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पत्नी के धोखे से आहत राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी: The Divine Tales

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पत्नी के धोखे से आहत राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी

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भर्तृहरि के साधु बनने की कहानी | प्रिये दर्शकों हमारे पौराणिक ग्रंथों में कई ऐसे राजाओं महाराजाओं की कथा पढ़ने को मिलती है जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए अपने राजपाठ को त्याग दिया और साधू बन गए लेकिन आज मैं आपको एक ऐसे राजा की कथा बताने जा रहा हूँ जिन्होंने पत्नी से मिले धोखे के बाद अपना राजपाठ त्याग दिया और वैरागी का जीवन धारण कर लिया। तो आइये मिलकर जानते हैं कि कौन थे वो राजा और उनसे जुडी कथा

नमस्कार दर्शकों पर आपका एक बार फिर से स्वागत है।

भर्तृहरि के साधु बनने की कहानी | बहुत समय पहले की बात है उज्जयिनी नगर जिसे आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है वहां के राजा गंधर्वसेन हुआ करते थे। उनकी दो पत्नियां थी जिसमे एक पत्नी से विक्रमादित्य नामका पुत्र हुआ और दूसरी पत्नी से भर्तृहरि नाम का पुत्र हुआ। कुछ वर्षों बाद जब राजा गंधर्वसेन का ये दोनों पुत्र बड़ा हुआ तो उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र भर्तृहरि को उज्जयिनी नगर के राज सिंहासन पर बिठाया। भर्तृहरि के राजा बनने के बाद उज्जयिनी नगर के वासी पहले से और भी आंनद पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। भर्तृहरि राजा होने के साथ साथ धर्म और निति शास्त्र के भी बहुत बड़े ज्ञाता थे और धर्म के अनुरूप ही वो अपने राज्य पर शासन करते। प्रचलित कथाओं के अनुसार राजा भर्तृहरि ने पहले से दो शादिया कर रखी थी लेकिन फिर उन्होंने पिंगला नाम की कन्या से तीसरा विवाह रचाया। पिंगला बहुत ही सुन्दर थी जिसकी वजह से भर्तृहरि उस से तीनो पत्नियों में सबसे ज्यादा प्रेम करते थे। भर्तृहरि पिंगला की सुंदरता से इतना मोहित हो गए की धीरे धीरे वो अपने राज्य कर्तव्यों को भी भूल गए।

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उसी समय एक दिन उज्जयिनी नगर के राजमहल में गुरु गोरखनाथ पधारे। उधर जब राजा भर्तृहरि को पता चला कि उनके राजमहल में गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ है तो वो सहसा उसके पास आये और उन्हें प्रणाम किया फिर कई दिनों तक उन्होंने गुरु गोरखनाथ की खूब सेवा की। राजा भर्तृहरि की सेवा से गुरु गोरखनाथ अति प्रसन्न हुए और जब वो राजमहल से जाने लगे तो उन्होंने राजा भर्तृहरि को एक दिव्य फल भेंट के रूप में दिया और कहा कि हे राजन इस दिव्य फल को खाने से तुम सदा जवान बने रहोगे,बुढ़ापा तुम्हे छू भी नहीं पायेगा। और फिर उस दिव्य फल को देकर गुरु गोरखनाथ वहां से चले गए

उधर गुरु गोरख नाथ के जाने के बाद राजा भर्तृहरि फल को गौर से देखने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि मैं तो राजा हूँ मुझे जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न मैं इसे रानी पिंगला को दे दूँ जिसको खाने के बाद वो सदा सुन्दर और जवान बनी रहेगी और फिर राजा भर्तृहरि ने वह दिव्य फल ले जाकर रानी पिंगला को दे दिया। लेकिन राजा भर्तृहरि यह नहीं जानते थे की जिस रानी को वह सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं वह उनसे नहीं बल्कि उसी नगर के एक कोतवाल से प्रेम करती है। खैर राजा जब पिंगला को वह दिव्य फल देकर वहां से चले गए तो रानी से सोचा मैं सदैव जवान रहकर क्या करुँगी क्यों ना मैं यह फल अपने प्रेमी नगर के उस कोतवाल को दे दूँ ताकि वह लंबे समय तक मेरी इच्छाओं की पूर्ति करता रहेगा। रानी पिंगला ने यही सोचकर वह दिव्य फल कोतवाल को दे दिया। लेकिन वह कोतवाल रानी की बजाय उसी नगर के एक वैश्या से प्रेम करता था। और उसने वह फल ले जाकर उसी वैश्या को दे दिया।

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परन्तु जब उस वैश्या को उस फल की दिव्यता के बारे में पता चला तो उसने अपने मन में सोचा की यदि मैंने यह दिव्य फल खा लिया तो सदा के लिए जवान और सुन्दर तो बन जाउंगी लेकिन मुझे जीवन भर यही बुरा कर्म करना पड़ेगा और मुझे कभी भी नरक के समान इस जिंदगी से मुक्ति नहीं मिलेगी। फिर कुछ देर बाद उसके मन में यह विचार आया कि क्यों ना इस फल को ले जाकर राजा भर्तृहरि को दे दूँ क्योंकि अगर वे इस दिव्य फल को खाने से सदा के लिए सुन्दर और जवान बन जायेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं मिलती रहेगी। यह सोचकर उसने दिव्य फल ले जाकर राजा को दे दिया

उस दिव्य फल को देखकर राजा भर्तृहरि हैरान हो गए पहले तो उन्हें लगा कि रानी पिंगला के पास से उस दिव्य फल को चुराकर किसी ने इस वैश्या को दे दिया है। इसलिए उन्होंने उस वैश्या से पुछा की यह फल तुम्हे किसने दिया है तो उस वैश्या ने कहा राजन यह फल मुझे नगर के कोतवाल ने दिया था और कहा था की इस फल के खाने से तुम सदैव जवान और सुन्दर दिखोगी लेकिन मैंने सोचा की इस फल की सबसे जायदा जरूरत आपको है इस लिए मैं यह फल लेकर आपके पास चली आई। वैश्या की बात सुनकर राजा ने तुरंत सैनिकों के द्वारा नगर के उस कोतवाल बुलवाया। फिर जब वह कोतवाल राजा के समक्ष आया तो उन्होंने उससे पुछा तुम्हारे पास यह फल कैसे पहुंचा तो कोतवाल ने कहा हे महाराज मुझे ये फल रानी पिंगला ने दी थी और कहा था की मैं सदा जवान बना रहूँगा और उनकी इच्छाओं की पूर्ती करता रहूँगा। यह सुन कर राजा भर्तृहरिको गहरा झटका लगा। वह मन ही मन सोचने लगे की जिस स्त्री को मैंने सबसे ज्यादा प्रेम किया वही स्त्री मेरे साथ धोखा कर रही थी। मैं भी कितना बड़ा मूर्ख था जो ये समझता रहा की जितना प्रेम मैं पिंगला से करता हूँ उतना ही प्रेम वो भी मुझसे करती है।

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राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी | इसके बाद राजा भर्तृहरि सारे मोह माया और बंधनो को त्यागने का फैसला किया और फिर उन्होंने अपना संपूर्ण राज्य अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंपकर वैराग्य धारण कर लिया और उसी नगर की एक गुफा में आकर कठोर तपस्या करने लगे। उधर जब भर्तृहरि के तपस्या करते हुए काफी साल बीत गए तो स्वर्ग के राजा इंद्र को यह भय सताने लगा कि कही राजा भर्तृहरि वरदान पाकर उनके सिंहासन पर विराजमान ना हो जाए इसलिए उन्होंने तपस्या कर रहे भर्तृहरि पर एक बड़ा सा पत्थर गिराया परन्तु तपस्या में बैठे राजा भर्तृहरि ने उस पत्थर को अपने एक हाथ से रोक लिया और तपस्या में लीन रहे। और ऐसा माना जाता है कि उस पत्थर को अपने एक हाथ में लेकर कई वर्षों तक तपस्या करने से उस पत्थर पर भर्तृहरि के पंजे का निशान बन गया। और यह निशान आज भी भर्तृहरि की गुफा में राजा की प्रतिमा के ऊपर वाले पत्थर पर देखा जा सकता है।

पत्नी के धोखे से आहत राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी | कई वर्षों तक तपस्या करने बाद जब भर्तृहरि को ज्ञान की प्राप्ति हो गई तो वे गुरु गोरखनाथ के पास गए और उनसे अपना शिष्य बनाने की विनती करने लगे। राजा भर्तृहरि के बारम्बार आग्रह करने पर गुरु गोरखनाथ जी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। परन्तु गुरु गोरखनाथ के कुछ शिष्यों के मन में यह शंका होने लगी कि भला राजमहल में जीवन व्यतीत करने वाला आदमी वैराग्य का जीवन कैसे जी सकता है। और यह बात उन्होंने अपने गुरु गोरखनाथ जी को बताई। तो गोरखनाथ जी ने कहा शिष्यों चिंता मत करो ये तुम लोगों से भी अच्छा वैरागी बनेगा। यह सुन पुनः उनके शिष्यों ने गोरख नाथ जी से कहा गुरुदेव हमलोगों को विश्वास नहीं हो रहा है। आपसे आग्रह है कि आप राजा भर्तृहरि की परीक्षा लीजिये।शिष्यों की बात सुनकर गुरु गोरखनाथ जी ने कुछ देर सोचा फिर अपने शिष्यों से बोले ठीक है मैं तुम सभी की शंका अवश्य दूर करूँगा।

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राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी | उसके बाद राजा भर्तृहरि अन्य शिष्यों के साथ गुरु गोरखनाथ जी के आश्रम में रहने लगे। एक दिन की बात है गोरखनाथ जी ने अपने शिष्यों से कहा देखों राजा होकर भी भर्तृहरि ने काम, क्रोध, लोभ तथा अहंकार पर विजय पा लिया है। यह सुनकर शिष्यों ने कहा गुरुदेव यह कैसे संभव है। यह तो जन्म से ही राजमहल में पला बढ़ा है। शिष्यों की बात सुनकर गोरखनाथ जी बोले रुको अभी मैं तुम सभी को इसका प्रमाण देता हूँ। फिर उन्होंने भर्तृहरिको अपने पास बुलाया और कहा भर्तृहरि जाओ और जंगल से खाना बनाने के लिए लकड़ियां ले आओ। गुरु का आदेश पाते ही भर्तृहरि नंगे पांव लकड़ियां लाने जंगल की और चल दिए। कुछ देर बाद जब वो लकड़ियां एकत्रित कर आश्रम वापस आने लगे तो गोरखनाथ जी ने दूसरे शिष्यों से कहा जाओ और भर्तृहरि को ऐसा धक्का मारो कि उसके सिर से लकड़ी का गट्ठर निचे गिर जाए। गुरु के कहने पर कुछ शिष्य भर्तृहरि के पास गए और उसे ऐसा धक्का मारा की उसके सिर से लकड़ी के गट्ठर गिर गए। यह देख भर्तृहरि जमीन पर गिरे लकड़ियों को इक्क्ठा कर एकत्रित करने लगे लेकिन न चेहरे पर शिकन थी और ना ही आँखों में क्रोध के कोई भी निशान थे। यह देख गोरखनाथ जी ने अपने शिष्यों से कहा देखा भर्तृहरि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली।

परन्तु उन शिष्यों ने गोरखनाथ जी से कहा गुरुदेव हम सब ने मान लिया की आपके इस शिष्य ने क्रोध को नियंत्रित कर लिया है लेकिन आपको अभी और परीक्षा लेनी होगी। तब गुरुजी ने योगशक्ति से एक महल रच दिया। उस महल में युवतियां नाना प्रकार के व्यंजन से भर्तृहरि का आदर सत्कार करने लगी। परन्तु भर्तृहरि युवतियों को देखकर कामी नहीं हुए और आगे बढ़ते गए यह देख गोरकनाथ जी बोले शिष्यों अब तो तुम लोगों को विश्वास हो गया होगा है कि भर्तृहरि लोभ और काम दोनों को भी जीत लिया है। किन्तु शिष्यों ने कहा, गुरुदेव एक परीक्षा और लीजिए। इतने में ही भर्तृहरि लकड़ी के साथ आश्रम में आ गए। राजा भर्तृहरि के साधू बनने कि कहानी |

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तब गोरखनाथजी ने भर्तृहरि से कहा वत्स वैराग्य को पूर्ण रूप से पाने के लिए तुमको एक महीना मरुभूमि में नंगे पैर पैदल यात्रा करनी होगी। यह सुन भर्तृहरि बोले गुरुदेव अभी से मैं यह काम आरम्भ करता हूँ। उसके बाद भर्तृहरि चलते हुए मरुभूमि में पहुंचे। उस समय उस मरू भूमि का बालू इतना गर्म था की पैर रखो तो जल जाए। धीरे-धीरे समय बीतता गया तब एक दिन गुरु गोरखनाथजी शिष्यों को साथ लेकर वहां पहुंचे। और फिर उन्होंने अपने योगबल से उस मरुभूमि में वृक्ष खड़ा कर दिया। चलते-चलते अचानक भर्तृहरि का पैर उस वृक्ष की छाया पर आ गया तो वह ऐसे उछल पड़े, मानो अंगारों पर पैर पड़ गया हो। वह मन ही मन सोचने लगे की इस निर्जन मरूभूमि में यह वृक्ष कैसे आ गया। वह तुरंत उस छाया से दूर हटकर चलने लगे। यह देख गोरखनाथ जी प्रसन्न हो गए और अपने शिष्यों से बोले देखों जिस भर्तृहरि के पांव राजमहल में गलीचे से कभी निचे नहीं उतरता था आज वह नंगे पांव इस मरुभूमि में चल रहा है।

उसके बाद गोरखनाथ जी रूपबदलकर भर्तृहरि के पास गए और बोले वत्स इस वृक्ष के निचे थोड़ा आराम तो कर लो तो भर्तृहरि ने उनसे कहा नहीं मैं अपने गुरु की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता। मेरे गुरु का आदेश है कि मैं इस मरुभूमि में नंगे पांव चलता रहूं। फिर भर्तृहरि जब कुछ दूर आगे गए तो गोरखनाथ जी ने अपने योगबल से उनके रास्ते में ऐसी कंटीली झाड़ी उत्पन्न किया कि उनका वस्त्र फट गया। पैरों में शूल चुभने लगे, फिर भी भर्तृहरि ने आह तक नहीं की। यह देख गुरु गोरखनाथ जी ने अपने योगबल से अग्नि से अधिक ताप पैदा किया। उसके बाद भर्तृहरि का गाला प्यास के मारे सूखने लगा। तभी गोरखनाथ जी ने भर्तृहरि के नजदीक ही एक हरा-भरा वृक्ष खड़ा कर दिया, जिसके नीचे पानी से भरी सुराही और सोने की प्याली रखी थी। परन्तु भर्तृहरि ने उसकी ओर देखे भी नहीं फिर कुछ देर बाद उन्होंने देखा की सामने से गोरखनाथ आ रहे हैं।

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और जब वे उनके नजदीक आये तो उन्होंने अपने गुरु को प्रणाम किया। फिर गोरखनाथ जी ने भर्तृहरि को गले लगाते हुए कहा वत्स मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ और मैं तुम्हे वर देना चाहता हूँ जो भी चाहो मांग लो। यह सुन भर्तृहरि बोले,गुरुदेव आप प्रसन्न हैं तो मुझे और क्या चाहिए क्योंकि शिष्य के लिए गुरु की प्रसन्नता ही सब कुछ है। आप मुझसे संतुष्ट हुए, मेरे करोड़ों पुण्यकर्म और यज्ञ, तप सब सफल हो गए। गोरखनाथ बोले नहीं वत्स भर्तृहरि आज तुम्हें कुछ-न-कुछ तो लेना ही पड़ेगा। इतने में ही भर्तृहरि की नजर एक सुई पर गई तो उन्होंने उसे उठा लिया और बोले गुरुदेव प्यास से मेरा कंठ फट गया है सूई में यह धागा पिरो दीजिए ताकि मैं अपना कंठा सी लूं। यह सुन गुरु गोरखनाथ जी बोले भर्तृहरि तुम धन्य हो तुम्हे अष्टसिद्धि-नवनिधियां कुछ नहीं चाहिए। मैंने कहा कुछ मांगो, तो तुमने सूई में जरा धागा डाल दीजिये कहकर गुरु का वचन रख लिया। भर्तृहरि तुम धन्य हो गए!

तो दोस्तों राजा भर्तृहरि की ये कथा यहीं समाप्त होती है लेकिन हम आपके लिए ऐसे ही और कथाएं लेकर जल्द ही हाजिर होंगे। अगर आपको हमारी ये कथा पसंद आई हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर करें साथ ही अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो इसे अभी सब्सक्राइब कर लें। अब हमें इजाजत दें आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

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