हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ महाभारत की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है, जिसमे से एक है महाभारत के युद्ध स्थल पर जन्मे वह चार रहस्यमी पक्षी जिन्हे स्वर्ग की एक अप्सरा ने जन्म दिया था, और जिन्हे सभी वेदो का ज्ञाता कहा गया । पौराणिक कथाओ के अनुसार ऐसी मानयता है कि एक बार महर्षि जैमिनी के मन में महाभारत युद्ध से जुड़ी घटनाओ को लेकर बहुत सी शंकाएं पैदा हुई, और उन्ही शंकाओ के निवारण के लिए वो मार्कण्डेय ऋषि के पास जा पहुंचे ।
दिव्य पक्षियों की कथा
मार्कण्डेय ऋषि ने जैमिनी ऋषि से कहा कि आपको अपनी शंकाओ का निवारण विंध्यांचल पर्वत पर रह रहे पिंगाक्ष, निवोध, सुपुत्र और सुमुख नाम के 4 पक्षियों से मिलेगा । ये चारो पक्षी द्रोण के पुत्र है, जिन्हे वेद और शास्त्रों का संपूर्ण ज्ञान है, और जिनका पालन पोषण शमीक ऋषि करते है । यह सुन जैमिनी ऋषि नें हैरान होकर पूछा कि ये पक्षी द्रोण के पुत्र कैसे हो सकते है? और ये पक्षी कैसे मेरी शंकाओ का समाधान कर सकते है ।
इस पर मार्कण्डेय ऋषि बोले – एक बार देवमुनि नारद अमरावती जा पहुंचे । वहां इन्द्र और महेंद्र ने नारद मुनि का स्वागत किया । दोनों ने नारद मुनि से रम्भा, उर्वशी, मेनका और बाकि सभी देवसभा कि अप्सराओ में से सबसे श्रेष्ठ का चयन करने को कहा । नारद मुनि ने सभी अप्सराओ से कहा कि जो नर्तकी मुनि दुर्वासा को अपने मोह जाल में बांध सकती है, वही मेरे लिए सबसे श्रेष्ठ है । ये सुन सभी मौन हो गयी लेकिन उनमे से वपु नाम की अप्सरा ने कहा की वो मुनि दुर्वासा की तपस्या भंग कर सकती है । इसपर महेंद्र ने प्रसन्न होकर कहा कि यदि तुम मुनि दुर्वासा की तपस्या भंग कर पाई तो तुमको मुँह माँगा इनाम मिलेगा ।
मुनि दुर्वासा उस समय हिमालय पर घोर तपस्या कर रहे थे, तभी अप्सरा वपु आश्रम के समीप मधुर संगीत का आलाप करने लगी । संगीत की आवाज़ सुन मुनि दुर्वासा अपनी तपस्या से जाग उठे और क्रोध से लाल मुनि दुर्वासा वपु अप्सरा के पास जा पहुंचे । मुनि दुर्वासा ने वपु अप्सरा को तपस्या भंग करने के लिए श्राप दिया कि- हे कन्या तुम तपस्या भंग करने की योजना से यहां आई, इसलिए तुम अगले जन्म में गरुड़ पक्षी के रूप में जन्म लोगी । ये सुन कर अप्सरा वपु भयभीत हो गयी और मुनि दुर्वासा से क्षमा मांगने लगी । मुनि दुर्वासा ने अप्सरा वपु पर दया करते हुए कहा कि तुम 16 वर्ष तक पक्षी रूप मेँ जीवित रह कर 4 पुत्रो को जन्म दोगी और उसी दौरान तुम बाण से घायल हो अपने पक्षी रूप को त्याग कर वापस अपने अप्सरा रूप को प्राप्त करोगी ।
मुनि दुर्वासा का श्राप
दुर्वासा के श्राप के कारण अप्सरा वपु ने गरुड़वंशी कंधर नामक पक्षी की पत्नी मदनिका के गर्भ से जन्म लिया, जिसका नाम ताक्षी पड़ा । बाद मैं उसका विवाह मंदपाल के पुत्र द्रोण से हुआ ।16 वर्ष की आयु में ताक्षी गर्भवती हो गयी, एक दिन ताक्षी को महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जागृत हुई और उसी अवस्था में वह आकाश में उड़ती हुई महाभारत के युद्ध स्थल पर जा पहुंची, लेकिन इसी बीच अर्जुन द्वारा अपने शत्रु पर चलाया गया बाण ताक्षी के पंखो को छेदता हुआ निकल गया । जिसके कारण उसने अपने गर्भस्त्र अंडो को जमीन पर गिरा दिया और अपने पक्षी रूप को त्याग कर पुनः अप्सरा रूप में देवलोक की और चली गयी ।
संयोगवश उसी समय युद्ध लड़ रहे भगदत्त के सुप्रविक नामक गजराज का विशालकाय गलघंट भी बाण लगने से टूटकर उन्ही अंडो पर जा गिरा, जिसने उन अंडो को ढक लिया और कुछ समय बाद अंडे फुट गए जिनमे से पक्षी बाहर निकले । उसी समय मुनि शमीक उस मार्ग से गुज़र रहे थे की उन्होंने उन पक्षियों को देखा और उनपर अपनी अनुकम्पा करके उन्हें अपने साथ आश्रम ले गए । वहा उनका पालन पोषण करने लगे, कुछ समय बाद वो पक्षी मनुष्य वाणी बोलने लगे और अपने गुरु यानि मुनि को प्रणाम करने लगे ।
मुनिवर शमीक और चार पक्षी
इस बात से हैरान मुनिवर शमीक ने पक्षियों से पूछा की तुम्हे मनुष्य वाणी का ज्ञान कैसे है ?तब उन चारो पक्षियों ने अपने पिछले जन्म की कहानी सुनाई, उन्होंने कहा की पुनः जन्म में एक विपुल नामक तपस्वी ऋषि थे जिसके दो पुत्र हुए सुकृत और तुम्बुर, हम चारो सुकृत के पुत्र थे । एक दिन इन्द्र ने पक्षी के रूप में हमारे पिता के आश्रम पहुंचकर मनुष्य का मॉस माँगा, हमारे पिता ने हमे आदेश दिया की हम पितृऋण चुकाने के लिए इन्द्र का आहार बने । हमने इंकार कर दिया, इस बात से क्रोधित होकर हमारे पिता ने हम चारो को पक्षी रूप मेँ जन्म लेने का श्राप दिया और स्वय पक्षी का आहार बनने को तैयार हो गए ।
तब इन्द्र ने प्रसन्न होकर कहा की मुनिवर आपकी परीक्षा लेने के लिए मैंने मनुष्य का मांस मांगा था । आप बड़े दयालु है, ये कहकर इंद्र अपने लोक चले गए । इसके बाद हमने अपने पिता से क्षमा मांगी और श्राप से मुक्त करने के लिए प्राथना की । हमारे पिता ने श्राप मुक्त होने का उपाय बताया कि तुम पक्षी रूप मेँ सर्वज्ञाता बन कर कुछ दिन विंध्याचल पर्वत पर निवास करोगे और जिस दिन महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास अपनी शंकाओ के निवारण के लिए तुम्हारे पास आएंगे उस दिन श्राप मुक्त हो जाओगे । ये सुन मुनिवर शमीक ने चारो पक्षियों को विद्यांचल पर्वत जाने को कहा । मुनिवर के आदेशनुसार चारो पक्षी विन्द्यांचल चले गए ।
ऋषि जैमिनी के सवाल
ये कथा सुनाकर ऋषि मार्कण्डेय ने जैमिनी ऋषि से विद्यांचल पर्वत पर अपनी शंकाओ के निवारण हेतु जाने को कहा । ये सुन ऋषि जैमिनी विद्यांचल पर्वत की और रवाना हो गए । वह पहुंचकर उन्होंने वेदो का मांगा कर रहे चार पक्षियों को देखा, ये देख उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ, ऋषि जैमिनी ने उन चारो पक्षियों को प्रणाम कर उनसे चार प्रश्न पूछे ।
- इस जगत के कर्ता-धर्ता भगवान ने मनुष्य का जन्म क्यों लिया?
- राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी क्यों बनी?
- श्रीकृष्ण के भ्राता बलराम ने किस कारण तीर्थयात्राएं कीं? और…
-द्रौपदी के पांच पुत्र उपपांडवों की ऐसी जघन्य मृत्यु क्यों हुई?
इन सभी प्रश्नो के उत्तर मेँ चारो पक्षियों ने बहुत लम्बी कथा सुनाई जिनसे ऋषि जैमिनी की शंकाओ का समाधान हुआ । और इसके बाद चारो पक्षी योनि से मुक्त होकर देवलोक की और चले गए ।