यही आग्रह है। जो संपूर्ण जगत के हित में तत्पर रहता है यदि मैं इस रूप को त्याग दूँ  और इसके विपरीत हो जाऊं तो उसी समय संपूर्ण लोकों की दशा विपरीत हो जाएगी। 

देवी इसीलिए लोकहित की इच्छा से ही मैंने यह रूप धारण किया है और अब अपने इस रूप का  सारा रहस्य तुम्हें बता दिया।  

इस तरह इस कथा के जरिये महादेव ने इस गूढ़ रहस्य से और रूबरू कराया है। कि भगवान रुद्र और भगवान विष्णु दोनों एक ही परम तत्व का हिस्सा है जिनमें से एक शौम्य गुण को संजोए हुए हैं तो दूसरा तेजस गुणों को परन्तु यह दोनों ही सर्वदा एक ही है। 

अगर आप इससे जुड़ी वीडियो देखना चाहते हैं तो नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।  

https://fb.watch/ifuo2L6f8K/

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दोस्तों, एक बार महादेव जी को  बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी से उनसे पूछ पड़ी – हे ! देव, ये आप किसको प्रणाम करते रहते हैं? शिव जी ने पार्वती जी से कहा कि देवी! जो व्यक्ति एक बार ‘राम’ कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूं। 

उस पर पार्वती जी ने शिव जी से पूछने लगी किन्तु आप श्मशान में क्यों जाते हैं और  चिता की उस भस्म को इस तरह शरीर पर क्यों लगाते हैं

उत्तर देने की जगह शिवजी उसी समय पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहां एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। 

लोग ‘राम नाम सत्य’ कहते हुए शव को ला ही रहे थे। तब शिव जी  पार्वती को उस शवयात्रा को दिखाते हुए बोले – इस श्मशान की ओर आते समय लोग ‘राम’ नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। 

इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य नाम ‘राम’ निकलता है। उसी को सुनने, मैं श्मशान में चला आता हूं और इतने लोगों के मुख से ‘राम’ नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूं, इसे प्रणाम करता हूं और इसीलिएअग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूं। देवी, ‘राम’ नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।

दोस्तों, एक और प्रचलित लोककथा के अनुसार – दरअसल एक बार देवी  उमा भगवान शिव से पूछने लगी  –  हे ! भगवन,स्वर्ग लोक में तो अनेकों सुख सुविधाओं से संपन्न निवास स्थान है। फिर उन सब को छोड़कर आप इस  श्मशान भूमि में कैसे रहते हैं। श्मशान की वो भूमि तो  हमेशा केशों और हड्डियों से भरी रहती है, चारो तरफ  मनुष्य की खोपड़ियाँ और घड़े पड़े रहते हैं गिद्धों और गीदड़ों की जमाते जुटी रहती हैं। हर ओर चिंताएं जला करती हैं, मांस, वसा और रक्त की कीच से सनी उस भूमि में विखरी हुई आंतो वाली हड्डियों के ढेर पड़े रहते हैं। फिर भला ऐसे अपवित्र स्थान में आप क्यों रहते हैं। 

उस पर शिव जी उत्तर देते हुए बोले- देवी,  मैं तो पवित्र स्थान की खोज में दिन रात  इस पृथ्वी पर विचरण करता रहता हूं परंतु इस पूरे धरती लोक पर मुझे  शमशान से बढ़कर दूसरा कोई पवित्र स्थान नहीं मिला।  इसीलिए सभी  निवास स्थानों में से  श्मशान में ही मेरा मन अधिक रमता है। 

बरगद की डालियों से ढकी और मुर्दों के शरीर से टूट कर गिरी उन पुष्पमालाओं से सुसज्जित इस  श्मशान भूमि में  मेरे  भूत गणों का वास  हैं,अपने  भूत गणो के बिना तो मै कहीं भी नहीं रह सकता। इसलिए मेरे लिए  यह शमशान ही  पवित्र और स्वर्गीय है। 

और प्रिय, यह कोई अपवित्र स्थल नहीं बल्कि परम पुण्य स्थली है।  पवित्र वस्तु की कामना रखने वाले उपासक इसी की उपासना करते हैं। यहाँ मनुष्यों का अधिक आगमन भी नहीं होता इसलिए इस पृथ्वी पर  श्मशान भूमि से अधिक पवित्र स्थान कोई दूसरा  नहीं हो सकता। 

देवी, यह वीरो का स्थान है इसलिए मृतकों कि सैकड़ों खोपड़ियों से भरा हुआ भयानक स्थान भी मुझे सुंदर लगता है।  इसीलिए मैंने यहाँ अपना निवास बनाया है। 

और ऐसी मर्यादा है कि दोपहर के समय, दोनों संध्याओ के समय, तथा आद्रा नक्षत्र में दीर्घायु की कामना रखने वाले अथवा अशुद्ध और पापी प्रवृति वाले  पुरुषों को वहां जाना भी नहीं चाहिए ।

प्रिय, एक कारण ये भी है कि मेरे सिवा दूसरा कोई भूत जनित भय का नाश नहीं कर सकता इसीलिए मैं श्मशान में रहकर समस्त जनमानस  की रक्षा करता हूं। मेरी आज्ञा मानकर ही भूतों के समुदाय अब इस जगत में किसी की हत्या नहीं कर सकते। 

संपूर्ण जगत् के हित के लिए मैं उन भूतों को श्मशान भूमि में ही रोके  रखता हूं। 

देवी अब मैंने,   श्मशान भूमि में रहने के पीछे का  सम्पूर्ण रहस्य तो तुमको बता दिया है अब यदि कोई और प्रश्न भी तुम्हारे मन में है तो मुझसे निसंकोच पूछो।  

फिर देवी उमा पूछने लगी  –  हे ! भगवन आपका ये रूप पिंगल, विकृत, और भयानक सा प्रतीत होता है। आपका पूरा शरीर भभूति से लतपत है, सिर पर जटाओं का भार लदा हुआ है,उस पर आपकी ये विकराल आंखें एक ऐसा शूल, रौद्र, भयानक,  और घोर रूप प्रकट करती है जिससे किसी का भी भयभीत होना समान्य है कृपा कर आप मुझे इस रूप के इतने विचित्र होने का कारण  बताये। 

शिव जी बोले  – प्रिये, इसका भी एक यथार्थ कारण है…….  

इस संसार के सारे पदार्थ दो भागों में विभक्त हैं – शीत और उष्ण। अग्नि और शौम रूप के प्रतीक  उन शीत और उष्ण तत्वों  से ही यह संपूर्ण जगत गुथा हुआ है। जिनमें से  शौम्य गुण की स्थिति भगवान विष्णु में है और मुझ में इसके बिल्कुल विपरीत आग्नेय  तेजश गुण प्रतिष्ठित है। 

इस प्रकार ये विष्णु और शिव रूप  सदा समस्त लोगों की रक्षा में लगे रहते हैं।  और  देवी, ये जो विकराल नेत्र से युक्त और शूल से सुशोभित भयानक आकृति वाला मेरा रूप है यही आग्रह है। जो संपूर्ण जगत के हित में तत्पर रहता है यदि मैं इस रूप को त्याग दूँ  और इसके विपरीत हो जाऊं तो उसी समय संपूर्ण लोकों की दशा विपरीत हो जाएगी। 

देवी इसीलिए लोकहित की इच्छा से ही मैंने यह रूप धारण किया है और अब अपने इस रूप का  सारा रहस्य तुम्हें बता दिया।  

इस तरह इस कथा के जरिये महादेव ने इस गूढ़ रहस्य से और रूबरू कराया है। कि भगवान रुद्र और भगवान विष्णु दोनों एक ही परम तत्व का हिस्सा है जिनमें से एक शौम्य गुण को संजोए हुए हैं तो दूसरा तेजस गुणों को परन्तु यह दोनों ही सर्वदा एक ही है। 

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