हमारे धर्मग्रंथों में देवी देवताओं से जुडी कई कथाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन कई ऐसी कथाएं है जिन्हे जनमानस आज भी नही जानते। आज में एक ऐसे ही कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ। कैसे भगवान शिव को छोड़ बांकी देवी देवता पत्थर के बन गए।
उन्नाकोटि की कथा
त्रिपुरा में आज भी उन्नाकोटि नाम की जगह पर सभी देवी देवताओं की पत्थर से बनी मूर्ति मौजूद है। उन्नाकोटि का अर्थ होता है एक करोड़ में एक कम। दन्त कथा के अनुसार उन्नाकोटि में शिव की एक कोटि से एक कम मूर्तियां है। जो दस किलोमीटर से ज्यादा इलाके में फैली हुई है। यहाँ भगवान शिव का चेहरा एक समूची चट्टान पर बना हुआ है। और उनकी जटाएं दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली है।
भारत में यह शिव की सबसे बड़ी मूर्ति है। कल्लू कुम्हार को इन मूर्तियों का निर्माता माना जाता है। कथा के अनुसार कल्लू कुम्हार माता पार्वती का परम भक्त था। वो पूरे दिन माता पार्वती की पूजा किया करता था। माता पार्वती को प्रसन्न कर वह उनके और भगवान् शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था।
काफी समय बाद माता पार्वती ने शिवजी से कल्लू को कैलाश पर्वत पर लाने को कहा। माता पार्वती के समक्ष भगवान शिव तो कल्लू को लाने को तैयार हो गए। लेकिन कल्लू के सामने शर्त यह रखी की उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियां बनानी होगी। कल्लू भगवान् शिव की आज्ञा पाते ही मूर्ति बनाने में जुट गया। पूरी रात वह मूर्ति बनाने में लगा रहा। लेकिन जब सुबह हुई तो मूर्तियां एक कोटि से एक कम निकली।
जिस कारण कल्लू कुम्हार भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत नहीं जा सका। पर जाने से पहले शिव ने उसे वरदान दिया । कलयुग में सभी लोग तुम्हे इन मूर्तियों के निर्माता के रूप में याद करेंगे।
दूसरी पौराणिक कथा
इसके आलावा एक और कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार सभी देवी देवता स्वर्ग से कशी जा रहे थे। यात्रा के दौरान सभी देवी देवता उन्नाकोटि में विश्राम के लिए रुके। यात्रा की थकान की वजह से सभी देवी देवता उस रात उन्नाकोटि में ही सो गए। परन्तु सोने से पहले भगवान् शिव ने देवी देवता से कहा की सूर्योदय से पहले सभी को यहाँ से निकलना होगा।
अगली सुबह जब शिव जी जगे तो सभी देवी देवता सो ही रहे थे। वो अकेले ही वहां से काशी के लिए निकल पड़े। शिवजी के जाने के कुछ समय बाद जब सूर्योदय हुआ तो देवी देवता सो ही रहे थे। और सूरज की किरण पड़ते ही सभी पत्थर बन गए।