दोस्तों ज्यादातर मन्दिरों में एक मुँह वाला शिवलिंग देखा जाता है, लेकिन पशुपति नाथ मंदिर में विराजमान शिवलिंग एक नहीं बल्कि चार मुख वाला शिवलिंग हैं। जिसके पीछे एक अद्भुत व रोचक पौराणिक कथा छिपी हैं।
कथा के मुताबिक महाभारत के दौरान जब पांडवों द्वारा अपने ही सगे लोगों का खून बहाया गया। तब ऐसे में अपने ही भाइयों का वध करने की वजह से पांडव बहुत दुखी हो गए। उन्होंने अपने ही भाइयों का वध किया था, जिसे गोत्र-वध कहते हैं। लेकिन जब उनको अपने इस किए पर पछतावा होने लगा, तो भगवान कृष्ण ने उन्हें इस गोत्र-वध जैसे पाप से छुटकारा पाने के लिए शिव जी के शरण में जाने को कहा।
यह जानने के बाद पांडव महादेव की खोज में निकल गए, परंतु भगवान नहीं चाहते थे कि पांडवों से जो पाप व अपराध हुआ है… उससे उन्हें आसानी से मुक्ति मिल जाए।
ऐसे में जब पांडव उनके पास पहुंचने ही वाले थे कि तभी अपने पास आते देख उन्होंने एक बैल का भेष धारण कर लिया। और पांडवों से नज़र बचाकर वहाँ से भागने की कोशिश करने लगे…। तब उस दौरान तुरंत पांडव सारी बात समझ गए और वे भी शिव जी को पकड़ने के लिए उनके पीछे-पीछे भागने लगे। इस भागादौड़ी की वजह से शिव जी धरती में समा गए और फिर कुछ देर तक कहीं नहीं नज़र आए।
जब कुछ समय बाद वो बाहर निकले…., तो उनका शरीर चार भागों में बंट गया।
कहते हैं कि इसी वजह से इस जगह पर भगवान के उस रूप अर्थात उनके चार मुख वाले शिवलिंग को स्थापित किया गया।
दोस्तों विश्व में दो पशुपति नाथ मंदिर प्रसिद्ध है, एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का…, दोनों ही मंदिरों की मूर्तियां लगभग समान आकृति की है।
नेपाल में बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित मंदिर को यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल किया गया हैं। यह देखने में बड़ा ही भव्य व सुंदर मन्दिरों में से एक है। इसलिए यहाँ दर्शन के लिए देश-विदेश से भी बहुत लोग आते हैं। कहा जाता है कि यह शिवलिंग वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित किया जा चुका था।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में कोई पुख्ता सबूत तो नहीं मिलता है। परंतु कुछ जगह यह उल्लेख जरूर मिलता है कि काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा. पूर्व. में कराया था। बाद में इस मंदिर को अच्छी तरह से 11वीं सदी में बनवाया गया।
लेकिन धीरे-धीरे सही देख-रेख न होने के कारण इस मंदिर में दीमक लग गए…, जिसकी वजह से इस मंदिर को बहुत नुकसान झेलना पड़ा….। फिर भी इसकी प्रसिद्धि उस समय भी कम नहीं थी, इसलिए इस मंदिर की एक बार फिर से 17वीं सदी में मरम्मत करवाई गई।
बाद में बहुत से जगहों पर इस मंदिर की कई नकले तैयार की गई; जैसे- भक्तपुर 1480 में, ललितपुर 1566 में और बनारस 19 वीं शताब्दी में।
दरअसल इस मंदिर को प्रकृति आपदाओं के कारण भी बहुत बार भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
बताया जाता है कि अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप के कारण पशुपति नाथ मंदिर की कुछ बाहरी इमारते बुरी तरह से नष्ट हो गई, लेकिन इसके मुख्य मंदिर और मंदिर के अंदर के भाग को किसी भी तरह की हानि नहीं हुईं। जोकि किसी चमत्कार से कम नहीं।
इस पवित्र जगह के बारे में एक रोचक बात यह है कि इस मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं द्वारा भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया जाने लगा। बाद में तो वहां के एक राजा ने भारत के एक ब्राह्मण को ही मंदिर का मुख्य पुरोहित चुन लिया। तभी से भारतीय ब्राह्मण भट्ट ही पशुपति नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में चुने जाने लगे। लेकिन वर्तमान समय में यह अधिकार भारतीयों ब्राह्मणों से लेकर नेपाल के पंडितों को दे दिया गया।
पशुपति नाथ मंदिर दर्शन की मान्यता–
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी व्यक्ति उस मंदिर के दर्शन करता है, तो उसे किसी भी जन्म में किसी भी पशु की योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता। परंतु इसके लिए एक शर्त यह है कि आप शिवलिंग के दर्शन से पहले नन्दी के दर्शन न करे। अगर आप ऐसा करते हैं, तो अगले जन्म में आपको पशु ही बनना पड़ेगा।
वहाँ के लोगों का मानना है कि इस मंदिर में जो व्यक्ति एक घण्टे या कुछ मिनट भगवान का ध्यान करता हैं, तो बहुत वह बहुत सी समस्याओं से छुटकारा पा लेता है। इतना ही नहीं आप वहाँ के लोगों से महादेव की महिमा से जुड़ी बहुत सी कहानियां भी सुन सकते हैं।
पवित्रता व प्रसिद्धि के कारण ही काठमांडू के देवपाटन गांव में स्थित पशुपति नाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है।
दोस्तों नेपाल की पावन भूमि धर्म व ज्ञान से सराबोर है। और पूरी तरह से अध्यात्मकिता से जुड़ी हैं। नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर ऐसा ही एक पवित्र जगह हैं अगर आप भी ऐसे किसी मंदिर को जानते हैं, जिसके पीछे कोई रोचक कहानी छिपी हो, तो हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं……