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खाटूश्याम जी की ये सच्चाई, जिससे 99% लोग हैं अनजान (भक्त जरूर देखें)

by divinetales
खाटूश्याम जी की ये सच्चाई

मित्रों… खाटूश्याम जी, जिन्हें श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में पूजा जाता है… राजस्थान के सीकर जिले में बाबा का भव्य मंदिर है… जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु मन में अपार आस्था लिए पहुंचते हैं…

वैसे खाटूश्याम जी से जुड़ी एक कहावत भी काफी प्रसिद्ध है कि बाबा श्याम रंक अर्थात गरीब को भी राजा बना सकते हैं… तो आखिर कौन हैं बाबा खाटू श्याम जी… इन्हें क्यों भगवान का दर्जा दिया गया है… और क्या है इनकी पूरी कहानी… यही जानेंगे मिलकर आज की इस वीडियो में…

तो मित्रों नमस्कार और स्वागत है आप सभी का एक बार फिर the divine tales पर…

मित्रों सबसे पहले तो बता दूं कि खाटूश्याम बाबा का असल नाम बर्बरीक था… जो घटोत्कच के पुत्र थे… जी हां वही घटोत्कच जो भीम और राक्षसी हिडिंबा के पुत्र थे…

महाभारत में मिलने वाली कथा के अनुसार बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे… कहा जाता है कि बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे, जिसके बल पर वो कौरवों या फिर पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे… और जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था तो उनकी मां अहिलावती ने उनसे कहा था कि पुत्र जो हारे तुम उसका ही साथ देना..

अपनी मां की आज्ञा का पालन करते हुए भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए…. और उन्होंने ये घोषणा की कि वो उस पक्ष की तरफ से लड़ेंगे जो हार रहा होगा… 

भीम के पौत्र बर्बरीक के समक्ष जब अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना मात्र ही दिखाया… कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि ये जो वृक्ष है इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से भेद कर दिखाओं…

फिर क्या श्री कृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए बर्बरीक ने तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया… जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को भेद रहा था तो एक पत्ता नीचे गिर गया… जिसे श्री कृष्ण ने अपने पैर के नीचे छिपा दिया… थोड़ी देर बात वृक्ष के सभी पत्तों को भेदने के बाद तीर भगवान श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया…

 तब बर्बरीक ने कहा कि है प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को भेदने का आदेश दिया है… आपके पैर को नहीं…

ये देख श्री कृष्ण भी आश्चर्यचकित रह गए… साथ ही बर्बरीक की घोषणा से चिंतित भी हो गए… क्योंकि अब भगवान समझ चुके थे कि बर्बरीक कितने शक्तिशाली हैं… और अगर उन्होंने हारते हुए कौरवों का साथ दिया तो पांडवों की हार होनी तय थी…

ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे… बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? बर्बरीक इस बात से अनजान थे कि उनके द्वार पर कोई ब्राह्मण नहीं बल्कि स्वयं प्रभु आए थे…

इसके बाद ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि है वत्स मैं जो तुमसे मांगने वाला हूं… वो तुम मुझे दे ही नहीं पाओगे… तुम में मुझे दान देने का साहस ही नहीं है… ऐसे में बर्बरीक ने कहा नहीं ब्राह्मण मैं आपको दान में अपना जीवन तक दे सकता हूं… बताओं आपको क्या दान चाहिए…

तो मित्रों इस तरह बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण के बिछाए जाल में बुरी तरह से फंस गए… जिसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश मांग लिया… अब क्योंकि बर्बरीक वचन दे चुके थे तो उन्होंने बिना कुछ सोचे ही ब्राह्मण को अपना शीश दान में देने का ऐलान कर दिया…

बर्बरीक के ये कहते ही श्री कृष्ण अपने असली रूप में आ गए… वहीं शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी जिसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया… जहां से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा…

तो  मित्रों ये तो थी बर्बरीक के जन्म और शीशदान की कहानी… आखिर कैसे बर्बरीक खाटूश्याम जी बने… अब ये भी जान लेते हैं… दरअसल, युद्ध में विजयी होने के बाद पांडवों में विजय का श्रेय लेने के लिए आपस में वाद-विवाद होने लगा… तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश ही कर सकता है… क्योंकि एक वो ही है जिसने पूरा युद्ध देखा है…

मित्रों तब बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में सिर्फ और सिर्फ श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चल रहा था… जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे… वहीं दूसरी तरफ  द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं…

बर्बरीक की इन बातों से श्री कृष्ण बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक के कटे शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे… तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होगी… और मित्रों इसके बाद ही बर्बरीक को खाटूश्याम जी के नाम से पूजा जाने लगा…

तो मित्रों ये थी खाटूश्याम जी की असली कहानी… जिससे आज भी कई लोग अनजान है… आप में से कौन कौन उनकी इस कहानी से वाकिफ था मुझे कमेंट कर जरूर बताएं…

आज की वीडियो में बस इतना ही… वीडियो कैसी लगी मुझे कमेंट कर जरूर बताएं… साथ ही इसे ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर भी करें… वीडियो को अंत तक देखने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया…

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