होम महाभारत श्री कृष्ण और अर्जुन के बिच क्यों हुआ था युद्ध? – Why war happened between Shri Krishna and Arjuna?

श्री कृष्ण और अर्जुन के बिच क्यों हुआ था युद्ध? – Why war happened between Shri Krishna and Arjuna?

by
श्री कृष्ण और अर्जुन युद्ध

श्री कृष्ण और अर्जुन के बिच क्यों हुआ था युद्ध , जबकि हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण और अर्जुन को दो शरीर और एक आत्मा माना गया है। ऐसा माना जाता है की द्वापर युग में नर और नारायण ही श्री कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए थे। पाठकों श्री कृष्ण और अर्जुन से जुड़ी कई  कथाएं पढ़ी होगी। कुंती पुत्र अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को अपना सखा,आराध्य और मार्गदर्शक मानते थे। श्री कृष्ण को भी अर्जुन सबसे प्रिय थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ की एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन बिच भी युद्ध की नौबत आ गई थी।

श्री कृष्ण और अर्जुन के बिच युद्ध

कथा के अनुसार एक दिन महर्षि गालब प्रातः सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित कर रहे थे। उसी समय उनकी अंजुली में आकाश मार्ग से जा रहे गन्धर्व चित्रसेन की पिक गिर गई। यह देख महर्षि बड़े क्रोधित हो गए। क्रोध में वे चित्रसेन को शाप देने ही वाले थे की उन्हें अपने तपबल के नाश होने का ध्यान आया और वे रुक गए। उसके बाद उन्होंने जाकर भगवान कृष्ण को अपनी व्यथा सुनाई।  महर्षि की बात सुनकर श्री कृष्ण चित्रसेन पर अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने आठ पहरों के अंदर चित्रसेन चित्रसेन का वध करने की प्रतिज्ञा ले ली। अब ऋषि गालब को विश्वास हो गया की आज चित्रसेन का अंत निश्चित है और वो वहां से चल दिए।

नारद मुनि का आगमन 

महर्षि गालब के जाते ही देवर्षि नारद श्री कृष्ण के पास पहुंचे। श्री कृष्ण ने उदास मन से उनका स्वागत किया। श्री कृष्ण के मुख पर उदासी देख नारद जी  उनसे पूछे। हे प्रभु आपके मुख कमल पर आज उदासी क्यों दिख रही है। इस पर श्री कृष्ण ने गालब जी के व्यथा के साथ साथ अपनी प्रतिज्ञा की बात भी नारद जी को बतलाई। यह सुनकर नारद जी ना जाने क्या सुझा वो श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर वहां से चल दिए। उसके बाद देवर्षि चित्रसेन के पास पहुंचे। नारद जी को अपने यहाँ आया देख चित्रसेन ने उन्हें प्रणाम किया तत्पश्चात। वो अपनी कुंडली लाकर नारद जी से गृह दशा पूछने लगा। यह देख नारद जी ने कहा अरे मुर्ख अब तुम यह सब क्या पूछ रहे हो। तुम्हारा अंतकाल निकट आ गया है। अगर अपना कल्याण चाहते हो तो कुछ दान-पुण्य कर लो।

चित्रसेन का तीनो लोक भ्रमण

अपनी मृत्यु का समाचार सुनकर चित्रसेन घबरा गया। वह अपने प्राण की रक्षा का गुहार लिए  ब्रह्मधाम, शिवपुरी, इंद्र-यम-वरुण सभी के लोकों में गया पर प्राण की रक्षा करना तो दूर किसी ने उसे ठहरने भी नहीं दिया। सभी कहते हम जान बूझकर श्रीकृष्ण से शत्रुता क्यों उधार ले। सभी लोको से निराशा हाथ लगने के बाद चित्रसेन अंत में अपनी रोती पीटती स्त्रियों के साथ फिर देवर्षि नारद के शरण में पहुंचा।

नारद जी की सलाह

रोती स्त्रियों को देखकर नारद जी को दया आ गई। उन्होंने चित्रसेन से कहा इसी समय मेरे साथ यमुना तट पर चलो। चित्रसेन तैयार हो गया और यमुना तट की ओर निकल पड़ा। वहां पहुंचकर नारद जी उसे एक जगह दिखाते हुए कहने लगे  -आज आधी रात को यहाँ एक स्त्री आएगी। उस समय तुम ऊँची आवाज में विलाप करते रहना। वह स्त्री तुम्हे बचा लेगी। पर एक बात का ध्यान रखना जब तक वो स्त्री तुम्हारे दुःख दूर करने की प्रतिज्ञा ना कर ले तब तक तुम अपने कष्ट के बारे में कुछ भी मत बोलना। चित्रसेन को ये सब समझाकर नारद जी वहां से चल दिए।

नारद जी का सुभद्रा से मुलाकात

यमुना तट से महर्षि नारद सीधे अर्जुन के महल में सुभद्रा के पास पहुंचे। नारद को महल में आया देख सुभद्रा ने उनको प्रणाम किया और आने का उदेश्य पूछा।    तब नारद जी ने कहा सुभद्रे आज का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण है। आज आधी रात को यमुना स्नान करने और दीन की रक्षा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी।  सुभद्रा को इतना कहकर नारद जी वहां से भी चल दिए। उधर आधी रात को अर्जुन की पत्नी सुभद्रा अपनी सखियों के साथ यमुना में स्नान करने पहुंची। तो वहां उन्हें रोने की आवाज सुनाई पड़ी। सुभद्रा को देवर्षि की बात याद आ गई। सुभद्रा ने सोचा की चलो स्नान के साथ साथ दीन की मदद कर और अक्षय पुण्य कमा लूँ। यही सोचकर वो उस आवाज की ओर गई। वहां उन्हें रोता हुआ चित्रसेन मिला।

सुभद्रा की प्रतिज्ञा

नजदीक जाकर सुभद्रा ने चित्रसेन से रोने का कई बार कारण पूछा पर उसने कुछ भी नहीं बतलाया। अंत में सुभद्रा ने चित्रसेन से कहा की मैं प्रतिज्ञा करती हूँ की तुमको जो भी  कष्ट है  मैं उसे दूर करुँगी। सुभद्रा के प्रतिज्ञा करते ही चित्रसेन ने अपनी सारी व्यथा उसे सुना दी। चित्रसेन की व्यथा सुनकर सुभद्रा धर्म संकट और उलझन में पड़ गई। वह मन मैं सोचने लगी एक और श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा है और एक ओर मेरी अपनी। आखिर क्या किया जाये। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने चित्रसेन की रक्षा करने का निश्चय किया और उसे वो अपने साथ ले गई। महल पहुंचकर सुभद्रा ने सारी बात अर्जुन को बतलाई। अर्जुन ने सुभद्रा को सांत्वना दी और कहा कि तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी होगी।

अर्जुन और कृष्ण के बिच युद्ध

उधर नारद जी जब ये देखा की चित्रसेन अब अर्जुन की शरण में सुरक्षित है तो वे पुनः श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। उन्होंने श्री कृष्ण से कहा की प्रभु चित्रसेन इस समय अर्जुन की शरण में है इसलिए आप सोच समझकर ही युद्ध के लिए प्रस्थान करें। उसके बाद श्री कृष्ण और पांडव दोनों अपनी अपनी सेना के साथ युद्ध मैदान में आ खड़े हुए। दोनों के बिच घमासान लड़ाई शुरू हो गई। पर कोई परिणाम ना आता देख श्री कृष्ण ने अंत में अपना सुदर्शन चक्र चला दिया। अपनी ओर सुदर्शन चक्र को आता देख अर्जुन ने पाशुपतास्त्र छोड़ दिया। पाशुपास्त्र के छूटते ही तीनो लोको में प्रलय के लक्षण दिखाई देने लगे। यह देख अर्जुन ने शिवजी को स्मरण किया। तब शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने ने दोनों अस्त्रों को निष्फल कर दिया।

चित्रसेन को अभयदान

फिर वो श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उनसे कहा -प्रभु भक्तो के सामने अपनी प्रतिज्ञा को भूल जाना तो आपका सहज स्वाभाव है। अब  इस लीला को यही समाप्त कीजिये। शीव जी के ऐसा कहते ही श्री कृष्ण ने अर्जुन को गले लगाकर युद्धश्रम से मुक्त किया। साथ ही चित्रसेन को अभयदान दे दिया। सब लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। पर यह बात महर्षि गालब अच्छी नहीं लगी। वो बोले यह तो अच्छा मजाक किया । अब मैं अपनी  शक्ति दिखता हूँ। मेरी इस शक्ति से कृष्ण, अर्जुन, सुभद्रा समेत चित्रसेन जलकर भस्म हो जायेंगे। पर बेचारे साधु ने ज्यों ही जल हाथ में लिया, सुभद्रा बोल उठी मैं यदि कृष्ण की भक्त होऊं और अर्जुन के प्रति मेरा प्रतिव्रत्य पूर्ण हो तो यह जल ऋषि के हाथ से पृथ्वी पर न गिरे। और ऐसा ही हुआ। जिसे देख ऋषि गालव बड़े लज्जित हुए। और अपने आश्रम लौट गए।

0 कमेंट
0

You may also like

एक टिप्पणी छोड़ें