रामायण काल में कई मायावी राक्षस हुए है, जिन्होंने रामायण में अलग-अलग समय पर अपनी खास भूमिका निभाई थी। इस पोस्ट हम आपको रामायण काल के दस शक्तिशाली राक्षसों के बारे में बताएंगे जिनका वर्णन वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में मिलता है। तो आइये जानते हैं रामायण काल के मायावी राक्षस के बारे में
रावण
रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी और बहु-विद्याओं का जानकार था। राक्षसों के प्रति उसके लगाव के चलते उसे राक्षसों का मुखिया घोषित कर दिया गया। रावण ने लंका को नए सिरे से बसाकर राक्षस जाति को एकजुट किया और फिर से राक्षस राज कायम किया। उसने लंका को कुबेर से छीना था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था क्यूंकि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो किसी दूसरे के पास नहीं था। इसी कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।
कालनेमि
कालनेमि राक्षस रावण का विश्वस्त अनुचर था। यह भयंकर मायावी और क्रूर था। इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। रावण ने इसे एक बहुत ही कठिन काम सौंपा था। जब राम-रावण युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति लगने से वे बेहोश हो गए थे, तब हनुमान को तुरंत ही संजीवनी लाने का कहा गया था। हनुमानजी जब द्रोणाचल की ओर चले तो रावण ने उनके मार्ग में विघ्न पैदा करने के लिए कालनेमि को भेजा। कालनेमि ने अपनी माया से तालाब, मंदिर और सुंदर बगीचा बनाया और वह वहीं एक ऋषि का वेश धारण कर मार्ग में बैठ गया। हनुमानजी उस स्थान को देखकर वहां जलपान के लिए रुकने का मन बनाकर जैसे ही तालाब में उतरे तो तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने उसी समय हनुमानजी का पैर पकड़ लिया। हनुमानजी ने उसे मार डाला। फिर उन्होंने अपनी पूंछ से कालनेमि को जकड़कर उसका वध कर दिया।
क्यों हंस पड़ा था मेघनाद का कटा सर ?
ताड़का
ताड़का के पिता का नाम सुकेतु यक्ष और पति का नाम सुन्द था। सुन्द एक राक्षस था इसलिए यक्ष होते हुए भी ताड़का राक्षस कहलाई। वह अयोध्या के पास स्थित सुंदर वन में अपने पति और दो पुत्रों सुबाहु और मारीच के साथ रहती थी| उसी वन में विश्वामित्र सहित अनेक ऋषि-मुनि तपस्या करते थे।अगस्त्य मुनि के शाप के चलते इसका सुंदर चेहरा कुरूप हो गया था। इसलिए उसने ऋषियों से बदला लेने की ठानी थी। वह आए दिन अपने पुत्रों के साथ मुनियों को सताती रहती थी। ये सभी राक्षसगण हमेशा ऋषियों की तपस्या में बाधाएं खड़ी करते थे। एक यज्ञ के दौरान विश्वामित्र राजा दशरथ से अनुरोध कर एक दिन राम और लक्ष्मण को अपने साथ सुंदर वन ले गए। राम ने ताड़का का और विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहूति के दिन सुबाहु का वध कर दिया। मारीच भी राम के बाण से आहत होकर दूर दक्षिण में समुद्र तट पर जा गिरा था।
जब रावण ने श्री राम के लिए किया यज्ञ
मारीच
राम के तीर से बचने के बाद ताड़का पुत्र मारीच ने रावण की शरण ली। मारीच लंका के राजा रावण का मामा था। जब शूर्पणखा ने रावण को अपने अपमान की कथा सुनाई तो रावण ने सीताहरण की योजना बनाई। देवी सीता का हरण करन के लिए रावण से मारीच के कहां कि तुम एक सुंदर हिरण का रूप धारण कर लो, जिसके सींग रत्नमय प्रतीत हो। शरीर भी चित्र-विचित्र रत्नों वाला ही प्रतीत हो। ऐसा रूप बनाओ कि सीता मोहित हो जाए। अगर वे मोहित हो गईं तो जरूर वो राम को तुम्हें पकड़ने भेजेंगी। इस दौरान मैं उसे हरकर ले जाऊंगा। मारीच ने रावण के कहे अनुसार ही कार्य किया और वह अपनी योजना में सफल भी रहा। इधर राम के बाण से मारीच मारा गया।
कुंभकर्ण
यह रावण का भाई था, जो 6 महीने बाद 1 दिन जागता और भोजन करके फिर सो जाता, क्योंकि इसने ब्रह्माजी से निद्रासन का वरदान मांग लिया था। युद्ध के दौरान किसी तरह कुंभकर्ण को जगाया गया। कुंभकर्ण ने युद्ध में अपने विशाल शरीर से वानरों पर प्रहार करना शुरू कर दिया जिससे राम की सेना में हाहाकार मच गया। फिर अंत में सेना का गिरता मनोबल बढ़ाने के लिए राम ने कुंभकर्ण को युद्ध के लिए ललकारा और भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण वीरगति को प्राप्त हुआ।
कबंध
सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा, जिसका सिर और गला नहीं थे। उसकी केवल एक ही आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था। कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। फिर भीषण युद्ध के बाद राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर पूछा- आप कौन वीर हैं? परिचय जानकर कबंध बोला – यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने कहा- मैं दनु का पुत्र कबंध हूँ। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया|
विराध
विराध दंडकवन का राक्षस था। सीता और लक्ष्मण के साथ जब प्रभु राम ने दंडक वन में प्रवेश किया। वहां पर उन्हें ऋषि-मुनियों के कई आश्रम दिखें। वहां के ऋषियों ने उन्हें एक राक्षस की जानकारी दी.जिसे ब्रह्माजी से यह वर प्राप्तथा की किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र न तो उसकी हत्या कर सकते हैं और न ही उसके अंग काट सकते। vये भी ऋषि-मुनियो को तंग किया करता था। फिर राम और लक्ष्मण ने उससे घोर युद्ध किया और उसे हर जगह से घायल कर दिया। तभी राम बोले- लक्ष्मण! वरदान के कारण यह दुष्ट मर नहीं सकता इसलिए यही उचित है कि हमें भूमि में गड्ढा खोदकर इसे बहुत गहराई में गाड़ देना चाहिए। लक्ष्मण गड्ढा खोदने लगे और राम विराध की गर्दन पर पैर रखकर खड़े हो गए। तब विराध बोला- हे प्रभु! मैं तुम्बुरू नाम का गंधर्व हूं। कुबेर ने मुझे राक्षस होने का शाप दिया था। शाप के कारण मैं राक्षस हो गया था। आज आपकी कृपा से मुझे उस शाप से मुक्ति मिल रही है। राम और लक्ष्मण ने उसे उठाकर गड्ढे में डाल दिया और गड्ढे को पत्थर से बंध कर दिया।
खर और दूषण
ये दोनों रावण के सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा की 2 और पत्नियां थीं। खर पुष्पोत्कटा से और दूषण वाका से उत्पन्न हुए थे जबकि कैकसी से रावण का जन्म हुआ था। खर और दूषण के वध की घटना रामायण के अरण्यक कांड में मिलती है। शूर्पणखा की नाक काटने के बाद वह पहले खर और दूषण के पास गई थी जिसके बाद खर और दूषण ने अपनी- अपनी सेना लेकर वन में रह रहे राम और लक्ष्मण पर हमला कर दिया, लेकिन दोनों भाइयों ने मिलकर अकेले ही खर और दूषण का वध कर दिया।
मेघनाद
मेघदाद को इंद्रजीत भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार जमा लिया था। मेघनाद बहुत ही शक्तिशाली और मायावी था। रावण के पुत्रों में मेघनाद सबसे पराक्रमी था। कहा जाता है कि जब इसका जन्म हुआ तब इसने मेघ के समान गर्जना की इसलिए यह मेघनाद कहलाया। मेघनाद ने युवावस्था में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की सहायता से ‘सप्त यज्ञ’ किए थे और शिव के आशीर्वाद से दिव्य रथ, दिव्यास्त्र और तामसी माया प्राप्त की थी। मेघनाथ का वध लक्ष्मण ने एक दिव्य बाण से किया थ जो मेघनाद का सिर काटते हुए आकश में दूर तक लेकर चला गया था।