गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है ?
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है, गरुड़ पुराण पढ़ने के नियम? दर्शकों जैसा की हम सभी जानते हैं इस दुनिया में अगर कोई अटल है तो वह हमारी मृत्यु अर्थात इस धरा पर जिसने भी जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन मरना ही है। लेकिन सबसे बड़ी हैरानी की बात है की मनुष्य जैसा प्राणी इसे जानते हुए भी सबसे अधिक इसी सत्य से होता है। और इसका कारन है है मृत्यु के रहस्यों के बारे में जानकारी का ना होना जिसका वर्णनः हिन्दू धर्म के अठारह पुराणों में से एक गरुड़ पुराण में विस्तार से किया गया है। आज की इस वीडियो में हम आपको बताएँगे की गरुड़ पुराण के अनुसार हिन्दू धर्म में मृतक के शरीर को क्यों जलाया जाता है और साथ ही ये भी बताएँगे की किस कर्म के कारण मृतात्मा को किस योनि में जन्म लेना पड़ता है। तो चलिए मृत्यु के रहस्य से जुड़ा ये सफर अब शुरू करते हैं।
भगवत गीता: मृत्यु के बाद क्या होता है – THE DIVINE…
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गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है | गरुड़ पुराण–मृत्यु के बाद का सफ़र | गरुड़ पुराण के धर्मकाण्ड प्रेतकल्प अध्याय में इस बात का वर्णन किया गया है कि मनुष्य का जब मृत्यु का समीप नजदीक आता है तो उसके शरीर की स्थिति क्या होती है साथ ही ये भी बताया गया है की इंसान की मृत्यु हो जाने के बाद उसके शव के साथ उसके परिवारजनों को कैसा व्यवहार करना चाहिए ताकि मृतात्मा को जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके। गरुड़ पुराण के प्रकल्प अध्याय में पक्षीराज गरुड़ के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे गरुड़ जब मनुष्य अपने इस जन्म में कर्म करता हुआ मरणासन्न अवस्था में पहुंचता है तो उसके शरीर में कई रोग उत्पन्न होते हैं। मरणासन्न मनुष्य अचानक सर्प की भाँती मौत के जकड़न में बंधता चला जाता है। परन्तु फिर भी जीने की मन में इच्छा को ले कर दुखदाई जीवन व्यतीत करता रहता है। और तब अंतिम क्षणों में एक अलौकिक चेतना आती है जिसमे मरणासन्न मनुष्य को सभी लोक एक जैसे ही दिखाई देने लगते हैं।
मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है: THE DIVINE TALES
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है | गरुड़ पुराण मृत्यु के बारे में | भगवान श्री कृष्ण गरुड़ से कहते हैं की हे खगेश जो मनुष्य जीवनभर झूठ नहीं बोलता,किसी के साथ छल नहीं करता आस्तिक और श्रद्धावान हैं वो सुखपूर्वक मृत्यु को प्राप्त करता है। वही जो मनुष्य मोह और अज्ञान का उपदेश देते हैं,वे मृत्यु के समय महान्धकार में फंस जाते हैं। जो झूठी गवाही देता है या किसी के साथ विश्वासघात करता है और वेदनिन्दक हैं वो मूर्च्छारूपी मृत्यु को प्राप्त करता है। उनको ले जाने के लिए लाठी एवं मुदर से युक्त भयभीत करनेवाले दुरात्मा यमदूत आते हैं। ऐसी भयंकर परिस्थिति देखकर प्राणी के शरीर में भयवश कम्पन होने लगता है। उस समय वह अपनी रक्षा के लिए अनवरत माता-पिता और पुत्र को याद कर करुण क्रंदन करता है। उस क्षण प्रयास करने पर भी ऐसे जीव के कंठ से एक शब्द भी स्पष्ट नहीं निकालता। भयवश प्राणी की आँखें नाचने लगाती है। उसकी साँस बढ़ जाती है और मुंह सूखने लगता है। उसके बाद वह अपने शरीर का परित्याग करता है और उसके बाद ही वह सबके लिए अस्पृश्य एवं घृणायोग्य हो जाता है।
गरुड़ पुराण मृत्यु के बाद क्या होता है
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है | गरुड़ पुराण की बातें | इसके बाद यमलोक पहुँचने पर जीवात्मा जब यमराज को देखकर भयभीत हो जाता है तो फिर यमराज के आदेश से उस जीवात्मा को पुनः एक बार उसी स्थान पर यमदूतों द्वारा ले जाया जाता है जहाँ उसका मृत शरीर रखा हुआ होता है। ऐसे में जीवात्मा वहां वापस आने पर पुनः अपने शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करता है परन्तु यमदूतों के द्वारा पाश में बंधे होने के कारण वह अपने शरीर में प्रवेश नहीं कर पाता। ऐसे में उस जीवात्मा को भूख एवं प्यास बहुत सताती है और जब उसे ये कष्ट सहन नहीं होता है तो वह जोर जोर से रोने लगता है परन्तु उसके रोने की आवाज किसी को सुनाई नहीं देती।
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को क्यों जलाया जाता है | गरुड़ पुराण की बातें | उधर जब किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो दोस्तों आप सभी ने देखा होगा की परिवार के लोगों द्वारा मृतक के शरीर को घर के आँगन में गोबर से लिपे हुए स्थान पर कुश और तिल रखकर उस पर लिटा दिया जाता है। गरुड़ पुराण में भगवान कृष्ण ने इस बारे में भी विस्तार से बताया है आखिर ऐसा करने से मृतात्मा पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
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भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाये तो उसे घर के आंगन में गोबर से लीपकर उसके ऊपर तिल और कुश बिछाना चाहिए तदनन्तर ही उस स्थान पर मृत शरीर को लिटाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से मृत प्राणी अपने समस्त पापों को जला कर पाप मुक्त हो जाता है। शव के निचे बिछाये गये कुशसमूह मृत आत्मा को स्वर्ग ले जाते हैं। कृष्ण कहते हैं की तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं। अतः तिल बहुत ही पवित्र है। तिल का प्रयोग करने पर असुर,दानव और दैत्य भाग जाते हैं। और कुश मेरे शरीर के रोमों से उत्पन्न हुए हैं। कुश के मूल भाग में ब्रह्मा,मध्यभाग में विष्णु तथा अग्र भाग में शिव निवास करते हैं। ये पदार्थ मृतात्मा को दुर्गति से उबार लेते हैं।
अगर मृत शरीर को बिना गोबर से लीपी हुई भूमि पर लिटा दिया जाता है तो उस मृत शरीर में यक्ष,पिशाच एवं राक्षस कोटि के क्रूरकर्मी दुष्ट प्रविष्ट हो जाते हैं। मृत शरीर को कुशासन पर लिटाने के बाद उसके मुख में पंचरत्न डालना आवश्यक है क्योंकि स्वंर्ण या पंचरत्न सभी पापों को जलाकर आत्मा को मुक्त कर देता है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो प्रेत आत्माएं मृत शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और फिर वे कई सालों तक उसी योनि में भटकता रहता है। इसके बाद परिवार जनो को चाइये की वह मृत आत्मा के मुख में गंगा जल या तुलसी का पता डाल दे और फिर बिना कोई शोक के उस मृत शरीर के पास भगवान विष्णु का नाम ले क्योंकि जब भी किसी की मृत्यु होती है तो यमराज अपने दूतों को यह आदेश देते हैं कि जाओ और उस आत्मा को मेरे पास ले आओ जो हरि का नाम नहीं ले रहे हों या फिर उनके नाम का श्रवण ना कर रहे हों।
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इस सब के बाद मृतक के परिवार वालों को छै कि वह मृतक शरीर को बांस से बने शय्या पर लिटा कर उसे शमशान ले जाये जहाँ उसका विधि पूर्वक दाह संस्कार करें। इसके लिए शमशान आधे रास्ते में मृत शरीर को नहलाकर उसे स्वच्छ वस्त्र पहना दें और फिर शमशान पहुंचकर जलाने वाली जगह को गोबर से लिप लें साथ ही ये भी ध्यान रखें की वहां इससे पहले उस स्थान पर किसी को जलाया नहीं गया हो। फिर विधिविधान से उस स्थान पर चिता का निर्माण कर उसपर शव को रख दें फिर पुत्र या पौत्र या फिर किसी परिवार के लोगों के हाथ से मृतक को मुखाग्नि दें और जब आधा जल जाए तो खोपड़ी को किसी लकड़ी के डंडे से फोड़ दें क्योंकि ऐसा करने से मृतात्मा अपने पितरों यानी पूर्वजों के लोक में चला जाता है। और जब मृतक का शरीर पूरी तरह जल जाए तो सभी लोग अपने घर वापस लौट जाएँ परन्तु घर के अंदर प्रवेश करने से पूर्व सभी स्नान अवश्य करें। लेकिन दोस्तों आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूँ की दाह संस्कार क्यों आवश्यक है। गरुड़ पुराण के अनुसार हिन्दू धर्म में अगर किसी मृतक का दाह संस्कार नहीं किया जाता है तो उसे अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति नहीं मिलती और वह सैकड़ों सालों तक मृत्युलोक में ही भटकता रहता है।
उसके बाद दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं की मृतक की आत्मा की शांति के लिए उसके परिवार वाले दस दिनों तक पिंड दान करते हैं फिर उसका श्राद्ध कर्म किया जाता है लेकिन इसके बारे में विस्तार से फिर कभी हम आपको बताएँगे लेकिन आइये अब जानते हैं की मृत्यु के बाद उस जीवात्मा का क्या होता है। दोस्तों जैसा की हम जानते हैं की हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म पर विश्वास किया जाता और ऐसा माना जाता है कि सभी प्राणी को उसके द्वारा जीवन भर किये कर्म के हिसाब से अगले जन्म में अलग अलग योनियों में जन्म लेना पड़ता है। तो चलिए जानते हैं गरुड़ पुराण में भगवान श्री कृष्ण ने इसके बारे में क्या बताया है।
जय और विजय को क्यों मिला था श्राप
श्री कृष्ण के अनुसार मनुष्य.पशु पक्षी आदि योनियां अत्यंत दुखदायिनी है। इसलिए इन सब को उनके कर्म के अनुसार योनिया प्राप्त होती है। श्री कृष्ण की माने तो कोई भी प्राणी सत्कर्म एवं दुष्कर्म के फलों की विविधता का अनुभव करने के लिए इस संसार में जन्म लेता है। जैसे की ब्राह्मण की हत्या करने वाला मनुष्य अगले जन्म में मृग,अश्व,सूकर या फिर ऊँट की योनि में जन्म लेता है। वहीँ स्वर्ण की चोरी करनेवाला कृमि,कीट और पतंग की योनि में और ,गुरु पत्नी के साथ सहवास करने वाला मनुष्य लता योनि में जन्म लेता है। इसके आलावा दुसरे की स्त्री के साथ सहवास करने और ब्राह्मण का धन चुराने से मनुष्य को दूसरे जन्म में निर्जन देश में रहनेवाले ब्रह्मराक्षस की योनि प्राप्त होती है।
साथ ही जो मनुष्य वृक्ष के पत्तों की चोरी करता है उसे अगले जन्म में छछूंदर की योनि में जाना पड़ता है। धान्य की चोरी करनेवाला चूहा,यान चुरानेवाला ऊँट तथा फल की चोरी करनेवाला बन्दर की योनि में जन्म लेता है। घर का सामान चुरानेवाला मनुष्य गिद्ध,मधु की चोरी करने वाला मधुमक्खी,फल की चोरी करने वाला गिद्ध और अग्नि की चोरी करने वाला बगुले की योनी में जन्म लेता है। इतना ही नहीं जो मनुष्य जो स्त्री के बल पर इस संसार में जीवन-यापन करता है वह दूसरे जन्म में लंगड़ा होता है। जो मनुष्य पतिपरायणा अपनी पत्नी का परित्याग करता है,वह दूसरे जन्म में दुर्भाग्यशाली होता है।और मित्र की हत्या करनेवाला मनुष्य उल्लू की योनि में जन्म लेता है। कन्या के साथ दुराचार करनेवाला मनुष्य अगले जन्म में नपुंसक पैदा होता है। जल की चोरी करने पर मछली,दूध की चोरी करने से बलाकिका और ब्राह्मण को दान में बासी भोजन देने से कुबड़े की योनि प्राप्त होती है। इसके आलावा झूठी निंदा करने वाले लोगों को कछुए की योनि में जाना पड़ता है। जो ब्राह्मण शूद्रकन्या से विवाह कर लेता है वह भेड़िये की योनि प्राप्त करता है।
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और अंत में भगवान श्री कृष्ण कहते है कि उनके कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार इस संसार में नाना भांति के द्रव्य विद्यमान हैं,उसी प्रकार प्राणियों की विभिन्न जातियां भी है। वे सभी अपने अपने विभिन्न कर्मो के प्रतिफल के रूप में सुख दुःख एवं अनेकों योनियों का भोग करते हैं। इसलिए मनुष्यों को समझना चाहिए की वे अपने जीवन काल में शुभकर्म करे जिसे उसका इहलोक और परलोक दोनों मुक्ति कारक हो नाकि उनको अपने अशुभ कर्मो के कारण फिर से इस मृत्युलोक में जन्म लेकर नाना प्रकार के कष्टों को भोगना पड़े
तो दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे की फिर मरने के बाद जीवात्मा स्वर्गलोक और नरकलोक कब जाती और वहां वह कितने दिनों तक अपने कर्मो के हिसाब से निवास करती है तो दोस्तों आपको बता दूँ की इसका वर्णन भी गरुड़ पुराण मे किया गया है लेकिन उसके बारे में फिर कभी और हाँ अगर आप लोगों को हमारी ये प्रस्तुति पसंद आई हो तो इसे जायदा से ज्यादा लाइक और शेयर करें और अगर आप स्वर्ग और नरक के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो निचे हमें कमेंट कर जरूर बताएं। फिलहाल इस वीडियो में इतना ही अब हमें इजाजत दें और वीडियो अंत तक देखने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।