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बलराम से जुड़े अनसुने सच

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बलराम

बलराम को हमेशा से ही भगवान् कृष्ण के भाई के रूप में जाना गया है। यद्यपि कृष्ण का बड़ा भाई होना भी भगवान कृष्ण की लीला का ही भाग था। परन्तु दाऊ के नाम से जाने जाने वाले बलराम भगवान कृष्ण के हर कार्य में एक शिक्षक की भूमिका निभाते थे। आज के पोस्ट में हम आपको बलराम से जुड़े अनसुने सच के बारे में बताने जा रहे हैं।

पहला

हम अपने एक एपिसोड में सबसे शक्तिशाली नागों के विषय में बता चुके हैं। जिसमें सर्वशक्तिशाली अनंतनाग अथवा शेषनाग की भी चर्चा है। पुराणों में वर्णित है की बलराम शेषनाग के ही अवतार हैं। बल का अर्थ है आध्यात्मिक शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य जीवन के सर्वोच्च आनंद अर्थात परमानंद को प्राप्त कर सकता है। इस आनंद को रमण कहा जाता है। इसलिए बलराम नाम का निर्माण दो शब्दों बल और रमण से मिलकर होता है।

दूसरा

कहा जाता है की जब जब भगवान इस धरती पर जन्म लेते हैं तब सभी देवता भी प्रकट होते हैं। लगभग 500  वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतार लिया।  इस अवतार में भगवान स्वयं भक्त के रूप में आये और कलियुग में भगवान की भक्ति कैसे की जाए इसकी शिक्षा दी। चैतन्य महाप्रभु से पहले नित्यानंद का जन्म हुआ और नित्यानंद स्वयं उनके ही अवतार थे।

तीसरा

कंस ने अपनी बहिन देवकी का विवाह वासुदेव के साथ संपन्न किया। परन्तु विवाह के पश्चात आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। तब कंस ने उन दोनों को कारागृह में बंद कर दिया और उनके प्रथम 6 पुत्रों का वध कर दिया  सातवें पुत्र बलराम जी थे जिसे भगवान विष्णु ने योगमाया से देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया था। इस प्रकार बलराम देवकी के गर्भ में विकसित हुए और और उन्होंने रोहिणी के गर्भ से जन्म लिया।

चौथा

बलराम का विवाह रेवती के साथ हुआ था। कहा जाता है कि रेवती की कद काठी बलराम से कहीं अधिक विशाल थी। इसलिए उन्होंने रेवती को अपने हल से छोटा करके उनके साथ विवाह किया था।

पांचवां

जब भगवान कृष्ण और बलराम द्वारका चले गए थे। तब एक बार बलराम अपने माता पिता और वृन्दावन वासियों से मिलने वृन्दावन पधारे।  सभी लोग उनसे भगवान कृष्ण और उनके विषय में पूछते नहीं थक रहे थे।  चूँकि कृष्ण वृन्दावन से जाने के बाद कभी वापस नहीं आये।  गोपियाँ कृष्ण प्रेम के कारण उन्हें याद करके क्रोध से और उनकी लीलाओं को याद करके ख़ुशी से आंसू बहा रही थीं। उनकी भावनाओं को नियंत्रित करना बलराम के भी वश में नहीं था। तब उस समय गोपियों को शांत करने के लिए, बलराम ने गोपियों के साथ रासलीला की.

यमुना के साथ रासलीला

रासलीला के समय वरुणदेव ने अपनी पुत्री वारुणी को तरल शहद के रूप में वहां भेजा। जिसकी सुगंध और स्वाद से बलराम जी एवं सभी गोपियाँ प्रसन्नचित्त हो उठे। बलराम रासलीला का आनंद यमुना नदी के पानी में लेना चाहते थे।  जैसे ही बलराम ने यमुना को उन सबके समीप बुलाया। यमुना ने आने से मना कर दिया। तब क्रोध में बलराम ने कहा कि मैं तुझे अपने हल से बलपूर्वक यहाँ खींचता हूँ। और तुझे सैंकड़ों टुकड़ो में बंटने का श्राप देता हूँ।  तब यमुना को अपनी का गलती एहसास हुआ और बलरामजी के सामने गिड़गिड़ाने लगी।  तब बलराम ने यमुना को क्षमा किया। परन्तु हल से खींचने के कारण यमुना आज तक छोटे छोटे अनेक टुकड़ों में बहती है।  बलराम ने गोपियों के साथ दो महीने तक रासलीला की।

छठा

क्या आपने कभी विचार किया है कि बलराम ने महाभारत युद्ध में भाग क्यों नहीं लिया। दरअसल बलराम भगवान कृष्ण को भी समझाते रहे कि पांडव और कौरव दोनों ही उनके मित्र थे और उन्हें उनके युद्ध के मध्य नहीं आना चाहिए। परन्तु भगवान कृष्ण तो सदैव ही धर्म और सत्य का ही पक्ष लेते हैं फिर चाहे वो शत्रु हो या मित्र। इसलिए ही कोई पक्षपात न करते हुए कृष्ण ने कौरवों से स्वयं कृष्ण या उनकी सेना में से किसी एक को चुनने के लिए कहा। भीम और दुर्योधन दोनों ने ही बलराम से गदा प्रयोग करने की कला सीखी थी। बलराम का कहना था कि मेरे लिए दोनों ही पक्ष सामान हैं। इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में ही लड़ता मैं नहीं देख सकता। और ऐसा कहकर बलराम तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान कर गए। .

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